________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *95 केचिदाहुः / न नाना द्रव्यं नित्यं शब्दस्यार्थः किंत्वेकमेव प्रधानं तस्यैवात्मा वस्तुस्वभावः शरीरं तत्त्वमित्यादिपर्यायशब्दैरभिधानात्। यथैकोयमात्मोदकं नामेत्यात्मशब्दो द्रव्यवचनो दष्टः / वस्त्वेकं तेज इति जलं नामैकः स्वभावः शरीरं तत्त्वमिति च दर्शनानतिक्रमात्। यथा च द्रव्यमात्मेत्यादयः शब्दपर्याया द्रव्यस्य वाचकास्तथान्येपि सर्वे रूपादिशब्दाः प्रत्यस्तमयादिशब्दाश्च कथंचित् सदापन्नाः सर्वे शब्दा द्रव्यस्याद्वयस्य वाचका: शब्दत्वाद्र्व्यमात्मेत्यादिशब्दवत्। तदुक्तं / “आत्मा वस्तुस्वभावश्च शरीरं तत्त्वमित्यपि / द्रव्यमित्यस्य पर्यायास्तच्च नित्यमिति स्मृतम् // " इति / न च नित्यशब्देनोदयास्तमयशब्दाभ्यामद्रव्यशब्देन व्यभिचारस्तद्विपरीतार्थाभिधायकत्वादिति न मंतव्यं, द्रव्योपाधिभूतरूपादिविषयत्वादनित्यादिशब्दानां रूपादयो _ जिस नित्य द्रव्य को प्रतिपाद्य और प्रतिपादक ने (श्रोता और वक्ता ने) स्वयं नहीं जाना है उनके द्वारा किसी वाचक शब्द का संकेत ग्रहण भी कैसे हो सकता है। इसमें अति प्रसंग दोष आता है। (यदि बिना जाने ही शब्द संकेत का ग्रहण होगा तो परमाणु आदि में भी शब्द की प्रवृत्ति का प्रसंग आयेगा। वह इष्ट नहीं है।) ____ कोई कहते हैं कि- शब्द का वाच्यार्थ अनेक नित्य द्रव्य नहीं हैं- अपितु एक प्रधान द्रव्य (परमब्रह्म) ही शब्द का वाच्यार्थ (विषय) है। उस एक ही प्रधान द्रव्य का आत्मा, वस्तु स्वभाव, शरीर, तत्त्व, पदार्थ आदि पर्यायवाची शब्दों के द्वारा निरूपण किया जाता है। जैसे एक ही आत्मा जल इस शब्द से कहा जाता है तथा वह जल स्वरूप आत्मा का वाचक शब्द द्रव्य शब्द देखा जाता है। (जाना जाता है)। एक तेजो द्रव्य वस्तु है, यह भी उसी मुख्य द्रव्य को कहता है। इसी प्रकार जल नाम का एक स्वभाव या शरीर अथवा तत्त्व है वह भी मुख्य आत्म दर्शन का अतिक्रम नहीं कर रहा है अर्थात् वह भी एक आत्म तत्त्व का वाचक है। (कोई दार्शनिक पदार्थों को द्रव्य कहते हैं, कोई तत्त्व शब्द से कहते हैं, तथा कोई द्रव्य को भाव कहते हैं) अतः जैसे द्रव्य, आत्मा, वस्तु आदिक पर्यायवाची शब्द द्रव्य के ही वाचक हैं; उसी प्रकार अन्य भी सम्पूर्ण रूप, रस, आदिक शब्द अथवा उदय होना, अस्त होना, चलना-फिरना आदि सम्पूर्ण शब्द भी किसी अपेक्षा से सत् के साथ तादात्म्य रखते हुए द्रव्य के वाचक हैं। ___ इसी को अनुमान से सिद्ध करते हैं- आत्मा, ब्रह्म आदि शब्दों के समान शब्दात्मक होने से सभी शब्द अद्वैत द्रव्य के वाचक हैं ऐसा हमारे ग्रन्थों में भी कहा है-"आत्मा, वस्तु, स्वभाव, शरीर, तत्त्व, पदार्थ और भाव ये सभी 'द्रव्य' शब्द के ही पर्याय हैं और वह द्रव्य नित्य माना गया है। ऐसा-अनादिकाल से स्मृति में आ रहा है। वादी (मीमांसक) आदि अपने मत को पुनः पुष्ट कर रहे हैं। वैशेषिक कह रहा हैं कि- अनित्य शब्द, उत्पत्ति शब्द, विनाश शब्द और अद्रव्य शब्द के द्वारा शब्द हेतु में व्यभिचार आता है। क्योंकि अनित्य, उत्पत्ति, विनाश और अद्रव्य इन शब्दों में शब्दत्व हेतु विद्यमान है, किन्तु अद्वैत शब्द से विपरीत अर्थ को कहने वाले होने से वहाँ साध्य नहीं रहता है। ऐसी शंका नहीं करना चाहिए क्योंकि अनित्य आदि शब्दों के द्रव्य के उपाधि (विशेषण) भूत रूप, रस आदि विषय