________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 142 वस्तुनः पर्यायस्वभावो भाव इति वचनात्तस्यावस्तुस्वभावता व्युदस्यते / सांप्रत इति वचनात्कालत्रयव्यापिनो द्रव्यस्य भावरूपता / नन्वेवमतीतस्यानागतस्य च पर्यायस्य भावरूपताविरोधाद्वर्तमानस्यापि सा न स्यात्तस्य पूर्वापेक्षयानागतत्वात् उत्तरापेक्षयातीतत्वादतो भावलक्षणस्याव्याप्तिरसंभवो वा स्यादिति चेन्न, अतीतस्यानागतस्य च पर्यायस्य स्वकालापेक्षया सांप्रतिकत्वाद्भावरूपतोपपत्तेरननुयायिनः परिणामस्य सांप्रतिकत्वोपगमादुक्तदोषाभावात् / स तु भावो द्वेधा द्रव्यवदागमनोआगमविकल्पात् / तत्प्राभृतविषयोपयोगाविष्ट आत्मा आगम: जीवादिपर्यायाविष्टोऽन्य इति वचनात् / कथं पुनरागमो जीवादिभाव इति चेत् , प्रत्ययजीवादिवस्तुनः सांप्रतिकपर्यायत्वात् / प्रत्ययात्मका वस्तु का पर्याय स्वभाव भाव निक्षेप है, ऐसा कहने से भाव निक्षेप अवस्तु है इसका खण्डन हो जाता है अर्थात् भाव निक्षेप भी वस्तु का स्वरूप है, अवस्तु नहीं है। साम्प्रत, वर्तमान काल ऐसा कहने से त्रिकालवर्ती द्रव्य के भाव निक्षेप का खण्डन हो जाता है अर्थात् त्रिकालवर्ती द्रव्य भाव निक्षेप नहीं है अपितु वर्तमान काल संबंधी द्रव्य की पर्याय भाव निक्षेप है ऐसा समझना चाहिए। शंका : इस प्रकार भूत और भविष्य काल की पर्यायों के भाव निक्षेप का विरोध होने से वर्तमान काल के भी भावरूपता नहीं हो सकती क्योंकि वर्तमान काल की पर्याय पूर्व पर्याय की अपेक्षा से भावी है और उत्तर पर्याय की अपेक्षा वर्तमान पर्याय भूतकालीन है अर्थात् वर्तमान पर्याय भी भूत और भविष्यत् पर्याय में अन्तर्भूत है अत: भाव निक्षेप का लक्षण विशेष भावों में न जाने से अतिव्याप्ति और वर्तमान पर्याय में न रहने से असंभव दोष से दूषित है अर्थात् एकान्त से कोई वर्तमान पर्याय ही नहीं है- अत: यह लक्षण असंभव है। समाधान : ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि भूतकालीन और भविष्यकालीन पर्यायें अपनेअपने काल की अपेक्षा तो वर्तमान काल की ही हैं अतः उनमें भावरूपता भावनिक्षेप घटित हो जाता है। परन्तु जो पर्याय आगे पीछे की पर्यायों में अनुगमन नहीं करती है केवल वर्तमान काल में ही रहती है वह वर्तमान काल की पर्याय भाव निक्षेप का विषय होती है ऐसा माना गया है अतः पूर्वोक्त दोषों का भाव निक्षेप में अभाव है। भावार्थ : वर्तमान काल की अपेक्षा ही भूत और भविष्यत् काल की सिद्धि होती है। क्योंकि वर्तमान में जिसका ध्वंस है वह भूतकाल है और वर्तमान में जिसका प्राग् अभाव है वह भविष्य है। अत: पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा तीनों काल पृथक्-पृथक् हैं / द्रव्य निक्षेप के समान आगम और नो आगम के विकल्प से भाव निक्षेप दो प्रकार के हैं। जीवादि शास्त्रों को जानने वाले और उनमें उपयुक्त आत्मा आगम भाव निक्षेप है और उसके सहायक जीवन प्राणधारण आदि पर्यायों से युक्त आत्मा नो आगम भाव निक्षेप है। इस प्रकार आर्ष ग्रन्थों में प्रतिपादन किया है। प्रश्न : ज्ञान स्वरूप आगम को जीवादि भाव निक्षेपत्व कैसे घटित होता है? उत्तर : ज्ञानस्वरूप जीवादि वस्तुओं के वर्तमान काल की पर्यायपना है। क्योंकि जीवादि पदार्थ ज्ञानात्मक प्रसिद्ध ही हैं। जैसे