________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक - 38 संप्रदायाव्यवच्छेदाविरोधादधुना नृणाम्। सगोत्राद्युपदेशोऽत्र यद्वत्तद्वद्विचारत : // 6 // प्रमाणमागमः सूत्रमाप्तमूलत्वसिद्धितः / लैंगिकं चाविनाभाविलिंगात्साध्यस्य निर्णयात् // 7 // प्रमाणमिदं सूत्रमागमस्तावदाप्तमूलत्वसिद्धेः सगोत्राद्युपदेशवत् / कुतस्तदाप्तमूलत्वसिद्धिरिति चेत् संप्रदायाव्यवच्छे दस्याविरोधात् तद्वदेवेति ब्रूमः। कथमधुनातनानां नृणां तत्संप्रदायाव्यवच्छेदाविरोधः सिद्ध इति चेत्? सगोत्राद्युपदेशस्य कथं? विचारादिति चेत् मोक्षमार्गोपदेशस्यापि तत एव। कः पुनरत्र विचारः? सगोत्राद्युपदेशे कः? प्रत्यक्षानुमानागमैः परीक्षणमत्र विचारोऽभिधीयते सोमवंशः क्षत्रियोऽयमिति हि कश्चित्प्रत्यक्षतोऽतींद्रियादध्यवस्यति तदुच्चैर्गोत्रोदयस्य सद्गोत्रव्यवहारनिमित्तस्य साक्षात्करणात्। जिस प्रकार विचार से आजतक सम्प्रदाय के अव्यवच्छेद (गुरु परिपाटी के अनुसार) और विरोध रहित आया हुआ मनुष्यों के सद्गोत्र आदि का उपदेश है- अर्थात् वृद्ध परम्परा से चले आये मनुष्यों के गोत्र जाति आदि का उपदेश निर्दोष है, उसी प्रकार समीचीन विच्छेद रहित प्राचीन धारा से आजतक आया हुआ यह सूत्र है, इसमें कोई विरोध नहीं है। तथा यह सूत्र प्रामाणिक सत्य वक्ता को आधार मान कर प्रसिद्ध होने से आगम प्रमाण भी है, तथा अविनाभावी लिंग (समीचीन व्याप्ति को रखने वाले मोक्षमार्गत्व हेतु) से साध्य (सम्यग्दर्शनादि तीनों की एकतारूप) का निर्णय करने वाला होने से यह सूत्र अनुमान प्रमाण से भी सिद्ध है। // 6-7 // __यह सूत्र आगमप्रमाण है- क्योंकि आप्त पुरुषों को मूल कारण मानकर आजतक प्रवाह रूप से सिद्ध हो रहा है, जैसे कि सद्गोत्र-वर्ण आदि का उपदेश आगमप्रमाण रूप है। शंका- इस सूत्र को आगमप्रमाण मानने में आप्तमूलत्व (आप्त का कहा हुआ है यह) कैसे सिद्ध होता है? उत्तर- जिस प्रकार आज तक अव्यवच्छेद रूप से चले आये "सद्गोत्र-वर्ण जाति आदि वही हैं, जो पूर्व काल में थे" इसके मानने में कोई विरोध नहीं है, उसी प्रकार यह सूत्र भी अर्थतः सर्वज्ञ से लेकर आजतक अव्यवधान रूप धारा-प्रवाह से चला आ रहा है, इसमें कोई विरोध नहीं है, ऐसा हम कहते हैं अर्थात् यह सूत्र अर्थतः सर्वज्ञ के द्वारा प्रतिपादित है। ____ शंका- आज पर्यन्त के मनुष्यों तक उस आचार्य परम्परा का सम्प्रदायाव्यवच्छेद (धाराप्रवाह) का अविरोध कैसे सिद्ध हो सकता है, अर्थात् यह सूत्र धाराप्रवाह से सर्वज्ञकथित ही आ रहा है, यह कैसे सिद्ध होता है? उत्तर- सद्गोत्र आदि का उपदेश आजतक धाराप्रवाह से कैसे आ रहा है? यदि कहो कि श्रेष्ठ गोत्र आदि का उपदेश प्राचीन पुरुषों की सम्मति से, निर्णयात्मक विचार से चला आ रहा है- तो मोक्षमार्ग का उपदेश भी प्राचीन आचार्यों की परम्परा से निर्णयात्मक होने से धाराप्रवाह रूप से चला आ रहा है। यदि कहो कि मोक्षमार्ग में विचार क्या है, तो बताओ सद्गोत्र आदि के उपदेश