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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *154 तथानुभवाभावेपि तद्विरोधकल्पनायां न किंचित्केनचिदविरुद्धं सिद्ध्येत् / न च कल्पित एव विरोधः सर्वत्र तस्य वस्तुधर्मत्वेनाध्यवसीयमानत्वात् सत्त्वादिवत् / सत्त्वादयोपि सत्त्वेनाध्यवसीयमानाः कल्पिता एवेत्ययुक्तं तत्त्वतोर्थस्यासत्त्वादिप्रसंगात्। सकलधर्मनैरात्म्योपगमाददोषोयमिति चेत् कथमेवं धर्मी तात्त्विकः / सोपि कल्पित एवेति चेत् , किं पुनरकल्पितं ? स्पष्टमवभासमानं स्वलक्षणमिति चेत् नैकवेंद्रौ द्वित्वस्य बाधितत्वप्रसंगात्। यदि पुनरबाधितस्पष्टसंवेदन वेद्यत्वात्स्वलक्षणं परमार्थसत् नैकवेंद्रौ द्वित्वादिबाधितत्वादिति मन्यसे तदा कथमबाधितविकल्पाध्यवसीयमानस्य धर्मस्य धर्मिणो वा परमार्थसत्त्वं निराकुरुषे / विकल्पाध्यवसितस्य सर्वस्याबाधितत्वासंभवान्न वस्तुसत्त्वमिति चेत् , कुतस्तस्य तदसंभवनिश्चयः / विवादापन्नो धर्मादिर्नाबाधितो सत्त्व आदि धर्म विकल्प ज्ञान के द्वारा कल्पित हैं, वास्तविक नहीं हैं ऐसा कहना युक्त नहीं है क्योंकि ऐसा मानने पर परमार्थ रूप से पदार्थों के असत्त्वादि का प्रसंग आता है अर्थात् पदार्थ सत् और क्षणिक वास्तव में नहीं रहेंगे। यदि वास्तव में तत्त्वों को सर्व धर्मों से रहित स्वीकार करने पर कोई दोष नहीं आता है तो ऐसा बौद्धों के कहने पर धर्मी तात्त्विक कैसे रहेंगे। यदि धर्मी भी कल्पित हैं ऐसा माना जायेगा तो पुनः अकल्पित क्या रहेगा अर्थात् कुछ भी अकल्पित नहीं रहेगा। स्पष्ट अवभासमान स्वलक्षण ही अकल्पित (वास्तविक) है ऐसा भी कहना उचित नहीं है क्योंकि जिसका स्पष्ट प्रतिभास होता है वह वास्तविक है ऐसा नियम करने पर तो एक चन्द्रमा में स्पष्ट रूप से प्रतिभासित दो चन्द्रमा के स्पष्ट प्रतिभास भी अकल्पित (वास्तविक) होगा अर्थात् दृष्टि में कोई दोष हो जाने पर दो चन्द्रमा दृष्टिगोचर होते हैं तो उनके भी वास्तविक हो जाने का प्रसंग आयेगा। स्वप्न में भी पदार्थों का स्पष्ट प्रतिभास होता है परन्तु वे वास्तविक नहीं हैं। एक चन्द्रमा में दो चन्द्रमा के दृष्टिगोचर होने में बाधितत्व का प्रसंग आता है। यदि पुनः बाधारहित स्पष्ट संवेदन के द्वारा वेद्यत्व होने से स्वलक्षण परमार्थ सत् (मुख्य सत्) है किन्तु एक चन्द्रमा में दो चन्द्रमा का दृष्टिगोचर होना प्रमाणों के द्वारा बाधित होने से परमार्थ सत् नहीं है ऐसा मानते हो तो स्वलक्षण के समान अबाधित विकल्प ज्ञान के द्वारा निर्णीत धर्म और धर्मी के परमार्थ सत्त्व का निराकरण कैसे किया जायेगा अर्थात् विकल्प ज्ञान के द्वारा जाने गये धर्म धर्मी भी वास्तविक हो जायेंगे। विकल्प ज्ञान के द्वारा निर्णीत सम्पूर्ण धर्म धर्मी आदि पदार्थों के अबाधितपना असंभव होने से वस्तु सत्त्व वास्तविक नहीं है। ऐसा कहने पर तो हम पूछते हैं कि उन धर्म धर्मी के अबाधितत्व की असंभवता का निश्चय किस प्रमाण से होता है ? ___ बौद्ध अनुमान के द्वारा धर्म धर्मी को बाधासहित सिद्ध करते है, विवादापन्न धर्म और धर्मी अबाधित नहीं है, विकल्प ज्ञान से निश्चित होने के कारण; जैसे मन में राज्य प्राप्त कर लेना वा स्वप्न में
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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