________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 155 विकल्पाध्यवसितत्वात् मनोराज्यादिवदित्यनुमानादिति चेत्, स त बाधितत्वाभावस्तस्यानुमानविकल्पेनाध्यवसितः परमार्थसन्नपरमार्थसन् वा ? प्रथमपक्षे तेनैव हेतोर्व्यभिचारः, पक्षांतरे तत्त्वतस्तस्याबाधितत्वं अबाधितत्वाभावस्याभावे तदबाधितत्वविधानात् / न चाविचारसिद्धयोधर्मिधर्मयोरबाधितत्वाभावः प्रमाणसिद्धमबाधितत्वं विरुणद्धि संवृत्तिसिद्धेन परमार्थसिद्धस्य बाधनानिष्टेः / तदिष्टौ वा स्वेष्टसिद्धरयोगात् / कथं विकल्पाध्यवसितस्याबाधितत्वं प्रमाणसिद्धमिति चेत् , दृष्टस्य कथं ? धन प्राप्त कर लेना आदि कल्पनाओं से ज्ञेय होने के कारण वास्तविक नहीं हैं। जैनाचार्य कहते हैं कि यदि अनुमान से बौद्ध धर्म और धर्मी के विकल्प ज्ञान के द्वारा ज्ञेय होने से अबाधित के अभाव को सिद्ध करेंगे तो वह अबाधित का अभाव अनुमान रूप विकल्प ज्ञान से निर्णीत किया गया है वह परमार्थसत् है कि अपरमार्थ सत् है प्रथम पक्ष अर्थात् अनुमान विकल्प ज्ञान के द्वारा निर्णीत अबाधित अभाव परमार्थ सत् है तब तो अबाधित अभाव पदार्थ से हेतु व्यभिचरित होता है अर्थात् अबाधित अभाव में विकल्प ज्ञान से निर्णीत किया गया हेतु अबाधित अभावरूप साध्य में नहीं रहा क्योंकि बौद्धों ने इसको अबाधित (वास्तविक) नहीं माना है। ___ द्वितीय पक्ष अर्थात् अबाधिताभाव पदार्थ वास्तविक नहीं है, ऐसा मानने पर वास्तविक रूप से उसके अबाधितपना आ जाता है अर्थात् अबाधिताभाव जब वास्तविक नहीं है तो धर्म, धर्मी आदि में अबाधितफ्ना वास्तविक है। अबाधित पन के अभाव का अभाव हो जाने पर उसके अबाधित का विधान हो जाता है। किंच बौद्धों द्वारा बिना विचारे सिद्ध किये गये धर्म धर्मी का अबाधिताभाव धर्म धर्मी के प्रमाण द्वारा साधे गये अबाधितत्व का विरोध नहीं कर सकता। (जैसे मिट्टी से निर्मित काल्पनिक गरुड़ वस्तुभूत सर्प को बाधा नहीं पहुंचा सकता है वैसे कल्पित अनुमान से सिद्ध किया गया अबाधिताभाव प्रमाण सिद्ध अबाधितत्व का विरोध नहीं कर सकता।) अत: कल्पनारूप व्यवहार द्वारा सिद्ध किये गये पदार्थ से परमार्थ रूप प्रमाण से सिद्ध पदार्थ का बाधित हो जाना इष्ट नहीं किया है। यदि कल्पित पदार्थों से वास्तविक पदार्थों का बाधित होना स्वीकार किया जायेगा तो स्व इष्ट सिद्धि का अयोग होगा अर्थात् स्व इष्ट सिद्धि नहीं हो सकेगी। शंका : विकल्प से निर्णीत किया गया धर्म-धर्मी का अबाधितपना प्रमाणों से सिद्ध है, यह कैसे जाना जाता है। उत्तर : जैन कहते हैं निर्विकल्प प्रत्यक्ष रूप दर्शन से ज्ञात स्वलक्षण रूप दृष्ट का अबाधित पना बौद्ध कैसे जानते हैं यदि कहो कि दृश्य का अबाधितपना बाधक प्रमाण के न होने से जान लिया जाता है तो जैन धर्म में भी बाधक का अभाव होने से विकल्प ज्ञान से निर्णीत किये गये दूसरे विकल्प का भी अबाधितपना जान लिया जाता है।