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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक - 155 विरोधात्तस्य भ्रांतत्वायोगात् बाधकाभावात्तथा स्वयमनिष्टेश्शेति। तर्हि स एवात्मा कर्ता शरीरेंद्रियविषयविलक्षणत्वात् / तद्विलक्षणोसौ सुखादेरनुभवितृत्वात्, तदनुभवितासौ तत्स्मर्तृत्वात्, तत्स्मर्तासौ तदनुसंधातृत्वात्, तदनुसंधातासौ य एवाहं यत् सुखमनुभूतवान् स एवाहं संप्रति हर्षमनुभवामीति निश्चयस्यासंभवबाधकस्य सद्भावात्। नन्वस्तु नाम कर्तृत्वादिस्वभावचैतन्यसामान्यविवर्तः कायादर्थान्तरसुखादिचैतन्यविशेषाश्रयो गर्भादिमरणपर्यंतः (यह चैतन्य वास्तव में नहीं, अपितु भ्रान्त है) स्वयं को अनिष्ट (इष्ट भी नहीं) है। समाधान : जैनाचार्य कहते हैं कि ऐसा कहने पर तो शरीर, इन्द्रिय और विषयों से विलक्षण होने से वह महाचैतन्य आत्मा ही सुखादि और ज्ञानादि पर्यायों का कर्ता है। आत्मा ही कर्ता, भोक्ता, स्मर्ता और अनुसन्धाता है शरीरादि से विलक्षण वह महाचैतन्य स्वरूप आत्मा सुख-दुःख आदि का अनुभव करने वाला होने से अनुभविता है। सुख-दुःखादि का बहुतकाल तक स्मरण करने वाला होने से महाचैतन्य स्वरूप आत्मा ही स्मर्ता है। पूर्व में मैंने इसका अनुभव किया था, इसको मैंने पूर्व में देखा था ऐसा स्मरण आत्मा को ही होता है। ___उन पूर्व में अनुभूत पदार्थों का अनुसंधान रखने वाला तथा पूर्वस्मरण और प्रत्यक्ष के साथ जोड़ रूप ज्ञान से एकत्व सादृश्य आदि विषयों का अवलम्बन लेकर स्वकीय परिणामों का प्रत्यभिज्ञान करने वाला होने से महाचैतन्य स्वरूप आत्मा ही अनुसन्धाता है। क्योंकि जिन सुखों का अनुभव मैं कर चुका हूँ वही 'मैं' इस समय सुखजन्य हर्ष (प्रसन्नता) का अनुभव कर रहा हूँ। इस प्रकार बाधकों से रहित निश्चय ज्ञान का सद्भाव होने से महाचैतन्य स्वरूप आत्मा की सिद्धि होती है। आत्मा अनादि अनन्त है ... शंका- कर्तृत्वादि स्वभाव वाला, चैतन्य सामान्य की पर्याय रूप, शरीर से भिन्न (अर्थान्तर), सुखादि चैतन्य विशेष का आश्रयभूत, गर्भादि से लेकर मरण पर्यन्त रहने वाला, सकलजनप्रसिद्ध आत्मतत्त्व है अर्थात् वह आत्मा गर्भ से मरण पर्यन्त ही रहने वाला है, न गर्भ के पूर्व था और न मरण के बाद उसका अस्तित्व रहता है। अन्त में मरते समय उस चैतन्य का दीपक के बुझने के समान आमूलचूल विनाश हो जाता है। वह पृथ्वी आदि से भिन्न तत्त्व है।
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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