________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 96 व्युत्पद्यन्ते वियति चेत्यनित्याः द्रव्यत्वाभावाच्चाद्रव्यत्वमिति कथ्यते। न चोपाधिविषयत्वादमीषां शब्दानामद्रव्यविषयत्वं येन तैः साधनस्य व्यभिचार एव सत्यस्यैव वस्तुनस्तरसत्यैराकारैरवधार्यमाणत्वादसत्योपाधिभिः शब्दैरपि सत्याभिधानोपपत्तेः / तदप्यभिधायि। “सत्यं वस्तु तदाकारैरसत्यैरवधार्यते / असत्योपाधिभिः शब्दैः सत्यमेवाभिधीयते।" कथं पुनरसत्यानुपाधीनभिधाय तदुपाधीनां सत्यमभिदधानाः शब्दा द्रव्यविषया एव तदुपाधीनामपि तद्विषयत्वात् अन्यथा नोपाधिव्यवच्छिन्नं वस्तुशब्दार्थः इति न चोद्यं, कतरद्देवदत्तस्य गृहमदो यत्रासौ काक इति स्वामिविशेषावच्छिन्नगृहप्रतिपत्ती काकसंबंधस्य निबंधनत्वेनोपादानेपि तत्र वर्तमानस्य गृहशब्दस्याभिधेयत्वेन काकानपेक्षणात् / रुचकादिशब्दानां च रुचकवर्धमानस्वस्तिकाद्याकारैरपायिभिरुपहितं सुवर्णद्रव्यमभिदधतामपि शुद्धसुवर्णविषयतोपपत्तेः / तदुक्तं। "अध्रुवेण निमित्तेन देवदत्तगृहं यथा। गृहीतं गृहशब्देन शुद्धमेवाभिधीयते // " “सुवर्णादि यथा युक्तं होने से रूपादि उत्पन्न होते हैं, विनाश को प्राप्त होते हैं, अत: रूप रस आदि अनित्य हैं उनमें द्रव्य का अभाव होने से वे अद्रव्य हैं ऐसा कहा जाता है परन्तु रूप आदि द्रव्य के सम्बन्ध से रहते हैं अत: द्रव्य हैं। इन रूपादि शब्दों को विशेषण के गोचर हो जाने से अद्रव्य गोचरत्व भी नहीं है अर्थात् ये रूप आदि द्रव्य के विशेषण रूप से शब्द का विषय होने से अद्रव्य भी नहीं हैं। जिससे उन अनित्य आदि शब्दों के द्वारा हमारे शब्दत्व हेतु में अनैकान्तिक दोष आता हो। क्योंकि, सत्य स्वरूप अद्वैत वस्तु का उन असत्य स्वरूप उत्पत्ति आदि आकार-प्रकारों से निर्णय किया जा रहा है तथा असत्य विशेषणों को धारण करने वाले विशेष्यों को कहने वाले शब्द के द्वारा सत्य पदार्थ का ही कथन किया जारहा है अर्थात् यद्यपि रूप, रस आदि अनित्य विशेषणों के द्वारा वस्तु उत्पन्न और विनष्ट होती दृष्टिगोचर हो रही है परन्तु वस्तु तो अद्वैत हैं, नित्य है। उस वस्तु के असत्य विशेषण वस्तु से पृथक्भूत नहीं हैं अत: उन असत्यभूत अद्रव्य विशेषणों के द्वारा वस्तु का कथन करने वाला शब्द वस्तुभूत द्रव्य का ही कथन करता है, अद्रव्य का नहीं। वही हमारे ग्रन्थों में कहा है- उस द्वैत रूप वस्तु के आकार (पर्याय) रूप असत्य पदार्थों के द्वारा सत्य वस्तु का ही निर्णय होता है तथा असत्य विशेषणधारी विशेष्यों (द्रव्यों) को कहने वाले शब्दों के द्वारा सत्य पदार्थ ही कहा जाता है। असत्य आकार वाले विशेषणों को कथन करके उन विशेषणों का वा उन विशेषण युक्त नित्य द्रव्यों का सत्य रूप से कथन करने वाले शब्द द्रव्य का ही विषय करते हैं, ऐसा कैसे कहा जा सकता है ? क्योंकि द्रव्यों के विशेषणों को भी शब्दों ने विषय किया है अन्यथा उपाधिरूप विशेषणों रहित वस्तु शब्द का विषय नहीं हो सकेगी अर्थात् विशेषणों को शब्द के द्वारा जानकर ही शुद्ध द्रव्य से उनकी व्यावृत्ति की जाती है। इस प्रकार कुतर्क करना उपयुक्त नहीं है - क्योंकि “जैसे किसी ने पूछा देवदत्त का घर कौनसा है ?" उत्तर मिला, जिस पर कौआ बैठा है वही देवदत्त का घर है, इस प्रकार घर के विशेष स्वामी से युक्त घर की प्रतिपत्ति (ज्ञान) कराने में कौए के सम्बन्ध को कारण माना गया है। वास्तव में, उस स्थान में स्थित घर शब्द का वाच्य अर्थ घर ही है इसमें काक की कोई अपेक्षा नहीं है। कौआ उड़कर दूसरे स्थान पर भी जा सकता है।