________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 131 व्यवहारगोचरत्ववत् / ततः सूक्तं सामान्यविशेषात्मनो वस्तुनः शब्दगोचरत्वं तथा शब्दव्यवहारस्य निर्बाधमवभासनात् / कथमेवं पंचतयी शब्दानां वृत्तिर्जात्यादिशब्दानामभावादिति न शंकनीयं, यस्मात्:तत्र स्याद्वादिनः प्राहुः कृत्वायोद्धारकल्पनाम् / जाते: प्रधानभावेन कांश्चिच्छब्दान् प्रबोधकान् // 51 // व्यक्तेः प्रख्यापकांश्चान्यान् गुणद्रव्यक्रियात्मनः / लोकसंव्यवहारार्थमपरान् पारिभाषिकान् // 52 // _____न हि गौरश्व इत्यादिशब्दाजातेः प्रधानभावेन गुणीभूतव्यक्तिस्वभावायाः प्रकाशने गुणक्रियाद्रव्यशब्दाद्वा यथोदिताद्व्यक्तेर्गुणाद्यात्मिकाया: प्राधान्येन गुणीभूतजात्यात्मनः प्रतिपादने स्याद्वादिनां कश्चिद्विरोधो येन सामान्यविशेषात्मकवस्तुविषयशब्दमाचक्षाणानां पंचतयी शब्दप्रवृत्तिर्न सिद्ध्येत् // तेनेच्छामात्रतंत्रं यत्संज्ञाकर्म तदिष्यते / नामाचार्यैर्न जात्यादिनिमित्तापन्नविग्रहम् // 53 // . चाँदी आदि से निर्मित कुण्डल के लाने का व्यवहार होता है, अत: सामान्य विशेषात्मक वस्तु शब्द का विषय है, ऐसा कहना ठीक है। ___इस प्रकार लोक में शब्दजन्य व्यवहार का बाधा रहित प्रतिभास होता है केवल सामान्य या केवल विशेषात्मक पदार्थ ही नहीं है अत: वे शब्द के विषय कैसे हो सकते है। जब सम्पूर्ण शब्दों का वाच्य सामान्य विशेषात्मक वस्तु है तब पूर्वोक्त जाति, गुण, क्रिया, संयोगी और समवायी इन पाँचों अवयवों में शब्द की प्रवृत्ति कैसे घटित हो सकती है, ऐसी शंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि-ऐसी शंका का निराकरण करते हुए स्याद्वादी कहते हैं कि- सामान्य विशेषात्मक वस्तु के प्रतिपादक शब्दों में से जातिवाचक शब्दों की व्यावृत्ति कल्पना करके प्रधान रूप जाति को समझाने वाले शब्दों को जाति शब्द माना जाता हैं-जैसे मनुष्य हाथी, घोड़ा, आदि। कुछ अन्य गुण, द्रव्य, क्रियास्वरूप, व्यक्तिभूत पदार्थों के कथन करने वाले शब्दों को लोक व्यवहार के लिए गुण शब्द, द्रव्य शब्द, और क्रिया शब्द कहा जाता है तथा अपने-अपने सिद्धान्तानुसार सम्यग्दर्शन, ब्रह्म, सु और जस आदि शब्दों को पारिभाषिक शब्द कहा है। ये सर्व शब्द सामान्य विशेषात्मक वस्तु के प्रतिपादक हैं॥५१-५२॥ ... 'गाय,' अश्व इत्यादि शब्दों से गौणभूत व्यक्ति के स्वभाव रूप जाति का प्रधानता से प्रकाशन करने में अथवा आगम कथित गुणादि आत्मक व्यक्ति की प्रधानता से गौणभूत जात्यात्मक पदार्थ का शब्द के द्वारा प्रतिपादन करने में स्याद्वादियों को कोई विरोध नहीं है। जिससे कि सामान्य विशेषात्मक वस्तु का विषय करने वाले शब्द को कहने वाले अनेकान्तवादियों के व्यवहार में पाँच प्रकार के शब्दों की प्रवृत्ति होना सिद्ध न हो अर्थात् सभी शब्दों का वाच्य अर्थ जाति और व्यक्ति (सामान्य विशेषात्मक) इन दोनों से तदात्मक पिण्डरूप हो रही वस्तु है। इसमें कभी जाति (सामान्य) की मुख्यता से कथन होता है और कभी व्यक्ति (विशेष) की मुख्यता से कथन होता है। जाति और व्यक्ति (सामान्य और विशेष) का रूप, रस के समान तदात्मक सहचर सम्बन्ध है। ___ इसलिए जाति द्रव्य गुण क्रिया की अपेक्षा न करके वक्ता की इच्छा से संज्ञा (नाम) कर्म किया जाता है (किसी का नाम रखा जाता है) आचार्यदव ने उसको नाम निक्षेप कहा है। यह नाम निक्षेप जाति, गुण, द्रव्य, क्रिया, परिभाषा आदि निमित्तों से युक्त नहीं है // 53 //