________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 136 भावि नोआगमद्रव्यमेष्यत् पर्यायमेव तत् / तथा तद्व्यतिरिक्तं च कर्मनोकर्मभेदभृत् // 63 // ज्ञानावृत्त्यादिभेदेन कर्मानेकविधं मतम् / नोकर्म च शरीरत्वपरिणामनिरुत्सुकम् // 64 // पुद्गलद्रव्यमाहारप्रभृत्युपचयात्मकम् / विज्ञातव्यं प्रपंचेन यथागममबाधितम् // 65 // नन्वागतपरिणामविशेष प्रति गृहीताभिमुख्यं द्रव्यमिति द्रव्यलक्षणमयुक्तं, गुणपर्ययवद्र्व्यमिति तस्य सूत्रितत्वात् , तदागमविरोधादिति कश्चित् / सोपि सूत्रार्थानभिज्ञः। पर्ययवद्रव्यमिति हि सूत्रकारेण वदता त्रिकालगोचरानतक्रमभाविपरिणामाश्रयं द्रव्यमुक्तं / तच्च यदानागतपरिणामविशेष प्रत्यभिमुखं तदा वर्तमानपर्यायाक्रांतं परित्यक्तपूर्वपर्यायं च निश्चीयतेन्यथानागतपरिणामाभिमुख्यानुपपत्तेः खरविषाणादिवत् / केवलं द्रव्यार्थप्रधानत्वेन वचनेऽनागतपरिणामाभिमुखमतीतपरिणामं वानुपायि द्रव्यमिति निक्षेपप्रकरणे तथा जीवादि शास्त्रों का ज्ञाता आत्मा भविष्य में आने वाली पर्यायों के अभिमुख आत्मा भावी नो आगम द्रव्य है। तथा कर्म और नोकर्म के भेदों को धारण करने वाला तद्व्यतिरेक नोआगम द्रव्य निक्षेप है। वह तद्व्यतिरेक नो आगम द्रव्य निक्षेप ज्ञानावरण, दर्शनावरण आदि के भेद से अनेक प्रकार का है॥६३॥ वर्तमान में शरीर रूप से परिणत होने के लिए निरुत्सुक आहार वर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और तेजोवर्गणा रूप एकत्र हुए पुद्गल द्रव्य को नो कर्म समझना चाहिए। इसका विस्तार से वर्णन अबाधित रूप से आगमानुसार जानना चाहिए // 64-65 // शंका : अनागत परिणाम विशेष के प्रति गृहीताभिमुख परिणाम वाला द्रव्य कहलाता है परन्तु द्र का यह लक्षण युक्त नहीं है क्योंकि सूत्रकार ने द्रव्य का लक्षण गुण-पर्याय वाला कहा है अर्थात् 'गुणपर्ययवद् द्रव्यं' यह सूत्र हैं अतः इस कथन में आगम से विरोध आता है, ऐसा कोई कहता है। समाधान : इस प्रकार कहने वाला विद्वान् भी सूत्र के अर्थ से अनभिज्ञ (सूत्र के अर्थ को नहीं जानने वाला) है क्योंकि पर्ययवद् द्रव्यं-द्रव्य पर्याय वाला है, इस प्रकार कहने वाले सूत्रकार ने त्रिकालगोचर अनन्त क्रमभावी पर्यायों से आश्रित द्रव्य का कथन किया है। वह द्रव्य जब भविष्य में होने वाली विशेष पर्याय के सम्मुख होता है तो वह उस समय वर्तमान पर्याय से आक्रान्त है और भूत पर्याय से रहित है, ऐसे द्रव्य का निश्चय किया जाता है अर्थात् त्रिकाल गोचर पर्याय और गुणों का समूह द्रव्य कहलाता है अन्यथा (गुण पर्यायों से रहित द्रव्य) अनागत परिणामों पर्यायों के प्रति अभिमुख नहीं हो सकेगा। जैसे गधे का सींग भावी पर्याय के सम्मुख नहीं हो सकता अर्थात् उत्पाद व्यय ध्रौव्य तथा पूर्व स्वभाव का परित्याग, उत्तर स्वभाव का ग्रहण और स्थायी अंशों से ध्रुवपना यह द्रव्य का स्वरूप है। __केवल नित्य द्रव्यरूप अर्थ की प्रधानता से कथन करने पर भावी पर्याय की ओर अभिमुख तथा अतीत परिणामों को ग्रहण कर चुका है और अनपायी (ध्रुव) पदार्थ द्रव्य है। इस प्रकार भावी परिणाम की अभिमुखता की प्रधानता से निक्षेप प्रकरण में द्रव्य का लक्षण कहा गया है अर्थात् द्रव्य निक्षेप मूल द्रव्य में नहीं होता है क्योंकि द्रव्य तो नित्य है परन्तु पर्याय की अपेक्षा भावी पर्याय को वर्तमान में कहना द्रव्य निक्षेप कहलाता है।