________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक- 277 सम्प्रति मोक्षशब्दं व्याचष्टे निःशेषकर्मनिर्मोक्षः स्वात्मलाभोऽभिधीयते। मोक्षो जीवस्य नाऽभावो न गुणाभावमात्रकम् // 4 // न कतिपयकर्मनिर्मोक्षोऽनुपचरितो मोक्षः प्रतीयते स निःशेष कर्मनिर्मोक्ष इति वचनात् / नाप्यस्वात्मलाभः स स्वात्मलाभ इति श्रुतेः / प्रदीपनिर्वाणवत्सर्वथाप्यभावश्चित्तसंतानस्य मोक्षो न पुनः स्वरूपलाभ इत्येतन हि युक्तिमत्, तत्साधनस्यागमकत्वात् / नापि बुद्ध्यादिविशेषगुणाभावमात्रमात्मनः सत्त्वादिगुणाभावमात्रं वा मोक्षः, स्वरूपलाभस्य मोक्षतोपपत्तेः / स्वरूपस्य चानंतज्ञानादिकदम्बकस्यात्मनि व्यवस्थितत्वात् / नास्ति मोक्षोऽनुपलब्धेः खरविषाणवदिति चेत् न, सर्वप्रमाणनिवृत्तेरनुपलब्धेरसिद्धत्वादागमानुमानोपलब्धेः साधितत्वात्, प्रत्यक्षनिवृत्तेरनुपलब्धेरनैकान्तिकत्वात्, सकलमोक्ष का लक्षण अब मोक्ष शब्द का लक्षण कहते हैं 'सम्पूर्ण कर्मों का नाश और स्वात्म-लाभ ही मोक्ष कहा जाता है। जीव का अभाव तथा जीव के विशिष्ट गुणों का नाश मोक्ष नहीं है।।४।। - कुछ कर्मों का नाश मोक्ष प्रतीत नहीं होता। अतः 'निःशेष कर्म निर्मोक्ष' ऐसा कहा गया है। अस्वात्मलाभ भी मोक्ष नहीं है- इसलिए स्वात्मलाभ यही मोक्ष है ऐसा कहा गया है। शंका- प्रदीप के निर्वाण हो (बुझ) जाने के समान चित्तसंतान का सर्वथा नाश हो जाना ही मोक्ष है, स्वरूप लाभ नहीं। उत्तर- ऐसा कहना भी युक्तिसंगत नहीं है क्योंकि आत्मा के अभाव रूप मोक्ष को सिद्ध करने वाले हेतु का अभाव है। बुद्धि, सुख-दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म-अधर्म और संस्कार इन विशेष गुणों का अभावमात्र तथा सत्त्व-यानी सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण का अभाव भी आत्मा की मुक्ति नहीं है, क्योंकि स्वरूपलाभ के ही मोक्ष की उपपत्ति होती है, स्वरूप के नाश से नहीं। क्योंकि आत्मा में अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख, अनंतवीर्यादि आत्मस्वरूप का अवस्थान रहता है अर्थात् अनन्त चतुष्टय स्वरूप आत्मस्वभाव का लाभ ही मोक्ष है, आत्मस्वभाव का नाश नहीं। - प्रत्यक्ष उपलब्ध नहीं होने से मोक्ष नामक वस्तु है ही नहीं जैसे गधे के सींग अर्थात् जैसे उपलब्ध न होने से गधे के सींग नहीं हैं उसी प्रकार उपलब्ध न होने से मोक्ष भी नहीं है, ऐसा भी कहना उचित नहीं है क्योंकि सर्व प्रमाणों से अनुपलब्धि की असिद्धि है, आगम प्रमाण और अनुमान प्रमाण से मोक्ष की सिद्धि साधित है। आगम और अनुमान प्रमाण से मोक्ष प्रसिद्ध है। प्रत्यक्ष प्रमाण से मोक्ष अनुपलब्ध है अतः मोक्ष का अभाव है, यह भी हेतु अनैकान्तिक होने से आत्मा के अभाव को सिद्ध नहीं कर 1. बौद्ध आत्मा के अभाव को मोक्ष मानते हैं। 2. यौगिकबुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मसंस्कारलक्षणानां नवात्मविशेषगुणानां अत्यन्तोच्छेदो मोक्ष इति मन्यते।