________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 140 एव जीवादिविशेषापेक्षयोदाहृतो जीवादिद्रव्यनिक्षेपो। नन्वेवमागमद्रव्यं वा बाधितात्तदन्वयप्रत्ययान्मुख्य सिद्ध्यतु ज्ञायकशरीरं तु त्रिकालगोचरं तद्व्यतिरिक्तं च कर्मनोकर्मविकल्पमनेकविधं कथं तथा सिद्ध्येत प्रतीत्यभावादिति चेन्न, तत्रापि तथाविधान्वयप्रत्ययस्य सद्भावात् / यदेव मे शरीरं ज्ञातुमारभमाणस्य तत्त्वं तदेवेदानी परिसमाप्ततत्त्वज्ञानस्य वर्तत इति वर्तमानज्ञायकशरीरे तावदन्वयप्रत्ययः / यदेवोपयुक्ततत्त्वज्ञानस्य मे शरीरमासीत्तदेवाधुनानुपयुक्ततत्त्वज्ञानस्येत्यतीतज्ञायकशरीरे प्रत्यवमर्शः / यदेवाधुनानुपयुक्ततत्त्वज्ञानस्य शरीरं तदेवोपयुक्ततत्त्वज्ञानस्य भविष्यतीत्यनागतज्ञायकशरीरे प्रत्ययः / तर्हि ज्ञायकशरीरं भाविनोआगमद्रव्यादनन्यदेवेति चेन्न, ज्ञायकविशिष्टस्य ततोन्यत्वात् / तस्यागमद्रव्यादन्यत्वं सुप्रतीतमेवानात्मत्वात् / कर्म नोकर्म वान्वयप्रत्ययपरिच्छिन्नं ज्ञायकशरीरादनन्यदिति चेत् न, कार्मणस्य शरीरस्य तैजसस्य च शरीरस्य घटित नहीं हो सकता है परन्तु जीवादि द्रव्य विशेष की अपेक्षा जीवादि द्रव्यों में नो आगम द्रव्य निक्षेप कहा गया है। शंका : स्याद्वाद मत के कथनानुसार बाधारहित अन्वय ज्ञान से मुख्य आगम द्रव्य तो सिद्ध हो सकता है परन्तु त्रिकालगोचर ज्ञायक शरीर और कर्म नोकर्म के भेद से अनेक प्रकार का तद्व्यतिरेक नो आगम द्रव्य कैसे सिद्ध हो सकता है, क्योंकि इसमें बाधा रहित प्रतीति का अभाव है। समाधान : ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि इस प्रकार के अन्वय का सद्भाव ज्ञायक शरीर और कर्म नोकर्म रूप तद्व्यतिरेक में भी पाया जाता है क्योंकि तत्त्वों को जानने का प्रारम्भ करते समय जो मेरा शरीर था वही शरीर तत्त्व ज्ञान की परिसमाप्ति के समय भी है। इस प्रकार वर्तमानकालीन ज्ञायक शरीर में अन्वय ज्ञान होता है और जो मेरा दो दिन पूर्व शरीर था वही आज है ऐसा प्रतीत होता है। तथा तत्त्व ज्ञान के उपयोग काल में जो मेरा शरीर था वही शरीर तत्त्व के अनुपयोग काल में भी है, इस प्रकार अतीत ज्ञायक शरीर में प्रत्यभिज्ञान होता ही है। तथा जैसे इस समय अनुपयुक्त तत्त्वज्ञानी का शरीर है वही शरीर भविष्य काल में तत्त्व ज्ञान के उपयोग के समय रहेगा अतः अनागत भावी काल के ज्ञायक शरीर में अन्वय ज्ञान घटित होता है। ऐसा मानने पर तो भावी नो आगम द्रव्य निक्षेप से ज्ञायक शरीर अभिन्न ही सिद्ध होता है, ऐसा नहीं कहना चाहिए क्योंकि उस ज्ञायक शरीर से ज्ञायक आत्मा से विशिष्ट भावी नोआगम द्रव्य भिन्न है वह ज्ञायक शरीर आगम द्रव्य से भिन्न प्रतीत होता है अनात्मत्व होने से। अर्थात् आगम ज्ञान के उपयोग से रहित आत्मा को आगम द्रव्य कहा है और जो आगम को जानने वाला आत्मा आगे होगा वह भावी है और जीव के जड़ शरीर को ज्ञायक शरीर कहा है अत: ज्ञायक शरीर चेतना रहित है, भावी चेतना सहित है अत: इन दोनों में अन्तर है। तद्व्यतिरेक के कर्म और नोकर्म भेद भी अन्वय ज्ञान से जाने नहीं जाते हैं अत: ये दोनों ज्ञायक शरीर से पृथक् नहीं हैं। ऐसा कहना भी उचित नहीं है क्योंकि कार्मण वर्गणाओं से निर्मित कार्मण शरीर (कर्म) और कार्मण शरीर के अविनाभावी तैजस शरीर को प्राप्त आहारादि पुद्गल वर्गणाओं के ज्ञायक