________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 134 नैतत्सन्नाम सामान्यसद्भावात्तत्र तत्त्वतः / क्वान्यथा सोयमित्यादिव्यवहारः प्रवर्तताम्॥ 58 // नन्वेवं सति नाम्नि स्थापनानुपपत्तेस्तस्यास्तेन व्याप्तिः कथं न तादात्म्यमिति चेन्न, विरुद्धधर्माध्यासात्॥ तथाहिसिद्धं भावमपेक्ष्यैव स्थापनायाः प्रवृत्तितः / तदपेक्षां विना नाम भावाद्भिन्नं ततः स्थितम् // 59 // किं स्वरूपप्रकारं द्रव्यमित्याह;यत्स्वतोभिमुखं वस्तु भविष्यत्पर्ययं प्रति / तद्रव्यं द्विविधं ज्ञेयमागमेतरभेदतः // 60 // न ह्यवस्त्वेव द्रव्यमबाधितप्रतीतिसिद्धं वा, नाप्यनागतपरिणामविशेष प्रति ग्रहीताभिमुख्यं न भवति पूर्वापरस्वभावत्यागोपादानस्थानलक्षणत्वाद्वस्तुनः सर्वथा तद्विपरीतस्य प्रतीतिविरुद्धत्वात् / तच्च द्विविधमागमनोआगमभेदात् प्रतिपत्तव्यम् / / कथञ्चन किसी प्रकार से उसकी है अत: कृत नाम निक्षेप वाले के ही स्थापना होती है, ऐसा कैसे हो सकता है? उत्तर : ऐसी शंका करना उचित नहीं है। क्योंकि उसमें भी परमार्थ से सामान्य नाम विद्यमान है अन्यथा सामान्य नाम के बिना 'वह यह है' इत्यादि व्यवहार कैसे हो सकता है अर्थात् यह वह ऐसे व्यवहार की प्रवृत्ति सामान्य नाम के बिना किस में हो सकती है? अर्थात् नहीं हो सकती // 56-57-58 // प्रश्न : नाम निक्षेप के होने पर ही स्थापना की उत्पत्ति मानने पर स्थापना की नाम के साथ तादात्म्य सम्बन्ध स्वरूप व्याप्ति क्यों नहीं होगी? उत्तर : ऐसा नहीं कहना चाहिए क्योंकि नाम और स्थापना में विरुद्ध धर्म का आधार है। दोनों का धर्म पृथक्-पृथक् है अत: दोनों में तादात्म्य संबंध नहीं है। तथाहि सिद्ध (निष्पन्न) भाव की अपेक्षा स्थापना की प्रवृत्ति होती है परन्तु नाम निष्पन्न पदार्थ के बिना भी होता है इसलिए नाम और स्थापना पृथक्-पृथक् है अर्थात् स्थापना सार्थक नाम की होती है, नाम चाहे जिसका रखा जा सकता है अतः नाम निक्षेप से स्थापना निक्षेप भिन्न है // 59 // इस प्रकार स्थापना निक्षेप पूर्ण हुआ। द्रव्य निक्षेप का स्वरूप क्या है ? ऐसा पूछने पर कहते हैं जो वस्तु स्वतः भावी पर्याय के प्रति अभिमुख है, वह द्रव्य निक्षेप है, ऐसा जानना चाहिए। यह द्रव्य निक्षेप आगम और नो आगम के भेद से दो प्रकार का है // 60 / / अर्थात् अनागत परिणाम विशेष के अभिमुख को द्रव्य निक्षेप कहते हैं। अबाधित प्रतीति प्रसिद्ध द्रव्य अवस्तु नहीं है तथा अनागत परिणाम विशेष के प्रति गृहीताभिमुख (भावी पर्याय के ग्रहण करने के सन्मुख) द्रव्य नहीं है, ऐसा भी नहीं है क्योंकि पूर्व स्वभाव (पूर्व पर्याय) का त्याग करना उत्तर पर्याय का ग्रहण करना और द्रव्य रूप से स्थित रहना उत्पाद व्यय ध्रौव्य ही वस्तु का लक्षण है। इससे सर्वथा विपरीत की प्रतीति विरुद्ध है अर्थात् उत्पाद व्यय और ध्रौव्य से विपरीत कूटस्थ नित्य वा सर्वथा क्षणिक वस्तु नहीं है क्योंकि इस प्रकार की प्रतीति नहीं होती है। वह द्रव्यनिक्षेप आगम और नो आगम के भेद से दो प्रकार का है, ऐसा जानना चाहिए।