________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 152 प्रथमद्वितीयपक्षयो सौ विरोधक इत्याह;नामादेरविभिन्नश्चेद्विरोधो न विरोधकः / नामाद्यात्मवदन्यश्चेत्कः कस्यास्तु विरोधकः // 84 // न तावदात्मभूतो विरोधो नामादीनां विरोधकः स्यादात्मभूतत्वान्नामादिस्वात्मवत् विपर्ययो वा / नाप्यनात्मभूतोऽनात्मभूतत्वाद्विरोधकोतिरवत् विपर्ययो वा // भिन्नाभिन्नो विरोधश्चेत्किं न नामादयस्तथा / कुतश्चित्तद्वतः संति कथंचिद्भिदभिद्धृतः // 85 // विरोधो विरोधिभ्यः कथंचिद्भिन्नोऽभिन्नश्चाविरुद्धो न पुनर्नामादयस्तद्वतोदिति ब्रुवाणो न प्रेक्षा वान्॥ अथवा-नाम, स्थापनादि में जो परस्पर विरोध करते हो वह विरोध नामादिक से भिन्न है कि अभिन्न है या उभयरूप है ? इनमें प्रथम और द्वितीय पक्ष तो विरोधक नहीं है उसी को जैनाचार्य कहते हैं यदि विरोध नामादि से अभिन्न है तो वह विरोध विरोधक नहीं है। जैसे नाम, स्थापना आदि अपने स्वरूप के विरोधक नहीं हैं। क्योंकि यदि निज स्वरूप ही निज स्वरूप का विरोध करेगा तो वस्तु का नाश ही हो जायेगा। यदि विरोध पदार्थ से है तो कौन किसका विरोधक होगा? अर्थात् अनेक भिन्न पदार्थ परस्पर विरोध करने लगेंगे तो कोई भी किसी का विरोधक हो जायेगा॥८४॥ जीवादि पदार्थों में और नामादि निक्षेपों में अभेद पक्ष ग्रहण करने पर प्रतियोगी और अनुयोगी पदार्थों में नामादिक निक्षेपों का आत्मस्वरूप विरोध तो विरोधक नहीं होगा। क्योंकि तदात्मक स्वरूप विरोध तो पदार्थों का आत्म स्वरूप है जैसे नाम स्थापनादि का स्वस्वरूप नामादिक से विरोध नहीं करता है। अथवा विपरीत होंगे अर्थात् नाम निक्षेप आदि से अभिन्न विरोध नाम का विरोधक होगा तो नामादिक स्वयं आकाश के फूल के समान असत् हो जायेंगे तथा द्वितीय पक्ष के अनुसार नामादिक निक्षेपों का अनात्म-भूत (पृथक्) विरोध भी विरोधक नहीं है क्योंकि वह सर्वथा नामादिक से पृथक्भूत है जैसे सर्वथा पृथक् घट आदिक पट के विरोधक नहीं हैं। अथवा विपरीत अवस्था होगी अर्थात् यदि सर्वथा भिन्न भी विरोध विरोधक होगा तो कोई भी पदार्थ किसी का भी विरोधक हो जायेगा। यदि विरोध के आधारभूत अनुयोगी प्रतियोगी रूप विरोधियों से विरोध पदार्थ कथंचित् भिन्नाभिन्न है तब तो उसी प्रकार कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्नत्व के धारक नामादि निक्षेपों से विशिष्ट पदार्थ नाम, स्थापनादि से कथंचित् भिन्नाभिन्न सिद्ध हो जाते हैं अर्थात् जिस प्रकार विरोधी पदार्थ में विरोध कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न होकर स्थित है उसी प्रकार नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ये चारों निक्षेप एक साथ एक पदार्थ में कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न होकर रहते हैं इसमें कोई विरोध नहीं है॥८५॥ तृतीय पक्ष के अनुसार विरोधियों से विरोध कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न होकर पदार्थों में अविरुद्ध है (रहता है)। किन्तु नाम, स्थापना आदि से युक्त पदार्थों में नाम स्थापना आदि निक्षेप कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न नहीं रहते हैं, ऐसा कहने वाला बुद्धिमान नहीं है।