________________ +14. 卐 प्रस्तावना // - आचार्य विद्यानन्द 1. आचार्य विद्यानन्द और पात्रकेसरी : पं. गजाधरलालजी ने आप्तपरीक्षा की प्रस्तावना लिखी है संस्कृत में। इसमें उन्होंने विद्यानन्दी या विद्यानन्द और पात्रकेसरी को एक ही व्यक्ति सिद्ध किया है। उन्होंने अपने लेख में पात्रकेसरी और विद्यानन्दाचार्य को एक ही व्यक्ति सिद्ध करने के लिए कितने ही प्रमाण भी दिये हैं, वे निम्नलिखित हैं इस भूतल पर न्यायशास्त्र के वेत्ता अनेक विद्वान् हुए हैं परन्तु दिगम्बर जैन सम्प्रदाय में विख्यात विद्यानंदी वा विद्यानन्द हैं। पात्रकेसरी का ही दूसरा नाम विद्यानंदी है। (1) 'सम्यक्त्वप्रकाश' ग्रन्थ में एक स्थान पर लिखा है"तथा श्लोकवार्त्तिके विद्यानंद्यपरनामपात्रकेसरिणा यदुक्तं तच्च लिख्यते। तत्त्वार्थ'श्रद्धानं सम्यग्दर्शनं, ननु सम्यग्दर्शनशब्दनिर्वचनसामर्थ्यादेव सम्यग्दर्शनस्वरूपनिर्णयादशेषतद्विप्रतिनिवृत्तेः सिद्धत्वात्तदर्थे तल्लक्षणवचनं न युक्तिमदेवेति कस्यचिदारेका तामपाकरोति।" इस संदर्भ में श्लोकवार्तिक के प्रणेता विद्यानंदी को ही सूचित किया है।, . (2) श्रवणबेलगुलनगर में श्री दौबली (भुजबली) जिनदास शास्त्री के द्वारा संचित ग्रन्थसंग्रह है। उसमें ताड़पत्र पर लिखा हुआ एक 'आदिनाथ पुराण' है। उस ग्रन्थ की टिप्पणी में लिखा है“पात्रकेसरीसंज्ञां दधानो विभुर्विद्यानंद एवेत्युद्घोषितः।" / पात्रकेसरी नाम को धारण करने वाले विद्यानंदी हुए हैं। (3) श्री ब्रह्म नेमिदत्त के कर-कमल से लिखित 'आराधना कथाकोष' में पात्रकेसरी की कथा है, इससे अनुमान लगाया जाता है कि पात्रकेसरी का ही दूसरा नाम विद्यानंदी है। (4) श्रीमान् वादिचन्द्र सूरि ने भी अपने हस्तलिखित ज्ञानसूर्योदय नाटक के चतुर्थ अंक में पात्रीभूत अष्टशती नामक स्त्री ने पुरुष के प्रति कहा है "देव ! ततोहमुत्तालितहृदया श्रीमत्पात्रकेसरिमुखकमलं गता। तेन साक्षात् कृतसकलस्याद्वादाभिप्रायेण लालिता पालिताष्टसहस्री तथा पुष्टिं नीता। देव! स यदि नापालयिष्यत् तदा कथं त्वामद्राक्षम् // " अर्थ - हे देव ! इसलिए मैं उत्तालित हृदय से श्री पात्रकेसरी के मुखकमल में चली गई। उसने साक्षात् किये हुए सकल स्याद्वाद के अभिप्राय से मेरा लालन-पालन किया और अष्टसहस्री नाम से मुझे