________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 215 चेद्विरोधः / कथमन्यथैकरूपतात्मनः / नानारूपत्वात्तस्यादोष इति चेन्न, अनवस्थानात् / यदि पुनरन्योऽर्थः कर्म स्यात्तदा प्रतिभासमानोऽप्रतिभासमानो वा? प्रतिभासमानश्चेत् कर्ता स्यात्ततोऽन्यत्कर्म वाच्यं, तस्यापि प्रतिभासमानत्वे कर्तृत्वादन्यत्कर्मेत्यनवस्थानान क्वचित्कर्मत्वव्यवस्था / यदि पुनरप्रतिभासमानोऽर्थः कर्मोच्यते तदा खरशृंगादेरपि कर्मत्वापत्तिरिति न किंचित्कर्म स्यादात्मवदर्थस्यापि प्रतिभासमानस्य कर्तृत्वसिद्धेः। यदि पुनरर्थः प्रतिभासजनकत्वादुपचारेण प्रतिभासत इति न वस्तुतः कर्ता तदात्मापि स्वप्रतिभासजनकत्वादुपचारेण कर्ताऽस्तु विशेषाभावात् / स्वप्रतिभासं जनयन्त्रात्मा कथमकर्तेति चेदर्थः कथं? जडत्वादिति चेत्तत एव स्वप्रतिभासं माजीजनत् / कारणांतराजाते प्रतिभासेऽर्थः प्रतिभासते न तु स्वयं प्रतिभासं जनयतीति चेत्, ___यदि आत्मा को जानना रूप क्रिया का वास्तविक कर्ता मानते हो तो उस कर्ता का कर्म क्या वस्तु है? क्या वह आत्मा ही जानना रूप क्रिया का कर्म है अथवा कोई अन्य पदार्थ कर्म है? यदि कहो कि वह आत्मा ही कर्म है तब तो मीमांसक दर्शन में विरोध आता है क्योंकि मीमांसक सिद्धान्त के अनुसार एक आत्मा में एक साथ दो धर्म नहीं रह सकते। यदि दो धर्म एक आत्मा में एक साथ रह जायेंगे तो “आत्मा की एकरूपता" घटित कैसे होगी? . (मीमांसक) आत्मा नाना रूप है, इसलिए उपर्युक्त दोष नहीं आते हैं, ऐसा भी कहना उचित नहीं है। क्योंकि ऐसा कहने पर अनवस्था दोष आता है। एकान्तवाद में वस्तु की व्यवस्था ठीक नहीं हो सकती। यदि कहो कि कर्ता (आत्मा) से भिन्न कर्म अन्य पदार्थ है। तो वह अन्य पदार्थ प्रतिभासमान (जानने योग्य) है? वा अप्रतिभासमान (नहीं जानने योग्य) है। यदि कर्म प्रतिभासमान स्वरूप है तो वह कर्ता ही है। उससे न्यारा कर्म दूसरा कहना पड़ेगा। क्योंकि मीमांसक मत में कर्ता और कर्म एक पदार्थ नहीं माने गये हैं। उस दूसरे भिन्न कर्म को भी प्रतिभासमान स्वरूप मानोगे तो वह फिर कर्ता हो जायेगा और उस कर्ता के द्वारा जानने योग्य फिर भिन्न कर्म तीसरा ही मानना पड़ेगा। अत: अनवस्था दोष आने से कहीं पर भी कर्मत्व की व्यवस्था नहीं हो सकेगी। . यदि कहो कि अप्रतिभासमान अर्थ कर्म है तब तो असत् पदार्थ स्वरूप 'गधे के सींग' के भी कर्मत्व का प्रसंग आयेगा। इस प्रकार कोई भी पदार्थ कर्म नहीं हो सकेगा। क्योंकि आत्मा के समान सभी पदार्थ प्रतिभासमान होने से उनके कर्तृत्व की सिद्धि होगी। अर्थात् सभी पदार्थ प्रतिभासित हो रहे हैं। अतः सभी कर्ता हो जायेंगे, कर्मपना नहीं आ सकेगा। ____ यदि कहो कि- प्रतिभास क्रिया का मुख्य रूप से कर्ता आत्मा ही है, परन्तु प्रतिभास का जनक हो जाने के कारण उपचार से अर्थ प्रतिभासक्रिया का कर्ता आरोपित कर दिया जाता है, वास्तव में,