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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 124 साधनदूषणवचनानर्थक्यप्रसक्तेः / संवृत्या तद्वचनमर्थवदिति चेत् केनार्थेनेति वक्तव्यं ? तदन्यापोहमात्रेणेति चेत् , विचारोपपन्नेनेतरेण वा ? न तावत्प्रथमपक्षस्तस्य विचार्यमाणस्याकिंचिद्रूपत्वसमर्थनात्। विचारानुपपन्नेन त्वन्यापोहेन सांवृत्तेन वचनस्यार्थवत्त्वे बहिरर्थेन तथाभूतेन तस्यार्थवत्त्वं किमनिष्टं तथा व्यवहर्तुर्वचनाद्बहिः प्रवृत्तेरपि घटनात्॥ अन्यापोहे प्रतीते च कथमर्थे प्रवर्तनम् / शब्दात्सिद्ध्येज्जनस्यास्य सर्वथातिप्रसंगतः // 45 // ___ न ह्यन्यत्र शब्देन चोद्यतेन्यत्र तन्मूला प्रवृत्तिर्युक्ता गोदोहचोदने बलीवर्दवाहनादौ तत्प्रसंगात् // है। इस प्रकार बौद्धों का कहना भी अपना ही घात करने वाला वचन है। क्योंकि यदि शब्द किसी बहिरंग अर्थ के वाचक नहीं होंगे तब तो बौद्धों के द्वारा उच्चारित शब्द अपने सिद्धान्त के साधक और अपर सिद्धान्त के दूषक नहीं हो सकेंगे अत: शब्दों का उच्चारण करना ही व्यर्थ होगा। 'बौद्ध कहता है कि शब्द वास्तव में अर्थ का वाचक नहीं है परन्तु संवृत्ति (कल्पना) से बहिरंग अर्थ. का वाचक होता है। जैनाचार्य कहते हैं कि संवृत्ति शब्द किस अर्थ में प्रयुक्त है (किस अर्थ का वाचक है) इसका कथन बौद्धों को करना चाहिए। यदि शब्द अन्यापोह मात्र के वाचक हैं, ऐसा कहते हो तो वे अन्यापोह के वाचक शब्द विचारों से युक्त हैं कि विचार रहित हैं ? उसमें प्रथम पक्ष (अन्यापोह वाचक शब्द विचार सहित है) तो युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि उस अन्यापोह का यदि विचार किया जायेगा तो वह तुच्छाभावरूप अन्यापोह कुछ भी पदार्थ नहीं होगा, इसका पूर्व में समर्थन और कथन कर दिया गया है अर्थात् विचार करने पर अन्यापोह कुछ भी पदार्थ नहीं है अत: अन्यापोह का कथन करने वाले शब्द कुछ भी नहीं कहते हैं। यदि द्वितीय पक्ष के अनुसार विचारों से अपरीक्षित कल्पित व्यवहार्य (सांवृत) अन्यापोह के द्वारा शब्दों को अर्थवान् माना जायेगा तो तथाभूत बहिरंग घट पटादि पदार्थों के द्वारा शब्द को अर्थवान् (अर्थ का वाचक) मानना बौद्धों को अनिष्ट क्यों है तथा इस प्रकार व्यवहारी पुरुषों के वचन द्वारा भी बहिरंग अर्थों में प्रवृत्ति होना घटित हो जाता है अतः शब्द का वाच्य अर्थ बहिरंग आत्मा, आकाश आदि पदार्थ मानना चाहिए। ___ अथवा बौद्ध मतानुसार शब्द के द्वारा अन्यापोह में प्रवृत्ति करने पर व्यवहारी प्राणी की शब्द से अर्थ की प्रतीति कैसे होगी वा अर्थ की जानकारी कैसे होगी अर्थ प्रतीति नहीं होने पर सर्वथा अति प्रसंग दोष आयेगा अर्थात् लिखना, पढ़ना किसी बात को सुनकर कार्य में प्रवृत्ति करना आदि सर्व व्यवहार का लोप हो जायेगा॥४५॥ क्योंकि शब्द के द्वारा कथित विषय से भिन्न पदार्थ में प्रवृत्ति होगी। शब्द को मूल मानकर अन्यत्र प्रवृत्ति होना युक्त (युक्तिसंगत) नहीं है क्योंकि ऐसा मानने पर वक्ता के द्वारा गाय दूहने की प्रेरणा करने पर बैल आदि के वाहन आदि में प्रवृत्ति करने का प्रसंग आयेगा अर्थात् वक्ता कहता कुछ और है और प्रवृत्ति किसी और पदार्थ में होगी।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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