________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 116 सिद्ध्येत् येनाकृतीनां विशेषस्तद्व्यंग्यतयावतिष्ठेत / न तावत्स्वत एव तनिश्चितिरतिप्रसंगात् / परस्माद्विशेषणात्तद्विशेषो निश्चीयते इति चेत्, तद्विशेषणस्यापि कुतो विशेषोवसीयतां ? परस्माद्विशेषणादिति चेदनवस्थानात् / संस्थानविशेषा प्रतिपत्तिरिति कथं तद्व्यंग्याकृतिविशेषनिश्चयः / यदि पुनराकृतिविशेषनिश्चयादेतदभिव्यंजकसंस्थानविशेषनिश्चय: स्यादिति मतं तदा परस्पराश्रयणं, संस्थानविशेषस्य निश्चये सत्याकृतिविशेषस्य निश्चयस्तन्निश्चये सति संस्थानविशेषनिश्चय इति। स्वत एवाकृतिविशेषस्य निश्चयाददोष इति चेत् न, संस्थानविशेषनिश्चयस्यापि स्वत एवानुषंगात् / प्रत्ययविशेषादाकृतिविशेष: ये व्यक्ति, आकृति और जाति पद का वाच्य अर्थ है ऐसा स्वीकार करने पर आकृतिवादी नैयायिकों के कथन में कोई दोष नहीं आता है-ऐसा भी नहीं कह सकते। क्योंकि व्यक्ति, आकृति और जाति इन तीनों को वाच्यार्थ स्वीकार करने वाले के मतानुसार किसी पद का अर्थ व्यक्ति है, किसी पद का अर्थ आकृति है और किसी पद का अर्थ जाति है, यह सिद्ध हो जाने पर पद का अर्थ आकृति ही है यह एकान्त से कैसे घटित हो सकता है वा जाति ही, व्यक्ति ही और आकृति ही पद का वाच्य अर्थ है-ऐसा एकान्त स्वीकार करने पर तीनों पक्ष में कथित दोषों का अनुषंग (प्रसंग) आता है। किं च-संस्थान विशेष से अभिव्यक्त जाति को आकृति कहने वाले के संस्थानों (आकृतियों) का विशेषपना किस हेतु से सिद्ध होता है ? जिससे उस विशेष संस्थान से अभिव्यक्त आकृतियों की विशेष व्यवस्था हो सके वा विशेष संस्थान से अभिव्यक्त आकृतियाँ प्रगट रूप से व्यवस्थित हो सकें अर्थात् गोत्वं आदि रचना विशेष का हेतु क्या है, जिससे गोत्व आदि विशेष आकृतियों का बोध हो सके ? संस्थान विशेष का स्वयमेव निर्णय नहीं होता है क्योंकि स्वयमेव आकृतियों का निर्णय मान लेने पर अतिप्रसंग दोष आता है अर्थात् किसी भी आकृति का किसी में निर्णय हो जायेगा, गोत्व में हाथी का भी निर्णय हो जाने से अतिप्रसंग दोष आता है। दूसरे विशेषणों से संस्थान विशेष का निर्णय होता है ऐसा मानने पर तो उन संस्थान विशेष का निर्णय कराने वाले विशेषणों की विशेषताओं का निश्चय किस हेतु से किया जायेगा। उसका भी निर्णय दूसरे कारण से होता है-ऐसा मानने पर अनवस्था दोष आता है। तथा संस्थान विशेष का निर्णय (प्रतिपत्ति) न होने पर संस्थान विशेष से अभिव्यक्त आकृति विशेष का निश्चय वा निर्णय कैसे हो सकता है अर्थात् नहीं हो सकता। यदि पुनः आकृति विशेष के निश्चय से इस अभिव्यक्त आकृति विशेष का निश्चय हो जाता है, ऐसा मानते हो तो, अन्योऽन्याश्रय दोष आता है क्योंकि संस्थान विशेष का निश्चय होने पर आकृति विशेष का निर्णय होगा और आकृति विशेष का निर्णय होने पर संस्थान विशेष का निर्णय होगा इस प्रकार अन्योऽन्याश्रय दोष आयेगा। ___ स्वत: ही आकृति विशेष का निश्चय हो जाने से दोष नहीं आता है। ऐसा कहना भी उचित नहीं है क्योंकि ऐसा मानने पर संस्थान विशेष के भी स्वतः निश्चय होने का प्रसंग आयेगा।