________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 98 व्यभिचारात् / न च व्यभिचारिणामप्युपाधीनामभिधायकाः शब्दाः सविषयाणामस्वप्नादिप्रत्ययानां स्वप्नविषयत्वप्रसंगात् इति शुद्धद्रव्यपदार्थवादिनः / तेपि न परीक्षकाः। सर्वशब्दानां स्वरूपमात्राभिधायित्वप्रसंगात् / परेपि ह्येवं वदेयुः / सर्वे विवादापन्नाः शब्दा: स्वरूपमात्रस्य प्रकाशकाः शब्दत्वान्मेघशब्दवदिति। नन्विदमनुमानवाक्यं यदि स्वरूपातिरिक्तं साध्यं प्रकाशयति तदानेनैव व्यभिचार: साधनस्य / नोचेत् कथमतः साध्यसिद्धिरतिप्रसंगादिति दूषणं शुद्धद्रव्याद्वैतवाचकत्वसाधनेपि समान। व्यभिचारी उपाधियों को कहने वाले शब्द अपने वाच्य विषयों से सहित कैसे नहीं हैं अन्यथा (शब्द स्व विषय वाच्य सहित नहीं होगें तो) स्वप्न, मूर्च्छित आदि अवस्थाओं के ज्ञानों को भी स्वप्न आदि अर्थों के विषय कर लेने का प्रसंग आयेगा अर्थात् स्वप्नादि भी शब्द वा ज्ञान के विषय हो जायेंगे, निर्विषय नहीं रहेंगे। इस प्रकार शुद्ध द्रव्य पदार्थवादी कहता है। अब जैनाचार्य सर्वथा शुद्ध द्रव्य मानने वाले का खण्डन करते हैं : शुद्ध द्रव्य का कथन करने वाले भी परीक्षक (विचारशील) नहीं हैं क्योंकि जैसे उनके मतानुसार सम्पूर्ण शब्द शुद्ध द्रव्य के वाचक हैं वैसे ही सम्पूर्ण शब्दों को केवल अपने स्वरूप के कथन करने का प्रसंग आयेगा। शब्द का अर्थ उस शब्द को ही मानने वाले (शब्दाद्वैत) भी इस प्रकार कह सकते हैं कि विवादापन्न घट, पट आदि सर्व शब्द केवल अपने स्वरूप के ही प्रकाशक हैं, शब्द होने से। जैसे मेघ गर्जना आदि शब्द केवल अपने स्वरूप के ही वाचक हैं उन शब्दों का वाच्य अर्थ कुछ भी नहीं है (अर्थात् वे शब्द केवल अपने शब्द रूप शरीर का ही श्रावण प्रत्यक्ष कराते हैं किसी वाच्य अर्थ का शाब्द बोध नहीं कराते हैं। वैसे जीव अजीव आदि शब्द भी अपने स्वरूप को श्रावण का विषय कराते हैं, वाच्य अर्थ को प्रकाशित नहीं करते हैं।) ___ शुद्ध द्रव्यवादी शंका उठाकर कहता है कि- शब्दवादी के द्वारा प्रयुक्त (प्रयोग में लाया गया) यह अनुमान वाक्य यदि अपने शब्द स्वरूप से अतिरिक्त स्वरूप मात्र को प्रकाश करना रूप इस साध्य का ज्ञान कराता है, तब तो शब्दत्व हेतु का इस अनुमान से व्यभिचार आता है- क्योंकि शब्दवादियों के मतानुसार शब्द का वाच्य टिन-टिन भिन-भिन के सिवाय कुछ नहीं है परन्तु इस अनुमान में वाक्य से साध्य का ज्ञान कराना रूप अर्थ सिद्ध होता है। यदि अनुमान वाक्य स्वकीय साध्य का ज्ञान नहीं कराता है, ऐसा मानते हैं तो अनुमान वाक्य से साध्य की सिद्धि कैसे हो सकती है। अन्यथा (अनुमान से साध्य की सिद्धि के बिना ही वाच्यार्थ माना जायेगा तो) अति प्रसंग दोष आयेगा। अर्थात् आकाश के पुष्प की माला पहन कर बंध्या पुत्र जा रहा है इत्यादि अनर्थ वाक्यों से इष्ट की सिद्धि हो जायेगी। शब्दवादी कहते हैं यह दोष तो शुद्ध द्रव्यवादी के प्रति समान ही है अर्थात् अद्वैत शुद्ध द्रव्य वाचक शब्द का अर्थ सिद्ध करने वाले अनुमान में भी यह दोष आ सकता है।