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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 139 जातुचिदभावात् / नाना संतानचित्तेषु तदर्शनादेकसंतानचित्तेषु सद्भाव इति चेन्न, अनेकसंतानविभागाभावप्रसंगात् / सदृशत्वाविशेषेपि केषांचिदेव चित्तविशेषाणामेकसंतानत्वं प्रत्यासत्तिविशेषात् परेषां नानासंतानविभागसिद्धौ सिद्धमेकद्रव्यात्मकचित्तविशेषाणामेकसंतानत्वं द्रव्यप्रत्यासत्तेरेव तथा भावनिबंधनत्वोपपत्तेरुपादानोपादेयभावानंतर्यादेरपाकृ तत्वात् / ततोऽस्खलत्सादृश्यप्रत्यभिज्ञानात् सादृश्यसिद्धिवदस्खलदेकत्वप्रत्यभिज्ञानादेकत्वसिद्धिरैवेति निरूपितप्रायं / एतेन जीवादिनोआगमद्रव्यसिद्धिरुक्ता / य एवाहं मनुष्यजीवः प्रागासन् स एवाधुना देवो वर्ते पुनर्मनुष्यो भविष्यामीत्यन्वयप्रत्ययस्य सर्वथाप्यबाध्यमानस्य सद्भावात् / यदेवं जलं शुक्तिविशेषे पतितं तदेव मुक्ताफलीभूतमित्याद्यन्वयप्रत्ययवत् / ननु च जीवादिनोआगमद्रव्यमसंभाव्यं जीवादित्वस्य सार्वकालिकत्वेनानागतत्वासिद्धेस्तदभिमुख्यस्य कस्यचिदभावादिति चेत् / सत्यमेतत् / तत - एक द्रव्य के नाना परिणामों की एक सन्तान करने में उपादान उपादेयभाव, आनन्तर्य, क्षेत्र प्रत्यासत्ति, भाव संबंध आदि के प्रयोजकत्व का खण्डन किया जा चुका है अर्थात् जैसे पुद्गल द्रव्य स्वरूप मिट्टी का विचार किया जाये तो घड़ा, सिकोरा आदि में एक सन्तान रूप है परन्तु घट सिकोरा आदि की अपेक्षा एकसन्तानत्व नहीं है। तथा एक साथ बोये गये गेहूँ, जौ आदि के अंकुर में कालप्रत्यासत्ति होने पर भी एक सन्तानत्व नहीं है। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म आदि द्रव्यों में क्षेत्र प्रत्यासत्ति होने पर भी एक सन्तानत्व नहीं है। सर्व सयोग केवली, अयोग केवली, सिद्ध परमेष्ठियों में केवलज्ञान, केवलदर्शनादि की अपेक्षा भाव प्रत्यासत्ति है परन्तु द्रव्य प्रत्यासत्ति न होने से एकसन्तानत्व नहीं है। पारिशेष न्याय से यह सिद्ध होता है कि द्रव्यप्रत्यासत्ति ही एकसन्तानत्व का कारण है। इसलिए अबाधित सादृश्य प्रत्यभिज्ञान से पर्यायों में जैसे सादृश्य की सिद्धि होती है, वैसे ही अविचलित प्रामाणिक एकत्व प्रत्यभिज्ञान से पर्यायों में एकत्व की भी सिद्धि होती है। इस प्रकार पूर्व में बहुत बार निरूपण कर चुके हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि उपादान उपादेय भाव का या एकत्व सन्तान का कारण एक द्रव्य प्रत्यासत्ति है। इस प्रकार जीव सम्यग्दर्शनादि के नो आगम द्रव्य निक्षेप की सिद्धि कही है। पहले जो मैं मनुष्य जीव था वही मैं इस समय देव हूँ पुनः मनुष्य हो जाऊँगा / इस प्रकार सर्वथा अबाधित निर्दोष अन्वय प्रत्यय का सद्भाव पाया जाता है। जैसे सीप के मुख में गिरा हुआ जल ही मोती रूप से परिणत होता है। इत्यादि निर्दोष अन्वय की प्रतीति होती है। शंका : जीव, पुद्गल आदि छह द्रव्यों में नो आगम द्रव्य असंभव है क्योंकि जीवादि छह द्रव्यों का अस्तित्व सर्वकालीन होने से अनागतत्व की असिद्धि है। सामान्य जीवादि छह द्रव्यों का भविष्य में प्राप्त होना असिद्ध है। इसलिए जीवादि धर्म के सम्मुख होने वाले किसी भी पदार्थ का अभाव है। अर्थात् पूर्व में जीवादि द्रव्य नहीं थे, ऐसा हो नहीं सकता।। समाधान : यह आपका कथन सत्य है क्योंकि सामान्य रूप से जीवादिक में नो आगम द्रव्य निक्षेप
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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