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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 87 कालो दिगाकाशमिति शब्दाः कथं जातिविषयाः कालादिषु जातेरसंभवात्तेषामेक-द्रव्यत्वादित्यपि न शंकनीयं, कालशब्दस्य त्रुटिलवादिकालभेदेष्वनुस्यूतप्रत्ययावच्छे ये कालत्वसामान्ये प्रवर्तनात् / पूर्वापरादिदिग्भेदेष्वन्वयज्ञानगम्ये दिक्त्वसामान्ये दिक्छब्दस्य प्रवृत्तेः / पाटलिपुत्रचित्रकूटाद्याकाशभेदेष्वनुस्यूतप्रतीतिगोचरे चाकाशसामान्ये प्रवर्तमानस्याकाशशब्दस्य संप्रत्ययाजातिशब्दत्वोपपत्तेः। कालादीनामुपचरिता एव भेदा न परमार्थसंत इति दर्शनेन तज्जातिरप्युपचरिता तेष्वस्तु / तथा च उपचरितजातिशब्दा: कालादय इति न व्यक्तिशब्दाः / कथमतत्त्वशब्दो जातौ प्रवर्तत इति च नोपालंभः, तत्त्वसामान्यस्यैव विचारितस्यातत्त्वशब्देनाभिधानात्। तदुक्तं / “न तत्त्वातत्त्वयोर्भेद इति वृद्धेभ्य आगमः। अतत्त्वमिति मन्यते तत्त्वमेवाविभावितम्॥” इति। एतेन प्रागभावादिशब्दानां भावसामान्ये वृत्तिरुक्ता, _____एक द्रव्य होने के कारण काल आदिकों में रहने वाले कालत्व आदि जातियों की असम्भवता है अतः काल, दिक् और आकाश ये शब्द जाति को विषय करने वाले जाति शब्द कैसे कहे जा सकेंगे ? मीमांसक समझाते हैं कि इस प्रकार की शंका नहीं करनी चाहिए क्योंकि कालशब्द भी कालत्व जाति में रहता है। काल द्रव्य एक नहीं हैं किन्तु पल, विपल, त्रुटि, लव, श्वास, घड़ी, मुहूर्त, दिन, पक्ष, मास, ऋतु, अयन आदि काल-भेदों में अन्वय रूप से अनुभूत होकर ज्ञान के द्वारा कालत्व सामान्य जाना जाता है अत: काल शब्द ऐसा होने पर जाति को कहने वाला जाति शब्द है। अनेक व्यक्तियों में पाये जाने वाले कालत्व सामान्य में रहने वाला है तथा यह पूर्व दिशा है, वह पश्चिम भी दिशा है और यह उत्तर भी दिशा है इत्यादि प्रकार के अन्वय ज्ञान से व्यक्ति पूर्व, पश्चिम, उत्तर, आदि दिशा के भेदों में दिक्त्व सामान्य सब में रहता है, अत: दिक्शब्द की प्रवृत्ति दिक्त्व जाति में है। पटना, चित्रकूट आदि आकाश के विशेष भेदों में अन्वयज्ञान का विषय होने वाला आकाशत्व जाति में आकाश शब्द रहता है अतः आकाश शब्द को भी जाति शब्दपना सिद्ध होता है। काल, दिशा और आकाश तो वस्तुतः एक-एक द्रव्य हैं, घड़ी, मास, पूर्व-पश्चिम, चित्रकूट-पटना आदि भेद तो व्यवहार से ही कर लिये गये हैं। परमार्थरूप से अखण्ड द्रव्य में सद्भूत भेद नहीं हो सकते हैं, ऐसा सिद्धान्त मानने पर तो हम जातिवादी कह देंगे कि उनमें वह कालत्व, दिक्त्व, आकाशत्व जातियाँ भी व्यवहार से ही स्थापित कर ली जाने पर कोई हानि न होगी अत: यही सिद्ध हुआ कि काल आदिक शब्द उपचार से मानी गयी जाति के प्रतिपादन करने वाले शब्द हैं, एकांत रूप से व्यक्ति को कहने वाले शब्द नहीं हैं। शंका : अतत्त्व शब्द जाति में कैसे रहेगा ? क्योंकि अतत्त्व कोई वस्तुभूत नहीं है अत: उसमें रहने वाली कोई अतत्त्व जाति नहीं हो सकती है। मीमांसक कहते हैं कि यह उलाहना देना ठीक नहीं है क्योंकि हम अतत्त्वों का और तत्त्वों का सर्वथा निषेध करने वाला तुच्छ अभाव पदार्थ नहीं मानते हैं अपितु तत्त्व सामान्य का निषेध करते हैं क्योंकि नहीं विचारी हुई तत्त्व जाति ही अतत्त्व इस शब्द के द्वारा कही जाती है, सो ही कहा है कि “तत्त्व और अतत्त्वों में कोई भेद नहीं है।" इस प्रकार वृद्ध पुरुषों से चला आया हुआ आगम प्रमाण है। नहीं विचारे हुए तत्त्व को ही अतत्त्व ऐसा मानते हैं। उस अतत्त्व या अतत्त्वों में वस्तुभूत जाति ठहरती है।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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