________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 92 शब्दलक्षणतया हि जात्या व्यक्तेः प्रतिपत्तुरनुमानमर्थापत्तिर्वा ? प्रथमपक्षे न तस्याः व्यक्ते: स्वरूपेणासाधारणेनार्थक्रियासमर्थेन . प्रतीतिस्तेन जातेाप्त्यसिद्धेरन्वयात्तदंतरेणापि व्यक्त्यंतरेषूपलब्धेर्व्यभिचाराच्च, सामान्यरूपेण तु तत्प्रतिपत्तौ नाभिमतव्यक्तौ प्रवृत्तिरतिप्रसंगात्। यदि पुनर्जातिलक्षितव्यक्तिसामान्यादभिमतव्यक्तेः प्रतीतिस्तदा साप्यनुमानमर्थापत्तिर्वेति स एव पर्यनुयोगस्तदेव चानुमानपक्षे दूषणमित्यनवस्थानं शब्दप्रतीतया जात्या व्यक्तेः प्रतिपत्तिरेवेति चेत् , प्रतिनियतरूपेण सामान्यरूपेण वा ? न तावदादिविकल्पस्तेन सह जातेरविनाभावाप्रसिद्धेः। द्वितीयविकल्पे तु नाभिमतव्यक्ती शब्द लक्षित जाति के द्वारा व्यक्ति के ज्ञाता को ज्ञान अनुमान प्रमाण से होता है या अर्थापत्ति प्रमाण रूप है ? यदि प्रथम पक्ष (अनुमान प्रमाण) को स्वीकार करोगे तो उस व्यक्ति की अपने अर्थक्रिया करने में समर्थ असाधारण रूप से प्रतीति नहीं हो सकेगी क्योंकि व्यक्ति के (विशेष के) असाधारण स्वरूप के साथ जाति की व्याप्ति सिद्ध नहीं है क्योंकि जहाँ-जहाँ सामान्य जाति रहती है वहाँ-वहाँ असाधारण लक्षण से युक्त प्रकृत एक व्यक्ति रहती ही है, यह अन्वय व्याप्ति नहीं बन सकती। (उस रसोईघर या घास फूस की अग्नि के बिना भी दूसरी व्यक्तियों में धूम सहित अग्नि देखी जाती है) ऐसे ही सामान्य जाति के साथ अर्थक्रिया को करने वाली एक विशिष्ट व्यक्ति का अन्वय नहीं है क्योंकि उन विशेष व्यक्तियों के बिना भी दूसरी व्यक्तियों में जाति पायी जाती है। अत: विशेष साध्य के साथ व्याप्ति बनाने में व्यभिचार दोष भी आता है और सर्व देश एवं सर्व काल का उपसंहार करने वाली व्याप्ति भी नहीं हो सकती। यदि अन्य व्यक्तियों में (सामान्य) साधारण रूप से व्यक्ति की प्रतिपत्ति मानोगे तो प्रकृत अभीष्ट एक व्यक्ति में ज्ञाता की प्रवृत्ति नहीं हो सकेगी क्योंकि साधारण धर्मों का आधार तो प्रकृत व्यक्ति से अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों में भी है तथा दूसरे को (अर्थापत्ति को) प्रमाण स्वरूप स्वीकार करोगे तो अतिप्रसंग दोष आयेगा अर्थात् सामान्य के कहने पर अभीष्ट विशेष का ग्रहण नहीं होकर चाहे जिस विशेष का ग्रहण होने का प्रसंग आयेगा। यदि पुन: शब्द से जाति का निरूपण करके लक्षणा वृत्ति से व्यक्ति सामान्य को जानकर उस व्यक्ति सामान्य से अभिव्यक्ति (अभीष्ट व्यक्ति) की प्रतीति करोगे तो क्या सामान्य व्यक्ति से विशेष व्यक्ति का वह ज्ञान अनुमान है या अर्थापत्ति प्रमाण है? इसमें भी पूर्वोक्त प्रश्न रहेगा और अनुमान पक्ष में अनवस्था और पूर्वोक्त दूषण आयेगा। शब्द के द्वारा विशेष व्यक्ति का परिज्ञान नहीं हो सकेगा। .