________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *143 हि जीवादयः प्रसिद्धा एवार्थाभिधानात्मकजीवादिवत् / तत्र जीवादिविषयोपयोगाख्येन तत्प्रत्ययेनाविष्टः पुमानेव तदागम इति न विरोधः, ततोन्यस्य जीवादिपर्यायाविष्टस्यार्थादेआगमभावजीवत्वेन व्यवस्थापनात् / न चैवंप्रकारो भावोऽसिद्धस्तस्य बाधरहितेन प्रत्ययेन साधितत्वात् प्रोक्तप्रकारद्रव्यवत् / नापि द्रव्यादनांतरमेव तस्याबाधितभेदप्रत्ययविषयत्वात् अन्यथान्वयप्रत्ययविषयत्वानुषंगाद्रव्यवत् // नामोक्तं स्थापना द्रव्यं द्रव्यार्थिकनयार्पणात् / पर्यायार्थार्पणाद् भावस्तैासः सम्यगीरितः // 69 // नन्वस्तु द्रव्यं शुद्धमशुद्धं च द्रव्यार्थिकनयादेशात् नामस्थापने तु कथं तयोः प्रवृत्तिमारभ्य अर्थ और शब्दात्मक पदार्थ प्रसिद्ध हैं अर्थात् सर्व पदार्थ ज्ञान, शब्द और अर्थात्मक होते हैं। जैसे जीव कहने से तीन पदार्थ ध्वनित होते हैं। जीव यह शब्द है, जीव शब्द सुनकर आत्मा में चेतनात्मक जीव का ज्ञान होता है वह ज्ञानात्मक है और जानने देखने वाला आत्मा पदार्थ है। अत: इस भाव निक्षेप के प्रकरण में जीवादि विषय का कथन करने वाले आगम ज्ञान में उपयुक्त आत्मा को आगम भाव कह दिया जाता है अत: आगम भाव से भिन्न जीवादि पर्यायों से युक्त सहकारी पदार्थ नो आगम भाव जीव से व्यवस्थापना होती है। इसमें कोई विरोध नहीं है अर्थात् आगम भाव से भिन्न नो आगम भाव है। आगमभाव शास्त्र में उपयुक्त आत्मा है और नो आगम भाव उसका सहकारी कारण है। इस प्रकार भाव निक्षेप असिद्ध नहीं है क्योंकि जैसे दो प्रकार के द्रव्य निक्षेप की निर्दोष ज्ञान से सिद्धि हो गई है उसी प्रकार दो प्रकार के भाव निक्षेप की भी समीचीन ज्ञान से सिद्धि हो चुकी है। तथा वह भाव निक्षेप द्रव्य निक्षेप से पृथक्भूत ही है। क्योंकि भाव निक्षेप का विषय अबाधित भेद प्रत्यय रूप वर्तमान कालीन है। अन्यथा (यदि भेद रूप वर्तमान कालीन नहीं माना जायेगा तो) द्रव्य निक्षेप के समान भाव निक्षेप के भी त्रिकालगोचर पदार्थों का ज्ञान कराने वाले अन्वय ज्ञान की विषयता का प्रसंग आयेगा। भावार्थ : अन्वयज्ञान का विषय द्रव्य निक्षेप है और विशेषरूप भेद के ज्ञान का विषय भाव निक्षेप है। तीनों काल की पर्यायों का संकलन द्रव्य निक्षेप में होता है और वर्तमान काल का आकलन भाव निक्षेप से होता है। 'द्रव्यार्थिक नय की विवक्षा से नाम, स्थापना और द्रव्य ये तीन निक्षेप होते हैं। तथा पर्यायार्थिक नय की प्रधानता से भाव निक्षेप का कथन है। इस प्रकार जीव अजीव आदि तत्त्वों तथा सम्यग्दर्शन आदि में लोक व्यवहार के लिए नामादि निक्षेप भली प्रकार कहे गये हैं // 69 // शंका : द्रव्यार्थिक नय की प्रधानता से शुद्ध और अशुद्ध के भेद से द्रव्य दो प्रकार का कहा जा सकता है परन्तु नाम और स्थापना ये द्रव्यार्थिक नय के विषय कैसे हो सकते है? समाधान : नाम और