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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-२७२ भावे समुद्भवति, तद्भाव एव तस्याः समुद्भवदर्शनात् / ततो न तया हेतोर्व्यभिचारः / पावकापायेपि धूमेन गोपालघटिकादिषूपलभ्यमानेनानैकांत इत्यप्यनेनापास्तं / शारीरमानसासातप्रवृत्ते: परापरोत्पत्तेरुपायप्रतिषेध्यत्वात् संचितायास्तु फलोपभोगतः प्रक्षयात् / न चापूर्वधूमादिप्रवृत्तिः स्वकारणपावकादेरभावेऽपि न निवर्तते यतो व्यभिचारः स्यात् / अतोऽनुमानतोऽप्यस्ति मोक्षसामान्यसाधनम् / सार्वज्ञादिविशेषस्तु तत्र पूर्वं प्रसाधितः / / 256 / / न हि निरवद्यादनुमानात् साध्यसिद्धौ संदेहः संभवति, निरवद्यं च मोक्षसामान्येऽनुमानं निरवद्यहेतुसमुत्थत्वादित्यतोनुमानात्तस्य सिद्धिरस्त्येव न केवलमागमात्, सार्वज्ञत्वादिमोक्षविशेषसाधनं तु प्रागेवोक्तमिति नेहोच्यते / तत्सिद्धेः प्रकृतोपयोगित्वमुपदर्शयति - एवं साधीयसी साधोः प्रागेवासन्ननिर्वृतेः। निर्वाणोपायजिज्ञासा तत्सूत्रस्य प्रवर्तिका // 257 // अग्नि के अभाव में भी इन्द्रजालिया आदि में उपलभ्यमान धूम के द्वारा हेतु व्यभिचारी है। अर्थात्- . इन्द्रजालिया अथवा रेलगाड़ी के निकल जाने के बाद अग्नि कारण के बिना भी धूम्र कार्य देखा जाता है- अत: 'कारण के बिना कार्य नहीं होता' यह हेतु व्यभिचारी है। इस प्रकार कथन करके हेतु में दोषों का उद्भावन करने वाले का भी उपर्युक्त कथन से खण्डन कर दिया है। क्योंकि प्रथम धूम की उत्पत्ति का कारण अग्नि ही है। शारीरिक, मानसिक असाता दुःख रूप प्रवृत्तियों की उत्तरोत्तर काल में उत्पत्ति-उपायों (व्रत, समिति, गुप्ति आदि) से निवृत्त हो जाने योग्य है। तथा पूर्वसंचित कर्म फल देकर नष्ट हो जाते हैं। परन्तु अपूर्व धूमादिक की प्रवृत्ति स्वकीय कारण माने गये अग्नि के अभाव में भी नष्ट नहीं होती है, यह नहीं समझ बैठना जिससे कि हेतु में व्यभिचार हो सके। भावार्थ- कारण के अभाव से दुःखों का निवृत्त हो जाना सिद्ध है, इसमें कोई दोष नहीं है। अतः मोक्ष सामान्य का साधन (सामान्य मोक्षतत्त्व की सिद्धि) अनुमान से भी हो रहा है। तथा मोक्ष में सर्वज्ञादि (अनन्तदर्शन, अनंत ज्ञान, अनन्तसुख, अनन्त वीर्यादि) विशेष गुणों की सिद्धि पूर्व में कर ही चुके हैं॥२५६॥ निर्दोष अनुमान से साध्य की सिद्धि हो जाने पर साध्य में संशय नहीं रहता है। तथा मोक्ष सामान्य सिद्धि में निर्दोष हेतु से उत्पन्न निर्दोष अनुमान है- अतः निर्दोष हेतु से उत्पन्न अनुमान से मोक्ष की सिद्धि है ही, केवल आगम से ही नहीं। सर्वज्ञत्व आदि विशेष मोक्ष साधन की सिद्धि तो पूर्व में कर दी है। अतः यहाँ पर उसका वर्णन नहीं किया गया है। ... अब उस मोक्ष की आगम और अनुमान से सिद्धि करने का इस प्रकरण में क्या उपयोग हुआ सो दिखाते हैं- इस प्रकार प्रथम आसन्न (निकट) भव्य सज्जन शिष्य के निर्वाण (मोक्ष) के उपाय (मार्ग) की जिज्ञासा सिद्ध (उत्पन्न) होती है, वह जिज्ञासा ही प्रथम सूत्र की प्रवर्तिका है।।२५७॥
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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