________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 114 तथा डित्थादिशब्दाश्च पूर्वापरविशेषगम् / यदृच्छत्वादिसामान्यं तस्यैव प्रतिबोधकाः // 39 // न हि डित्थो डवित्थ इत्यादयो यदृच्छाशब्दास्तैरपि डित्थत्वाद्याकृतेरभिधानात् / / इत्येवमाकृतिं शब्दस्यार्थं ये नाम मेनिरे। तेनातिशेरते जातिवादिनं प्रोक्तनीतितः // 40 // जातिराकृतिरित्यर्थभेदाभावात्कथंचन / गुणत्वे त्वाकृतेर्व्यक्तिवाद एवास्थितो भवेत् // 41 // न सर्वा जातिराकृतिर्नापि गुणश्चतुरस्रादिसंस्थानलक्षणः। किं तर्हि ? संस्थानविशेषव्यंग्या जातिलॊहितत्वगोत्वादिराकृतिः सा च संस्थानविशेषानभिव्यंग्यायाः सत्त्वादिजातेरन्या। न सर्वं संस्थानविशेषेणैव व्यंग्यं तद्रहिताकाशादिष्वपि भावात् / द्रव्यत्वमनेनातद्व्यंग्यमुक्तं तथा गुणेषु संस्थानविशेषाभावात् / समवाय सम्बन्ध से स्थित सर्व क्रिया धर्मों को विषय करने वाला अभिव्यक्त पचन सामान्य का प्रतिपादन करता हैं। जैसे भ्रमण शब्द लोक में अनेक घूमने रूप क्रियाओं को विषय करने वाले भ्रमण सामान्य का कथन करता हैं। जैसे द्रव्य शब्द, क्रिया शब्द, संयोगी शब्द, समवायी शब्द आकृति को कहते हैं, वैसे ही डित्थ, डवित्थ आदि यदृच्छा शब्द भी पूर्वापर (पहले और पीछे) विशेषों में रहने वाले यदृच्छत्व आदि सामान्य के प्रतिबोधक हैं। अर्थात् पूर्वापर में रहने वाली सामान्य जाति रूप आकृति का ज्ञान कराने वाले हैं॥३९॥ डित्थ,' डवित्थ, पुस्त' इत्यादिक शब्द स्वतंत्र यदृच्छा शब्द नहीं हैं किन्तु उन डित्थ आदि शब्दों के द्वारा भी डित्थपना आदि आकृति का ही कथन होता है अर्थात् अपनी इच्छानुसार किसी का नाम रखा जाता है वह यदृच्छा शब्द (नाम) कहलाता है। वह यदृच्छा शब्द भी आकृति का ही द्योतक है। इस प्रकार जो आकृति को ही शब्द का वाच्य अर्थ मानते हैं, वे ऊपरी कथित नीति से जातिवाद का उल्लंघन नहीं करते हैं अर्थात् जाति के व्याप्य आकृति को शब्द का वाच्यार्थ मानना वा जाति को शब्द का वाच्यार्थ मानना एक ही है॥४०॥ कथंचन (किसी प्रकार से) जाति और आकृति में अर्थभेद का अभाव है अर्थात् जाति और आकृति एक ही पदार्थ हैं। तथा आकृति को गुण मान लेने पर व्यक्तिवाद की उपस्थिति हो जाती है // 40-41 // कोई वादी कहता है कि सर्व जातियाँ आकृति नहीं हैं और सम्पूर्ण चतुष्कोण त्रिकोण आदि संस्थान लक्षण वाले गुण भी आकृति नहीं हैं। प्रश्न : तो फिर आकृति किसको कहते हैं ? उत्तर : संस्थान विशेष से अभिव्यक्त लोहित्व, गोत्व आदि जाति आकृति हैं। वह आकृति संस्थान विशेष से अभिव्यक्त (प्रगट) नहीं होने वाली सत्व आदि जाति से पृथक् हैं। संस्थान आदि से रहित आकाश, काल आदि पदार्थों में सत्त्व, द्रव्यत्व आदि सामान्य जाति विशेष का सद्भाव होने से जाति सर्व संस्थान आदि से प्रगट होती है, ऐसा नहीं कह सकते। अत: सभी सामान्य संस्थान विशेष से ही प्रगट होता है, यह नियम नहीं है। तथा इस 1. काठ से निर्मित हाथी का नाम डित्थ है। 2. खैर की लकड़ी के बने हुए मनुष्य का नाम डवित्थ है और 3. कपड़े से निर्मित मनुष्य आदि को पुस्त कहते हैं।