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________________ +13+ है। मूलानुगामी होने से यह पाठकों, स्वाध्यायियों को सहज ग्राह्य होगा, ऐसा विश्वास है। विधिवत् लौकिक शिक्षार्जन न होने पर भी पूज्य आर्यिकाश्री ने जो वैदुष्य प्राप्त किया है, वह उनकी साधना से अर्जित असाधारण आत्मबल का ही परिचायक है। तपश्चरण के माध्यम से ही स्वयं ज्ञानावरण का ऐसा विशाल क्षयोपशम हो जाता है कि जिसमें अंगपूर्व का ज्ञान स्वतः समुद्भूत हो जाता है। प्रस्तुत जटिल ग्रन्थ के सम्पादन का गुरुतर भार मुझ अल्पज्ञ पर डालकर पूज्य आर्यिकाश्री ने मुझ पर जो अनुग्रह किया है, एतदर्थ मैं आपका चिरकृतज्ञ हूँ। मुझमें कार्यनिष्पादन की वैसी योग्यता नहीं है, जो कुछ सम्भव हुआ है, उसमें आपका अनुग्रह ही प्रमुख है। मैं पूज्य माताजी के दीर्घ स्वस्थ जीवन की कामना करता हुआ उनके श्रीचरणों में सविनय वन्दामि निवेदन करता हूँ। संघस्थ ब्रह्मचारिणी बहन डॉ. प्रमिला जैन का उनके आलेखों के लिए आभार व्यक्त करता हूँ। पण्डित मोतीचन्दजी कोठारी की तैयार की हुई पाण्डुलिपि सुलभ कराने के लिए मैं प्रा. रतिकान्त शहा जैन, कोरेगाव का भी आभारी हूँ। पूर्वप्रकाशित कृतियों से भी इस संस्करण को तैयार करने में बहुत सहायता मिली है। मैं उनके सम्पादकों का आभारी हूँ। टीकाकार पं. माणिकचन्दजी कौन्देय न्यायाचार्य को सविनय नमन करता हूँ जिनकी भाषा टीका तत्त्वार्थचिन्तामणि' से अनुवादकार्य की गुत्थियों को सुलझाने में व सारांश तैयार करने में बहुत सहायता मिली है। उनकी अद्भुत प्रतिभा वन्दनीय है, अभिनन्दनीय है। परिशिष्ट में अन्य दर्शनों का परिचय दिया गया है। इसे तैयार करने में भी कई ग्रन्थों का साहाय्य लिया गया है। मैं उन सभी ग्रन्थकारों का हृदय से आभारी . इस संस्करण की कम्प्यूटरीकृत पाण्डुलिपि के प्रथम पाठक अनुज तुल्य मेरे प्रिय सुहृद् डॉ. राजकुमार छाबड़ा असिस्टेन्ट प्रोफेसर, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर का भी आभारी हूँ जिनकी सूक्ष्म दृष्टि ने छोटी-बड़ी कई भूलों का परिष्कार किया है। उनके सुझावों से यह संस्करण अधिक उपयोगी बन सका है। ग्रन्थ के प्रकाशन में जयपुर निवासी श्री डूंगरमलजी सुरेश कु०जी पाण्डया ने पूर्ण आर्थिक सहयोग प्रदान कर पूज्य माताजी के प्रति अनन्य भक्ति एवं जिनवाणी माँ के प्रति अटूट निष्ठा की अभिव्यक्ति की है। मैं प्रकाशक परिवार को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। . . कम्प्यूटर कार्य के लिये सीमा प्रिन्टर्स व उनके सहयोगियों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। सीमा प्रिन्टर्स, उदयपुर को त्वरित मुद्रण के लिये साधुवाद देता हूँ . इस सम्यग्ज्ञानरूपी महायज्ञ में अन्य भी जिन भव्य जीवों ने तन-मन एवं धन से किंचित् भी सहयोग किया है, मैं उन सभी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। मेरे प्रमाद एवं अज्ञान से भूलें रह जाना स्वाभाविक है। अतः पाठकों से विनम्र निवेदन है कि वे क्षमा प्रदान करते हुए सौहार्द भाव से मुझे उन भूलों से अवगत कराने की अनुकम्पा करें। प्रस्तुत ग्रन्थ के आगे के खण्डों का प्रकाशन यथाशीघ्र कर सकूँ, पूज्य माताजी से इसी आशीर्वाद की कामना करता हूँ। . अनन्त चतुर्दशी 12 सितम्बर, 2000 विनीत डॉ. चेतनप्रकाश पाटनी
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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