SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक- 278 शिष्टानामप्रत्यक्षेष्वर्थेषु सद्भावोपगमात् / तदनुपगमे स्वसमयविरोधात् / न हि सांख्यादिसमयेऽस्मदाधप्रत्यक्षः कश्चिदर्थो न विद्यते। चार्वाकस्य न विद्यत इति चेत्, किं पुनस्तस्य स्वगुरुप्रभृतिः प्रत्यक्षः। कस्यचित्प्रत्यक्ष इति चेत्, भवतः कस्यचित्प्रत्यक्षता प्रत्यक्षा न वा। न तावत्प्रत्यक्षा अतीन्द्रियत्वात् / सा न प्रत्यक्षा चेत् यद्यस्ति तदा तयैवानुपलब्धिरनैकांतिकी। _____ नास्ति चेत् तर्हि गुर्वादयः कस्यचित्प्रत्यक्षाः संतीत्यायातं / कथं च तैरनैकांतानुपलब्धिर्मोक्षाभावं साधयेद्यतो मोक्षोऽप्रसिद्धत्वाद्यथोक्तलक्षणेन लक्ष्यो न भवेत् / कः पुनस्तस्य मार्ग इत्याह स्वाभिप्रेतप्रदेशाप्तेरुपायो निरूपद्रवः। सद्भिः प्रशस्यते मार्गः कुमार्गोऽन्योऽवगम्यते॥५॥ ... सकता। क्योंकि सर्व ही शिष्ट (सज्जन) पुरुष अप्रत्यक्ष पदार्थ के सद्भाव को स्वीकार करते हैं। प्रत्यक्ष प्रमाण से अनुपलब्ध पदार्थ के सद्भाव को स्वीकार नहीं करने पर अपने सिद्धान्त में ही विरोध आता है- क्योंकि सांख्य, वैशेषिक बौद्ध आदि में भी हम लोगों के जो वस्तु दृष्टिगोचर नहीं है, उसका अभाव है- ऐसा स्वीकार नहीं किया गया है। ___ शंका- चार्वाक मत में तो जो वस्तु प्रत्यक्ष नहीं है, उसका अभाव ही मानते हैं? उत्तर- यदि चार्वाक प्रत्यक्षप्रमाणसिद्ध ही वस्तु को मानते हैं तो उनके स्वगुरु अभी इस समय प्रत्यक्ष हैं क्या? यदि कहो कि वे गुरु किसी के प्रत्यक्ष थे, तो हम पूछते हैं कि किसी के प्रत्यक्ष जो गुरु थे, वे तुम्हारे प्रत्यक्ष हैं कि नहीं? तुम्हारे प्रत्यक्ष तो हो नहीं सकते- क्योंकि तुम्हारे इन्द्रियों के वे इस समय विषय नहीं हैं। यदि इस समय गुरु आदि की प्रत्यक्षता नहीं है, परन्तु पूर्वकाल में वे थे अवश्य? ऐसा मानते हो तो 'जो प्रत्यक्ष प्रमाण से अनुपलब्ध है, उसका अभाव है।' यह हेतु अनैकान्तिक है अर्थात् यह अप्रत्यक्ष पदार्थ के अभाव को सिद्ध नहीं कर सकता। यदि यह हेतु अनैकांतिक (व्यभिचारी हेत्वाभास) नहीं है तो किसी के प्रत्यक्षप्रमाण के गोचर नहीं होते हुए भी गुरु आदि हैं- उनका प्रत्यक्ष न होते हुए अभाव नहीं है- यह सिद्ध होता है। अतः अनैकांतिक हेत्वाभास स्वरूप अनुपलब्धि हेतु से चार्वाक मोक्ष का अभाव कैसे सिद्ध कर सकते हैं। जिससे अप्रसिद्ध होने से यथोक्त लक्षण से मोक्ष लक्ष्य नहीं बन सकता हो। अर्थात् उपर्युक्त लक्षण से मोक्ष का अस्तित्व सिद्ध है- आगम और अनुमान प्रमाण के द्वारा सिद्ध होने से। मोक्ष का मार्ग . मोक्ष का मार्ग क्या है? ऐसा पूछने पर मोक्ष के मार्ग का कथन करते हैं अपने अभिप्रेत (इष्ट) प्रदेश की प्राप्ति का निरुपद्रव उपाय विद्वानों के द्वारा (मोक्ष का) मार्ग माना गया है। जो अभिप्रेत प्रदेश की प्राप्ति का उपाय नहीं है, वा जो उपद्रव सहित है- वह मार्ग नहीं, वह तो कुमार्ग है॥५॥
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy