________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक -58 कार्यविशेषादनीशस्य तद्धेतुधर्मविशेषोऽस्तीति किं न सिद्ध्येत्? तथा सति तस्य रूपादिज्ञानपंचकं नेंद्रियजं स्यात् / किं तर्हि धर्मविशेषजमेवेति चेत्, सर्वार्थज्ञानमप्येवमीशस्यांतःकरण माभूत् समाधिविशेषोत्थधर्मविशेषजत्वात् / तस्य मनोऽपेक्षस्य ज्ञानस्यादर्शनाददृष्टकल्पना स्यादिति चेत् / मनोऽपेक्षस्य वेदनस्य सकृत्सर्वार्थसाक्षात्कारिण: क्वचिद्दर्शनं किमस्ति येनादृष्टस्य कल्पना न स्या? सर्वार्थज्ञानं मनोऽपेक्षं ज्ञानत्वादस्मदादिज्ञानवदिति चेत् न, हेतोः कालात्ययापदिष्टत्वात् पक्षस्यानुमानबाधितत्वात् / तथाहि-सर्वज्ञविज्ञानं मनोऽक्षानपेक्षं सकृत्सर्वार्थपरिच्छेदकत्वात् यन्मनोऽक्षापेक्षं तत्तु न सकृत्सर्वार्थपरिच्छेदकं दृष्टं यथास्मदादिज्ञानं न च तथेदमिति मनोऽपेक्षत्वस्य निराकरणात् / नैयायिक कहता है कि यदि अनीश के कुछ धर्मविशेष से उत्पन्न पाँचों ज्ञान एक समय में मानोगे तो वह ज्ञान इन्द्रियजन्य नहीं कहलायेगा- अपितु धर्मविशेषजन्य कहलायेगा। इसके उत्तर में जैन लोग कहते हैं कि ऐसा मानने पर तो एक समय में सम्पूर्ण पदार्थों को जानने वाले ईश्वर का ज्ञान भी मन और इन्द्रियों से उत्पन्न हुआ नहीं कहलायेगा, अपितु चित्त की एकाग्रतारूप समाधिविशेष से उत्पन्न हुए पुण्यविशेष से उत्पन्न हुआ कहलायेगा। शंका - मन की अपेक्षा के बिना उत्पन्न ज्ञान दृष्टिगोचर नहीं होता है- अत: मननिरपेक्ष ज्ञान मानना अदृष्ट कल्पना करना है? उत्तर - यदि ईश्वर के ज्ञान को मननिरपेक्ष मानना अदृष्ट कल्पना है तो मनसापेक्ष एक समय में सम्पूर्ण पदार्थों को साक्षात् (प्रत्यक्ष) करने वाले ज्ञान का कहीं दर्शन हो रहा है- जिससे ऐसे ज्ञान की अदृष्ट (मनगढंत) कल्पना न समझी जावे। ऐसा भी नहीं कह सकते कि- सम्पूर्ण पदार्थों को प्रत्यक्ष करने वाला ज्ञान (केवलज्ञान) मन की अपेक्षा रखता है (मनोजन्य है); ज्ञान होने से, हम लोगों (संसारियों) के ज्ञान के समान (पक्ष में बाधित हेतु को कालात्ययापदिष्टहेतु कहते हैं) यह ज्ञानत्व हेतु पक्ष के अनुमान से बाधित होने से कालात्ययापदिष्ट हेत्वाभास है। तथाहि जैसे सर्वज्ञ का ज्ञान मन और इन्द्रियों की अपेक्षा नहीं रखता है- अर्थात् इन्द्रिय और मन के निमित्त से नहीं होता- क्योंकि वह सर्वज्ञ का ज्ञान एक समय में सर्व पदार्थों को जानने वाला है- जो ज्ञान मन और इन्द्रियों की अपेक्षा से होता है-वा इन्द्रियमनोजन्य हैवह एक समय में सम्पूर्ण पदार्थों को जान सकता है ऐसा नहीं देखा जाता- जैसे हम लोगों का ज्ञान / परन्तु सर्वज्ञ का ज्ञान एक समय में सर्व पदार्थों को जानता है, इसलिए सर्वज्ञ के ज्ञान में मन की अपेक्षा का निराकरण (निषेध) किया गया है।