________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 164 न चैतदुपपन्नं भाववन्नामादीनामबाधितप्रतीत्या वस्तुत्वसिद्धेः / एतेन नामैव वास्तवं न स्थापनादित्रयमिति शब्दाद्वैतवादिमतं, स्थापनैव कल्पनात्मिका न नामादित्रयं वस्तु सर्वस्य कल्पितत्वादिति विभ्रमैकांतवादिमतं, द्रव्यमेव तत्त्वं न भावादित्रयमिति च द्रव्याद्वैतवादिदर्शनं प्रतिव्यूढं / तदन्यतमापाये सकलसंव्यवहारानुपपत्तेश्च युक्तः सर्वपदार्थानां नामादिभिया॑सस्तावता प्रकरणपरिसमाप्तेः॥ __ननु नामादिभिय॑स्तानामखिलपदार्थानामधिगमः केन कर्तव्यो यतस्तव्यवस्था अधिगमजसम्यग्दर्शनव्यवस्था च स्यात् / न चास्तधना कस्यचिद्व्यवस्था सर्वस्य स्वेष्टतत्त्वव्यवस्थानुषंगादिति वदंतं प्रत्याह सूत्रकार; स्थापना निक्षेप के अभाव में मूर्तिदर्शन, राजकीय मुद्रा से होने वाला व्यवहार, साधारण मानव में आरोपित सभापतित्व, मैत्रीत्व आदि व्यवहार का अभाव हो जाता है। द्रव्य निक्षेप भावी काल में परिणत द्रव्य की योग्यता को सँभालता है। द्रव्य निक्षेप के माने बिना घृत के लिए दूध को ग्रहण करना, गेहूँ के लिए गेहूँ बीज को बोना, आदि सर्व व्यवहार नष्ट हो जाते हैं। अत: नाम स्थापना आदि में अर्थक्रियाकारित्व होने से ये अवस्तु नहीं हैं अपितु वस्तुस्वरूप ही हैं। शब्दाद्वैतवादी कहते हैं कि जगत् में शब्द स्वरूप नामनिक्षेप ही वस्तुभूत है। स्थापना, द्रव्य और भाव निक्षेप परमार्थभूत नहीं हैं कल्पित हैं। सम्पूर्ण पदार्थों को एकान्त से भ्रान्त स्वरूप मानने वाला कहता है कि कल्पना स्वरूप स्थापना ही जगत् में पदार्थ है; नाम द्रव्य और भाव ये तीन निक्षेप वास्तविक वस्तुभूत नहीं हैं, कल्पित हैं। द्रव्याद्वैतवादी का सिद्धान्त है कि भविष्य काल में द्रवण करने योग्य (भावरूप परिणत होने योग्य). द्रव्य निक्षेप ही वास्तविक है नाम, स्थापना और भाव निक्षेप वास्तविक नहीं हैं। परन्तु इन तीनों एकान्त वादियों के मन्तव्य (कथन) का स्याद्वाद मतानुसार चारों निक्षेपों की सिद्धि हो जाने से खण्डन का निराकरण हो जाता है। क्योंकि नामादि चारों में से किसी निक्षेप का अभाव हो जाने पर जगत् के सम्पूर्ण समीचीन व्यवहारों का अभाव हो जाता है। अतः सम्पूर्ण पदार्थों का यथायोग्य नाम आदि चारों निक्षेपों से न्यास (लोक व्यवहार) करना युक्तिसंगत है। क्योंकि चारो का अविनाभाव संबंध है। एक के अभाव में चारों का अभाव हो जाता है। इस प्रकार निक्षेप का प्रकरण पूर्ण हुआ। शंका : नाम स्थापना द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपों के द्वारा न्यस्यमान सम्पूर्ण पदार्थों का अधिगम (निर्णय वा निश्चय) किसके द्वारा करना चाहिए ? जिससे लोकप्रसिद्ध नाम, स्थापनादि के द्वारा व्यवहृत पदार्थों की व्यवस्था हो सके तथा दूसरों के उपदेश से वा शास्त्रों के पठन, मनन से उत्पन्न अधिगमज सम्यग्दर्शन की व्यवस्था बन सके क्योंकि ज्ञापक साधन के बिना किसी भी नामादि निक्षेपों की तथा जीवादि पदार्थों की व्यवस्था नहीं हो सकती है अन्यथा- (यदि ज्ञापक साधन के बिना भी किसी पदार्थ की सिद्धि मानेंगे तो) प्रमाण विरुद्ध बोलने वाले सभी वादियों के अपने इष्ट तत्त्व की सिद्धि का प्रसंग आयेगा इस प्रकार शंका करने वाले के प्रति सूत्रकार कहते हैं: