________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-१३८ नापि ते कारका वित्तेर्भवंति सहकारिणः। स्वोपादानविहीनायास्तस्यास्तेभ्योऽप्रसूतितः // 113 // स्वोपादानरहिताया वित्तेः शरीरादयः कारकाः शब्दादेस्ताल्वादिवदिति चेन्न। असिद्धत्वात् / तथाहि नोपादानाद्विना शब्दो विद्युदादिः प्रवर्तते। कार्यत्वात्कुंभवद्यद्यदृष्टकल्पनमत्र ते॥११४॥ क्व काष्ठांतर्गतादग्नेरग्न्यन्तरसमुद्भवः / तस्याविशेषतो येन तत्त्वसंख्या न हीयते॥११५॥ . शरीर, इन्द्रिय और इन्द्रियों के रूपादि विषय आत्मा की उत्पत्ति के सहकारी कारण तो नहीं हैं। क्योंकि स्वकीय उपादान कारण के बिना उस चैतन्य की शरीर आदि सहकारी कारणों से उत्पत्ति नहीं हो सकती है (क्योंकि उपादान कारण के बिना कोई भी कार्य नहीं बनता है।)॥११३॥ चार्वाक कहते हैं कि स्वकीय उपादान रहित ज्ञान (आत्मा) की उत्पत्ति के शरीर आदि उसी प्रकार सहकारी कारण हैं, जिस प्रकार स्वकीय उपादान रहित शब्द, बिजली आदिक के सहकारी कारण तालू, कण्ठ, बादलों का घर्षण आदि हैं। किन्तु चार्वाक का यह कहना भी उचित नहीं है क्योंकि यह हेतु असिद्ध है। उपादान कारण के बिना किसी भी पदार्थ की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। इसी को आगे की कारिकाओं द्वारा कहते हैं . उपादान कारण के बिना शब्द, बिजली आदिक उत्पन्न नहीं होते हैं क्योंकि शब्दादि कार्य हैं। जो-जो कार्य होते हैं वे उपादान के बिना उत्पन्न नहीं होते हैं। जैसे उपादान रूप मिट्टी आदि के बिना घट उत्पन्न नहीं होता है। ... प्रश्न- घट का उपादान मिट्टी तो दृष्टिगोचर होती है परन्तु शब्द का उपादान तो अदृष्ट की कल्पना मात्र है। शब्द का उपादान दृष्टिगोचर नहीं होता है। उत्तर- काष्ठ के जलने पर अग्निरूप अवस्था में काष्ठ रूप पृथ्वी तत्त्व के भीतर अग्नि तत्त्व से दूसरी अग्नि उत्पन्न होती है। वह वहाँ दृष्टिगोचर हो रही है- चार्वाक उस अदृष्ट की कल्पना क्यों करते हैं। काष्ठ रूप पुद्गल ही अग्नि रूप परिणत होता है-ऐसा क्यों नहीं मानते हैं। और अग्नि तत्त्व के सिद्ध नहीं होने पर चार्वाक के तत्त्वों की संख्या क्यों नहीं नष्ट हो जायेगी। अतः जिस प्रकार अग्नि का उपादान कारण पुद्गल है-उसी प्रकार शब्द का उपादान कारण शब्द रूप परिणत होने योग्य भाषा वर्गणारूप पुद्गलस्कन्ध है। शब्द के उपादान कारण की कल्पना कल्पित नहीं है। अग्नि तत्त्व की उत्पत्ति में जिस प्रकार चार्वाक अदृष्ट पूर्व अग्नितत्त्व को उपादान मानते हैं, उसी प्रकार दृष्टिगोचर नहीं होने वाला भाषावर्गणा रूप पुद्गल स्कन्ध शब्द का उपादान है, ऐसा मानना चाहिए। क्योंकि चार्वाक के काठ के भीतर अमितत्त्व को अदृष्ट रूप से मानने में और शब्द के अदृष्ट उपादान कारणों के मानने में कोई अन्तर नहीं है।।११४११५॥