SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 135 आत्मा तत्प्राभृतज्ञायी यो नामानुपयुक्तधीः / सोत्रागमः समाम्नातः स्याद्रव्यं लक्षणान्वयात् // 61 // अनुपयुक्तः प्राभृतज्ञायी आत्मागमः / कथं द्रव्यमिति नाशंकनीयं द्रव्यलक्षणान्वयात् / जीवादिप्राभृतज्ञस्यात्मनोनुपयुक्तस्योपयुक्तं तत्प्राभृतज्ञानाख्यमनागतपरिणामविशेष प्रति गृहीताभिमुख्यस्वभावत्वसिद्धेः // नो आगमः पुनस्त्रेधा ज्ञशरीरादिभेदतः / त्रिकालगोचरं ज्ञातुः शरीरं तत्र च त्रिधा // 62 // अनुपयुक्त धी (शास्त्र में जिसका उपयोग नहीं है ऐसा मानव) सम्यग्दर्शनादि के प्रतिपादक शास्त्रों का ज्ञाता वह आत्मा सर्वज्ञ की आम्नाय से आगम द्रव्य कहलाता है। द्रव्य के उक्त लक्षणों से अन्वित होने से द्रव्य कहलाता है॥६१॥ अर्थ की जानकारी है, परन्तु वर्तमान में उपयोग नहीं है तो भी उसको आगम का ज्ञाता कहते हैं। जीवादि के कथन करने वाले शास्त्रों का ज्ञाता, परन्तु वर्तमान काल में उसके उपयोग से रहित आत्मा द्रव्य कैसे कहलाता है? ऐसी शंका नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसमें द्रव्य निक्षेप का लक्षण अन्वय रूप से चला आ रहा है। जीव आदिक शास्त्रों का ज्ञाता किन्तु वर्तमान काल में उपयोग रहित आत्मा के आगम द्रव्य निक्षेप से व्यवहार होना उपयुक्त है क्योंकि उस आत्मा के भावी काल में होने वाले उन शास्त्रों के ज्ञान नामक विशेष परिणामों के प्रति गृहीताभिमुख स्वभावत्व की सिद्धि है अर्थात् यद्यपि सामान्य द्रव्य की अपेक्षा द्रव्य अनादि काल से है परन्तु पर्याय विशेष की अपेक्षा भावी पर्याय के सन्मुख को वर्तमान में उस पर्याययुक्त कहा जाता है। जो शास्त्रों का ज्ञाता तो है परन्तु वर्तमान में उपयोग रहित है तो भी वह वर्तमान में उस शास्त्र का ज्ञाता कहलाता है क्योंकि वह ज्ञान भविष्य में उपयोगयुक्त है। आगम द्रव्य निक्षेप का सहायक नो आगम द्रव्य है। ज्ञाता का शरीर, भावी और तद्व्यतिरेक के भेद से नोआगम द्रव्य निक्षेप तीन प्रकार का है। .. जीव शास्त्र वा मोक्ष शास्त्र को जानने वाले ज्ञाता का शरीर ज्ञायक शरीर कहलाता है। वह ज्ञायक शरीर भूत, भविष्यत् और वर्तमान के भेद से तीन प्रकार का है। वर्तमान और भावी शरीर का अर्थ सुगम है क्योंकि वर्तमान में शरीर धारण किया हुआ है और भविष्यत् में धारण करेगा। भूतकालीन शरीर च्युत च्यावित और त्यक्त के भेद से तीन प्रकार का है। भूत काल में अपनी आयु पूर्ण करके शरीर छोड़ा है वह च्युत कहलाता है जैसे देव नारकियों की पर्याय को छोड़कर यहाँ आये हुए ज्ञाता का शरीर च्युत कहलाता है। कदलीघात अकाल मरण करके आया है वह च्यावित कहलाता है और संन्यास मरण कर के शरीर छोड़ा है वह त्यक्त कहलाता है। ____ वर्तमान में जीवादि शास्त्र को जानने वाले ज्ञाता का शरीर वर्तमान है। भविष्य काल में ज्ञाता का शरीर होगा वह भावी है और जो भूत में हो चुका है वह भूत काल का शरीर कहलाता है॥६२॥
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy