________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 146 नन्वनंतः पदार्थानां निक्षेपो वाच्य इत्यसन्। नामादिष्वेव तस्यांतर्भावात्संक्षेपरूपतः // 71 // ___संख्यात एव निक्षेपस्तत्प्ररूपकनयानां संख्यातत्वात् , संख्याता एव नयास्तच्छब्दानां संख्यातत्वार / “यावंतो वचनपथास्तावंत: संभवंति नयवादाः" इति वचनात् / ततो न निक्षेपोऽनंतविकल्पः प्रपंचतो प्रसंजनीय इति चेन्न, विकल्पापेक्षयार्थापेक्षया च निक्षेपस्यासंख्याततोपपत्तेरनन्ततोपपत्तेश्च तथाभिधानात् केवलमनंतभेदस्यापि निक्षेपस्य नामादिविजातीयस्याभावान्नामादिष्वंतर्भावात् संक्षेपतश्चातुर्विध्यमाह // द्रव्यपर्यायतो वाच्यो न्यास इत्यप्यसंगतम् / अतिसंक्षेपतस्तस्यानिष्टेरवान्यथास्तु सः // 72 // न ह्यत्रातिसंक्षेपतो निक्षेपो विवक्षितो येन तद्विविध एव स्याद्रव्यतः पर्यायतश्चेति तथा विवक्षाया तु तस्य द्वैविध्ये न किंचिदनिष्टं / संक्षेपतस्तु चतुर्विधोसौ कथित इति सर्वमनवद्यम् // दुःशक्य हो जायेगा अतः तत् शब्द का ग्रहण प्रधान अप्रधान दोनों का ग्रहण करने के लिए है। शंका : पदार्थ अनन्त हैं अत: निक्षेप भी अनन्त होने चाहिए। समाधान : ऐसी शंका भी प्रशंसनीय नहीं है क्योंकि संक्षेप रूप से नामादि चार निक्षेपों में ही अनन्त निक्षेपों का अन्तर्भाव हो जाता है // 71 // निक्षेप संख्यात ही हो सकते हैं, क्योंकि निक्षेपों के प्ररूपक नय संख्यात ही हैं। नयों के प्रतिपादक शब्द भी संख्यात हैं अत: नय संख्यात हैं, कहा भी है जितने वचन मार्ग हैं उतने ही नयवाद संभव हैं इसलिए विस्तार से निक्षेप अनन्त विकल्प वाले नहीं हो सकते हैं अर्थात निक्षेपों के प्रतिपादक संख्यात नयों की अपेक्षा निक्षेप संख्यात तो हो ही सकते हैं। ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि विकल्पों की अपेक्षा (ज्ञान के विकल्पों की अपेक्षा) निक्षेप असंख्यात प्रकार के हैं और तद्विषयक अर्थों की अपेक्षा निक्षेप अनन्त भेद वाले होते हैं इस प्रकार का कथन है- अर्थात् यद्यपि शब्द संख्यात हैं तथापि शब्दजन्य ज्ञान जाति की अपेक्षा असंख्यात है और वाच्यअर्थ व्यक्ति की अपेक्षा अनन्त हैं। इसलिए निक्षेप भी असंख्यात और अनन्त हो सकते हैं परन्तु अनन्त भेद वाले निक्षेपों का नामादि चार निक्षेपों से भिन्न जाति काअभाव होने से ये संख्यात और अनन्त विकल्प नामादि चार निक्षेपों में ही अन्तर्भूत हो जाते हैं। इसलिए संक्षेप में निक्षेप चार प्रकार के कहे हैं। शंका : ये चार प्रकार के निक्षेप कैसे सिद्ध हो सकते हैं? द्रव्य और पर्याय की अपेक्षा न्यास दो प्रकार का हो सकता है समाधान : जैनाचार्य कहते हैं कि यद्यपि दो प्रकार का निक्षेप कहना ससंगत है। तथापि अत्यन्त संक्षेप से उस न्यास का निरूपण करना हम को इष्ट नहीं है, अन्यथा (अति संक्षेप से ही निरूपण किया जाये तो) वह द्रव्य और भाव की अपेक्षा दो प्रकार का हो सकता है। यह हमको इष्ट है इसमें कोई क्षति नहीं है॥७२॥ परन्तु द्रव्य और पर्याय की अपेक्षा अति संक्षेप से दो प्रकार का निक्षेप विवक्षित नहीं है। द्रव्य और पर्याय की अपेक्षा होने पर संक्षेप से दो प्रकार का निक्षेप मानना किंचित् अनिष्ट भी नहीं है। इसलिए संक्षेप से नामादिक के भेद से निक्षेप चार प्रकार का कहा है। यह कथन निर्दोष है। अर्थात् अत्यन्त संक्षेप से निक्षेप दो प्रकार का है, संक्षेप से चार प्रकार का है। तथा विस्तार से संख्यात असंख्यात और अनन्त प्रकार का भी है परन्तु संक्षेप से चार प्रकार के निक्षेप का कथन सर्व जन उपयोगी होने से कहा गया है।