________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-४५ कस्यचिदर्थस्यांक्षूणविधानायोगात् / सामान्यतस्तत्त्वोपदेशस्यालणविधानमाम्नायादेवेति चेत् तीनुमानादेव तत्तथास्त्विति किमागमप्रामाण्यसाधनायासेन। प्रत्यक्षानुमानाविषयत्वनिर्णयो नागमाद्विनेति तत्प्रामाण्यसाधने * प्रत्यक्षानुमानागमाविषयत्वविशेषनिश्शयोपि न केवलज्ञानाद्विनेति तत्प्रामाण्यं किं न साध्यते। न हि तृतीयस्थानसंक्रांतार्थ भेदनिर्णयासंभवेनुमेयार्थनिर्णयो .. नोपपद्यत इत्यागमगम्यार्थनिशयस्तत्त्वोपदेशहेतुर्न पुनश्चतुर्थस्थानसंक्रांतार्थनिश्शयोऽपीति युक्तं वक्तुं / तदा केवलज्ञानासंभवे तदर्थनिश्चयायोगात् / न च चोदनाविषयत्वमतिक्रांतचतुर्थस्थानसंक्रांत: कशिदर्थविशेषो न विद्यत एवेति युक्तं, सर्वार्थविशेषाणां चोदनया विषयीकर्तुमशक्तेस्तस्याः सामान्यभेदविषयत्वात्। . यदि कहो कि अनुमान और आगम प्रमाण से पदार्थों का ज्ञान विशद रूप से तो नहीं होता है परन्तु अनादिकालीन वेदवाक्य रूप आगम के द्वारा सामान्य रूप से अतीन्द्रिय तत्त्वों के उपदेश का सम्पूर्ण विधि-विधान निर्दोष होता है तो ग्रन्थकार कहते हैं कि तब तो अनुमान से उन अतीन्द्रिय पदार्थों का सामान्य ज्ञान हो जायेगा। (सम्पूर्ण पदार्थ अनेकान्तात्मक हैं सत्स्वरूप होने से, सर्व चराचर वस्तुएँ प्रकृति और पुरुष स्वरूप हैं प्रमेय होने से,इत्यादि अनुमान ज्ञान के द्वारा जीवादि पदार्थों का ज्ञान हो ही जायेगा) तब वेद को आगम प्रमाण रूप साधन सिद्ध करने के परिश्रम से भी क्या प्रयोजन है। - मीमांसक' कहता है कि प्रत्यक्ष और अनुमान ज्ञान के द्वारा नहीं जानने योग्य विषय का निर्णय आगम ज्ञान के बिना नहीं हो सकता इसलिए वेद रूप आगम का प्रमाणपना सिद्ध करने का प्रयास करते हैं तो ग्रन्थकार कहते हैं कि प्रत्यक्ष (संव्यवहारिक प्रत्यक्ष) अनुमान और आगम ज्ञान के अविषयभूत (आगम अनुमान और संव्यवहारिक प्रत्यक्ष के द्वारा नहीं जानने योग्य) विषयों का विशेष निर्णय भी केवलज्ञान के बिना नहीं हो सकता है। अतः उस केवलज्ञान को प्रमाणपना क्यों नहीं सिद्ध किया जायेगा (यानी अवश्य ही सिद्ध किया जायेगा। अर्थात् सूक्ष्म, विप्रकृष्ट और अन्तरित पदार्थ केवलज्ञान के द्वारा ही जाने जाते हैं।) * तृतीय स्थान में संक्रान्त पदार्थ (इन्द्रियप्रत्यक्ष और अनुमान ज्ञान के द्वारा नहीं जानने योग्य पदार्थ को तृतीय स्थान संक्रान्त पदार्थ कहते हैं) के भेद के निर्णय की असंभवता (निर्णय न) होने पर अनुमान से जानने लायक उन अतीन्द्रिय अर्थों का निर्णय नहीं हो सकता अतः (वेद रूप) आगम से जानने योग्य अर्थों का निश्चय करना तो तत्त्वों के उपदेश की प्राप्ति में हेतु है इसलिए आगम प्रमाण को मानना तो अत्यावश्यक है। परन्तु चतुर्थ स्थान संक्रान्त (प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम प्रमाण से अतिरिक्त केवलज्ञान से जानने योग्य) पदार्थ का निर्णय करना तत्त्वोपदेश की प्राप्ति में कारण नहीं है, इस प्रकार मीमांसकों का कहना उचित युक्तिसहित नहीं है- क्योंकि जिस प्रकार तृतीय आगम प्रमाण के द्वारा अर्थ का निर्णय किये बिना परमाणु आदि अनुमेय पदार्थों का निश्चय नहीं हो सकता है उसी प्रकार चतुर्थ केवलज्ञान के असम्भव में (यानी उसे स्वीकार न करने पर) पुण्य, पाप, स्वर्ग, मोक्ष आदि आगम के द्वारा जानने योग्य पदार्थों का निर्णय भी नहीं हो सकता। 1. मीमांसक प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति और अभाव ये छह प्रमाण मानते हैं। उसमें प्रत्यक्ष, अनुमान * और आगम ये तीन प्रधान हैं। इनमें तीसरा आगम है।