SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 141 शरीरभावमापन्नस्याहारादिपुद्गलस्य वा ज्ञायकशरीरत्वासिद्धेः, औदारिकवैक्रियिकाहारकशरीरत्रयस्यैव ज्ञायकशरीरत्वोपपत्तेरन्यथा विग्रहगतावपि जीवस्योपयुक्तज्ञानत्वप्रसंगात् तैजसकार्मणशरीरयोः सद्भावात्। कर्म नोकर्म नोआगमद्रव्यं भाविनोआगमद्रव्यादनांतरमिति चेन्न, जीवादिप्राभृतज्ञायिपुरुषकर्म नोकर्मभावमापन्नस्यैव तथाभिधानात् ततोन्यस्य भाविनोआगमद्रव्यत्वोपगमात् / तदेतदुक्तप्रकारं द्रव्यं यथोदितस्वरूपापेक्षया मुख्यमन्यथात्वेनाध्यारोपितं गौणमवबोद्धव्यम् // सांप्रतो वस्तुपर्यायो भावो द्वेधा स पूर्ववत् / आगमः प्राभृतज्ञायी पुमांस्तत्रोपयुक्तधीः // 67 // नोआगमः पुनर्भावो वस्तु तत्पर्ययात्मकम् / द्रव्यादर्थांतरं भेदप्रत्ययाद् ध्वस्तबाधनात् // 68 // शरीरपना सिद्ध नहीं है। अथवा आहार वर्गणा, भाषा वर्गणा आदि के ज्ञायक शरीरत्व सिद्ध नहीं है क्योंकि औदारिक, वैक्रियिक और आहारक इन तीन शरीरों को ही ज्ञायक शरीरपना युक्त है। अन्यथा (यदि इन तीन शरीर को ज्ञायक शरीरपना- नहीं मानेंगे तो) विग्रह गति में भी जीव के उपयोगात्मक ज्ञान हो जाने का प्रसंग आयेगा क्योंकि विग्रह गति में तैजस और कार्मण शरीर का सद्भाव पाया जाता है। अत: ज्ञायक शरीर और तद्व्यतिरेक कर्म नोकर्म पृथक्-पृथक् हैं / कर्म और नोकर्म रूप नोआगम द्रव्य से नोआगमभावी द्रव्य पृथक् नहीं है, ऐसा कहना भी उचित नहीं है। क्योंकि जीव, सम्यग्दर्शन आदि शास्त्रों को जानने वाले पुरुष के कर्म नोकर्म को प्राप्त द्रव्य को कर्म नोकर्म नोआगम द्रव्य कहा है। उन कर्म नोकर्म से भिन्न आगे कर्म नोकर्म से युक्त होने वाले जीव को भावी नोआगम द्रव्य कहा है, यह इन दोनों में अन्तर है / इस प्रकार उक्त प्रकार से कथित द्रव्य निक्षेप यथोदित स्वरूप की अपेक्षा मुख्य और गौण की अपेक्षा दो प्रकार का है। ऊपर में जिसका स्वरूप कहा है वह द्रव्य निक्षेप मुख्य है और किसी में कल्पना से आरोपित किया जाता है वह गौण है, ऐसा समझना चाहिए। जैसे कुन्दकुन्दाचार्य को विद्वान् कहना मुख्य है.और कुन्दकुन्दाचार्य के फोटो को विद्वान् कहना गौण है। इस प्रकार द्रव्य निक्षेप का कथन किया है। अब भाव निक्षेप कहते हैं : वस्तु की वर्तमान कालीन पर्याय को भाव निक्षेप कहते हैं। द्रव्य निक्षेप के समान भाव निक्षेप भी आगम और नो आगम के भेद से दो प्रकार का है। उनमें जीवादि शास्त्रों को जानने वाला उसमें उपयुक्त आत्मा आगम भाव कहलाता है और जीव शास्त्रादि पर्यायों का स्वरूप नो आगम भाव निक्षेप कहलाता है // 67 // . बाधाओं से रहित भेद का ज्ञान होने से भाव निक्षेप द्रव्य निक्षेप से भिन्न है। अर्थात् अन्वय ज्ञान से द्रव्य निक्षेप जाना जाता है और पर्याय को जानने वाले भेद (व्यतिरेक) से भाव निक्षेप जाना जाता है द्रव्य निक्षेप में अन्वय ज्ञान लिया जाता है, भाव निक्षेप में उस ज्ञान से युक्त वर्तमान पर्याय का ग्रहण होता है // 68 //
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy