________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 129 यद्यत्र व्यवहतिमुपजनयति तत्तद्विषयं यथा प्रत्यक्षादि / जातिव्यक्त्यात्मके वस्तुनि व्यवहृतिमुपजनयत्तद्विषयं / तथा च शब्द इत्यत्र नासिद्धं साधनं बहिरंतश्च व्यवहृते: सामान्यविशेषात्मनि वस्तुनि समीक्षणात् / तथा च यत्रैव शब्दात् प्रतिपत्तिस्तत्रैव प्रवृत्तिः तस्यैव प्राप्तिः प्रत्यक्षादेरिवेति सर्वं सुस्थं / सत्ताशब्दाद्र्व्यत्वादिशब्दाद्वा कथं सामान्यविशेषात्मनि वस्तुनि प्रतिपत्तिरिति चेत् , सद्विशेषोपहितस्य सत्सामान्यस्य द्रव्यादिविशेषोपहितस्य च द्रव्यत्वादिसामान्यस्य तेन प्रतिपादनात् / तदने नाभावशब्दादद्रव्यत्वादित्वाद्वा तत्र प्रतिपत्तिरुक्ता भावांतरस्वभावत्वादभावस्य, गुणादिस्वभावत्वाच्चाद्रव्यत्वादेः भावोपहतस्याभावस्याभावशब्देन गुणाद्युपहितस्य _____ जो ज्ञान जिस विषय में व्यवहार को उत्पन्न करता है वह ज्ञान उस वस्तु का विषय करने वाला होता है। जैसे प्रत्यक्ष अनुमान आदि प्रमाण जाति व्यक्ति आत्मक वस्तु में व्यवहार के जनक हैं। अत: उनको उस वस्तु का विषय करने वाला माना गया है। वैसे शब्द ज्ञान भी जाति, व्यक्ति आत्मक वस्तु में व्यवहार को उत्पन्न करता है अत: शाब्द ज्ञान का विषय जाति व्यक्ति आत्मक वस्तु है। जाति व्यक्ति आत्मक वस्तु में व्यवहार को उत्पन्न कराना रूप हेतु असिद्ध भी नहीं है क्योंकि बहिरंग और अन्तरंग सामान्य विशेषात्मक (जाति व्यक्ति आत्मक) वस्तु में शाब्द ( शब्दजन्य) ज्ञान का व्यवहार देखा जाता है अर्थात् शब्द सुनकर प्राणी सामान्य विशेष आत्मक (आम्र से युक्त वृक्षादि) वस्तु में प्रवृत्ति करता है। _ तथा च (ऐसे होने पर) शब्द के द्वारा जिस वस्तु का ज्ञान होता है उसी में प्रवृत्ति होती है और उसी की प्राप्ति होती है जैसे अग्नि के ज्ञापक प्रत्यक्ष या अनुमान के द्वारा ज्ञाता की अग्नि के विषय में प्रवृत्ति होती है अतः शब्द ज्ञान का विषय सामान्य विशेषात्मक वस्तु है, यह सुव्यवस्थित है अर्थात् सामान्य विशेषात्मक वस्तु ही ज्ञान का विषय है। शंका : केवल सत्ता शब्द वाचक या द्रव्य गुण आदि वाचक शब्द के द्वारा सामान्य विशेषात्मक वस्तु का ज्ञान कैसे हो सकता है ? समाधान : सत् विशेष (घट पट आदि उपाधियों) से युक्त सत्ता सामान्य का सत्ता शब्द से और द्रव्यत्व गुणत्व आदि विशेष से युक्त द्रव्यत्वादि सामान्य का द्रव्यत्व, गुणत्व आदि विशेषणों से युक्त शब्दों के द्वारा प्रतिपादन होता है अर्थात् 'वृक्ष' इस शब्द से वृक्ष सामान्य का और आम्र वृक्ष' शब्द से वृक्ष विशेष का प्रतिपादन होता है और वैसा ही ज्ञान होता हैं सामान्य रहित विशेष और विशेष रहित सामान्य कोई वस्तुभूत पदार्थ नहीं है। - किं च- इस कंथन से “अभाव को कहने वाले अभाव शब्द से वा अद्रव्यत्व, अगुणत्व आदि को कहने वाले अद्रव्यत्व अगुणत्व आदि शब्द के द्वारा सामान्य विशेषात्मक वस्तु का ही ज्ञान होता है" यह कथन किया गया है क्योंकि भावस्वरूप विशेषणों से युक्त अभाव का अभाव शब्द के द्वारा तथा गुण कर्म आदि उपाधियों से तदात्मक गुण आदिक का अद्रव्य आदि शब्दों के द्वारा प्रकाशन (वाचन कथन) होता