________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 156 बाधकाभावादिति चेत् तत एवान्यस्यापि / न हि दृष्टस्यैव सर्वत्र सर्वदा सर्वस्य सर्वथा बाधकाभावो निश्चेतुं शक्यो न पुनरध्यवसितस्येति ब्रुवाणः स्वस्थः प्रतीत्यपलापात् / ततो विरोधः क्वचित्तात्त्विक एवाबाधितप्रत्ययविषयत्वादिष्टो वस्तुस्वभाववदिति विरोधिभ्यां भिन्नसिद्धेः / स भिन्न एव सर्वथेत्ययुक्तमुक्तोत्तरत्वात् / ताभ्यां भिन्नस्य तस्य विरोधकत्वे सर्वः सर्वस्य विरोधकः स्यादिति / ननु चार्थांतरभूतोपि विरोधिनोर्विरोधको विरोध: तद्विशेषणत्वे सति विरोधप्रत्ययविषयत्वात् , यस्तु न तयोर्विरोधक: सन तथा यथापरोर्थः ततो न सर्वः सर्वस्य विरोधक इति चेन्न; तस्य तद्विशेषणत्वानुपपत्तेः / विरोधो हि भाव: स च तुच्छस्वभावो यदि शीतोष्णद्रव्ययोर्विशेषणं तदा सकृत्तयोरदर्शनापत्तिः / अथ शीतद्रव्यस्यैव विशेषणं तदा तदेव विरोधि स्यान्नोष्णद्रव्यं / तथा च न द्विष्ठोसौ एकत्रावस्थितेः / न चैकत्र विरोध: सर्वदा तत्प्रसंगात् ___निर्विकल्प प्रत्यक्ष के द्वारा दृष्ट पदार्थों के सर्वत्र और सर्वकाल में सब जीवों के सर्वथा बाधकों के अभाव का निश्चय करना शक्य है परन्तु अध्यवसाय रूप ज्ञान से ज्ञात विकल्प्य का बाधक अभाव निश्चय नहीं किया जा सकता। ऐसा कहने वाला बौद्ध प्रतीति में आने वाले पदार्थ का लोप करने वाला होने से स्वस्थ कैसे हो सकता है अर्थात् ऐसा कहने वाला मूर्ख है अतः क्वचित् विशिष्ट पदार्थों में विरोध वास्तविक है। क्योंकि वह विरोध निर्बाध ज्ञान के विषयत्व से इष्ट है। जैसे वस्तु का स्वभाव परमार्थ भूत है (अर्थात् जैसे पाचकत्व दाहकत्व उष्णत्व आदि अग्नि के स्वभाव वास्तविक हैं वैसे विरोध भी वास्तविक हैं) अतः अनुयोगी और प्रतियोगी विरोधी पदार्थ से विरोध कथंचित् भिन्न सिद्ध है क्योंकि परिणामी से परिणाम कथंचित् भिन्न है, कथंचित् अभिन्न है। विरोध सर्वथा भिन्न ही है, ऐसा कहना उचित नहीं है इसका उत्तर पूर्व में दिया गया है। यदि प्रतियोगी और अनुयोगी पदार्थ से सर्वथा भिन्न स्थित विरोध-निरोधक होगा तो सबके सभी विरोधी हो जायेंगे। शंका : सर्वथा अर्थान्तरभूत (भिन्न) विरोध प्रतियोगी और अनुयोगी विरोधियों का विरोधक है क्योंकि वह विरोध विरोधियों के विशेषण रूप से विरोध ज्ञान का विषय है। जो पदार्थ उन विरोधियों का विरोधक नहीं है वह विरोधियों के विशेषण रूप से विरोध ज्ञान का विषय भी नहीं है। जैसे भिन्न पड़ा हुआ दूसरा पदार्थ विरोध ज्ञान का विषय नहीं है अतः सर्व पदार्थ सर्व के विरोधक नहीं हैं। उत्तर : ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि विरोधक विरोधियों का विशेषण नहीं बन सकता। वैशेषिकों ने भाव अभाव के भेद से पदार्थ दो प्रकार के माने हैं। उसमें अभाव तुच्छस्वरूप है और भाव अतुच्छ स्वभाव है। जो आधारता, कार्यता आदि स्वभाव से रहित है वह तुच्छ है और आधारता आदि स्वभाव सहित हैं वह अतुच्छ है। विरोध भाव है तो वह अतुच्छ स्वभाव हैं। ऐसा विरोध यदि शीत और उष्ण द्रव्य रूप विरोधियों का विशेषण माना जाता है तब तो दोनों का एक समय में नहीं दिखने का प्रसंग आयेगा। अर्थात् दोनों में रहने वाला कार्यकारी विरोध तो युगपत् दोनों का नाश कर देगा। यदि वह विरोध स्वतंत्र पदार्थ शीत द्रव्य का विशेषण होगा तो वह शीत द्रव्य का ही विरोधी होगाउष्ण द्रव्य शीत द्रव्य दोनों का विरोधी नहीं हो सकता। तथा ऐसा होने पर एक में स्थित रहने के कारण वह विरोध पदार्थ दो में रहने वाला नहीं हो सकता और एक में रहने वाला विरोध नहीं हो सकता। अन्यथ