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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 125 एकत्वारोपमात्रेण यदि दृश्यविकल्पयोः / प्रवृत्तिः कस्यचिदृश्ये विकल्पेप्यस्त्वभेदतः // 46 // नैकत्वाध्यवसायोपि दृश्यं स्पृशति जातुचित् / विकल्प्यस्यान्यथा सिद्धयेत् दृश्यस्पर्शित्वमंजसा।४७। विकल्प्यदृश्यसामान्यैकत्वेनाध्यवसीयते / यदि दृश्यविशेषे स्यात् कथं वृत्तिस्तदर्थिनाम् // 48 // तस्य चेद् दृश्यसामान्यैकत्वारोपाक्व वर्तनम् / सौगतस्य भवेदर्थेनवस्थाप्यनुषंगतः॥ 49 // नान्यस्माद्व्यावृत्तिरन्यार्थस्य न च व्यावृत्तोन्य एवेत्युच्यते घटस्याघट व्यावृत्ते: निवर्तमानस्याघटत्वसंगात् / तथा च न तस्या घटव्यावृत्ति म तस्माद्यैवान्या व्यावृत्तिः स एव व्यावृत्तः यदि बौद्ध लोग मानते हैं कि निर्विकल्प प्रत्यक्ष ज्ञान का विषयभूत दृश्य में और मिथ्यास्वरूप सविकल्प ज्ञान के विषयभूत विकल्प्य में एकत्व का आरोप करने मात्र से कभी किसी दृश्य में, कभी किसी विकल्प्य पदार्थ में शब्द की प्रवृत्ति होती है तब तो एकत्व रूप अभेद होने के कारण विकल्प ज्ञान का विषयभूत विकल्प में भी प्रवृत्ति होना सिद्ध हो जाता है॥४६॥ अथवा-दृश्य और निर्विकल्प दोनों विषयों में एकत्व का निर्णय करने वाला ज्ञान कभी भी वस्तुभूत दृश्य का स्पर्श नहीं करता है अन्यथा शीघ्र ही विकल्प ज्ञान के भी दृश्य विषय को स्पर्श करना सिद्ध हो जायेगा अर्थात् विकल्प ज्ञान दोनों को विषय करेगा। जो ज्ञान दोनों का विषय करता है वही तो दोनों के एकत्व का आरोप कर सकता है, सिंह और बिल्ली इन दोनों का जिसको एक साथ ज्ञान है वही मानव बिल्ली में सिंह का आरोप कर सकता है॥४७।। यदि कहो कि विकल्प्य और दृश्य विषयों में विकल्प ज्ञान के द्वारा सामान्य एकत्व का निश्चय कर लिया जाता है तो जैनी कहते हैं कि ऐसा मानने पर तो विशेष के अभिलाषी पुरुषों की विशेष दृश्य व्यक्ति में प्रवृत्ति कैसे हो सकेगी अर्थात्-एकत्व के आरोप से दृश्य (निर्विकल्प प्रत्यक्ष) स्वलक्षण का सामान्य रूप से ज्ञान होता है, परन्तु प्रवृत्ति तो विशेष अर्थ में ही होती है क्योंकि विशेष रहित सामान्य वृक्ष से आमअमरूद की प्राप्ति नहीं होती है॥४८॥ - सौगत मतानुसार यदि दृश्य और सामान्य में एकत्व का आरोप होने से व्यक्तिरूप दृश्य में प्रवृत्ति होती है तो उस शब्द की प्रवृत्ति बौद्धों के किस विशेष अर्थ में होती है अर्थात् किसी में भी प्रवृत्ति नहीं होती है। यदि एकत्व के समारोप से अर्थ में शब्द की प्रवृत्ति मानोगे तो अनवस्था दोष आयेगा अतः शब्द का वाच्य अर्थ अन्यापोह और कल्पित विकल्प्य नहीं हैं॥४९॥ कोई बौद्ध कहता है कि- अन्य अर्थ की व्यावृत्ति अन्य अर्थ से नहीं होती है और व्यावृत्त वस्तु पृथग्भूत ही है ऐसा नहीं कहना चाहिए अर्थात् अन्य व्यावृत्तियों से वास्तविक पदार्थ (स्वलक्षण) व्यावृत्त नहीं होते हैं। यदि ऐसा होगा तो अघट व्यावृत्ति से निवर्तमान घट के अघट का प्रसंग आयेगा और ऐसा होने पर उस घट की अघट व्यावृत्ति किसी प्रकार भी नहीं हो सकती इसलिए जो ही अन्य व्यावृत्ति है वही पदार्थ व्यावृत्त कहलाता है अर्थात् गोपदार्थ व्यावृत्त है और अगो व्यावृत्ति है गाय है ऐसा शब्द नहीं कहता है अगो व्यावृत्ति (भैंस, घोड़ा आदि नहीं हैं) ऐसा कहता है।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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