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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 162 नामादिनिक्षेपाभावेर्थस्य घटते, तत्संकरव्यतिकराभ्यां व्यवहारप्रसंगात्। ननु भावस्तंभस्य मुख्यत्वाद्व्याकरणं न नामादीनां “गौणमुख्ययोर्मुख्ये संप्रत्यय' इति वचनात् / नैतन्नियतं, गोपालकमानय कटजकमानयेत्यादौ गौणे संप्रत्ययसिद्धेः / न हि तत्र यो गाः पालयति यो वा कटे जातो मुख्यस्तत्र संप्रत्ययोस्ति / किं तर्हि ? यस्यैतन्नाम कृतं तत्रैव गौणे प्रतीतिः। कृत्रिमत्वाद्गौणे संप्रत्ययो न मुख्ये तस्याकृत्रिमत्वात् “कृत्रिमाकृत्रिमयोः कृत्रिमे संप्रत्यय" इति वचनात् / नैतदेकांतिकं पांसुलपादस्य तत्रैवोभयगतिदर्शनात् / स ह्यप्रकरणज्ञत्वादुभयं प्रत्येति किमहं यो गाः पालयति यो वा कटे जातस्तमानयामि किं वा यस्यैषा संज्ञा तं ? इति विकल्पनात् / प्रकरणज्ञस्य कृत्रिमे संप्रत्ययोस्तीति चेत् न, तस्याकृत्रिमेपि संप्रत्ययोपपत्तेस्तथा प्रकरणात् / ननु च शंका : पर्याय स्वरूप भाव स्तंभ की मुख्यता होने से भाव स्तंभ का ही ज्ञान होता है नाम स्तंभ, स्थापना स्तंभ आदि का ज्ञान नहीं होता है क्योंकि गौण और मुख्य का प्रकरण होने पर मुख्य के ही ज्ञान का ग्रहण होता है, ऐसा विद्वानों का कथन है। समाधान : गौण और मुख्य में मुख्य का ही ज्ञान होता है यह परिभाषा नियत नहीं है अर्थात् प्रधान और अप्रधान में प्रधान का ही बोध होता है यह नियम सर्व देश काल में लागू नहीं होता है। जैसे, गोपाल को लाओ, कटज को लाओ आदि कहने पर गौण (नाम गोपालादि) पदार्थों का ही ज्ञान होता है। जो गायों का पालन करता है ऐसे भावरूप गोपाल को लाने का ज्ञान नहीं होता है। तथा कटज को बुलाओ, ऐसा कहने पर गौण स्वरूप कटज नामक व्यक्ति का ही ज्ञान होता है, चटाई पर उत्पन्न भाव कटज का बोध नहीं होता है। हाथी के लिए रुदन करने वाले बालक को काष्ठ वा मिट्टी निर्मित हाथी लाकर दिया जाता है, असली नहीं। कृत्रिम और अकृत्रिम में कृत्रिम का ही बोध होता है, ऐसा कहा गया है अतः कृत्रिम होने से गौण में बोध होता है अकृत्रिम होने से मुख्य का ज्ञान नहीं होता है ऐसा भी एकान्त नियम नहीं है अर्थात् गौण और मुख्य में मुख्य का ही ज्ञान होता है तथा कृत्रिम और अकृत्रिम में कृत्रिम का ही ज्ञान होता है, यह नियम सर्व देश काल संबंधी व्यक्तियों में लागू नहीं होता है क्योंकि धूलि से धूसरित पैर वाले अज्ञात व्यक्ति में दोनों प्रकार के बोध की गति देखी जाती है अर्थात् जिसको प्रकरण का ज्ञान नहीं है ऐसे अज्ञात व्यक्ति को कहा गया कि गोपाल को लाओ या कटज को लाओ तो उसे मुख्य और गौण दोनों का ज्ञान होता है। वह विचारता है कि जो गायों का पालन करता है उस गोपाल को लाना चाहिए या गोपाल यह जिसका नाम है उसको लाना चाहिए। अथवा कटज शब्द को सुनकर चटाई पर उत्पन्न हुए मुख्य कटज को लाता हूँ या कटज इस नाम वाले को लाता हूँ। इस प्रकार दोनों विकल्प होते हैं अर्थात् प्रधान और अप्रधान दोनों पदार्थों को जानकर उसके हृदय में किसी एक को ले जाने के लिए विकल्प उठ रहा है। प्रकरण के जानने वाले मानव को कृत्रिम का ही ज्ञान होता है, ऐसा नहीं कहना चाहिए क्योंकि प्रकरण को जानने वाले पुरुष को भी प्रकरणवश मुख्य अकृत्रिम का ज्ञान हो सकता है। अतः प्रकरण के अनुसार निक्षेप विधि से मुख्य वा गौण का, अकृत्रिम वा कृत्रिम का समीचीन ज्ञान होता है। इसलिए निक्षेपविधान कार्यकारी है।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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