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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 132 तर्हि स्वसंविदित्वेतरत्वलक्षणसामान्यभेदाद्देहचैतन्ययोस्तत्त्वांतरत्वसाधनात् कथं कुटपटाभ्यां तस्य व्यभिचारः? स्याद्वादिनां पुनर्विशेषलक्षणभेदाढ़ेदसाधनेऽपि न ताभ्यामनेकांत:, कथंचित्तत्त्वांतरतया तयोर्भेदोपगमात् / सत्त्वादिसामान्यलक्षणभेदे हेतुरसिद्ध इति चेन्न / कथमन्यथा क्षित्यादिभेदसाधनेऽपि सोऽसिद्धो न भवेत्? असाधारणलक्षणभेदस्य हेतुत्वान्नैवमिति चेत्, समानमन्यत्र, सर्वथा विशेषाभावात्। चार्वाक मत में भी घट और पट में भिन्न लक्षणत्व हेतु सिद्ध नहीं है। अन्यथा (यदि चार्वाक मत में घट और पट में भिन्न लक्षणत्व मानते हैं तो) पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये चार ही तत्त्व हैं, यह व्यवस्था नहीं बन सकती। अर्थात् घट पट आदि अनेक तत्त्व स्वीकार करने पड़ेंगे। यदि घट, पट आदि में भिन्नभिन्न लक्षण होते हुए भी भिन्न तत्त्वपना नहीं मानते हैं तो पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इनके भी तत्त्वान्तर का अभाव होगा। अर्थात् ये चारों ही एक पुद्गल की पर्यायें सिद्ध होंगी। . पृथ्वी का सामान्य लक्षण पदार्थों को धारण करना है, जल का लक्षण द्रव रूप से बहना है, अग्नि का सामान्य लक्षण उष्णता है और वायु का सामान्य लक्षण ईरण करना, कम्पन करना है। अत: धारणादि लक्षण सामान्य भेद से अग्नि, वायु, पृथ्वी, जल इनमें भेद है, परन्तु विशेष लक्षणों से तत्त्वों में भेद नहीं होता है। जिससे कि घट, पट आदि के द्वारा व्यभिचार दोष का प्रसंग आता हो। अर्थात् घट, पट आदि तो एक पृथ्वी तत्त्व के ही परिणाम हैं, पृथक्-पृथक् तत्त्व नहीं हैं। अतः घट, पट आदि में भिन्न-भिन्न तत्त्व होने का प्रसंग नहीं आता है। जैनाचार्य कहते हैं कि शरीर और चैतन्य में भी सामान्य रूप से लक्षण भेद है। आत्मा स्वसंवेदन रूप है, ज्ञाता द्रष्टा है और शरीर बाह्य इन्द्रियों के द्वारा ग्राह्य है, जड़ है। इस प्रकार पूर्वोक्त अनुमान से सामान्य लक्षण से भेद रूप हेतु शरीर और आत्मा में तत्त्वान्तर (भिन्नतत्त्व) से भेद सिद्ध करता है। अतः घट और पट के द्वारा व्यभिचार कैसे आ सकता है? __किंच-विशेष लक्षणों के भेद से भेदसाधन करने पर स्याद्वाद मत में घट-पट से व्यभिचार नहीं आ सकता। क्योंकि शरीर और चैतन्य के समान घट और पट में भी, कथंचित् तत्त्वान्तर से भेद स्वीकार करते हैं। अर्थात् आत्मा और शरीर में द्रव्य रूप से भेद है, दोनों द्रव्य भिन्न हैं। और घट-पट में पर्याय रूप से भेद है अर्थात् दोनों पुद्गल द्रव्य की भिन्न पर्यायें हैं। द्रव्य एक पुद्गल है। (चार्वाक) सत्पना या प्रमेपयना आदि सामान्य लक्षण देह और चैतन्य में समान हैं, दोनों ही सत्त्व और प्रमेय हैं, सामान्य हैं अतः सत्वादि सामान्य की अपेक्षा लक्षण भेद करने पर यह हेतु असिद्ध है, क्योंकि सत्त्व सामान्य की अपेक्षा शरीर और आत्मा में भेद नहीं है। जैनाचार्य कहते हैं कि चार्वाक का यह कथन युक्तिसंगत नहीं है। क्योंकि अन्यथा (सत्त्व ज्ञेयत्व आदि सामान्य लक्षण तो पृथ्वी आदि में भी पाये जाते हैं अत:) उन पृथ्वी आदि के तत्त्वान्तर (भेद) सिद्ध करने पर चार्वाक कथित वह सामान्य लक्षण भेद हेतु भी असिद्ध हेत्वाभास क्यों नहीं होगा? अवश्य होगा। .. असाधारण लक्षण भेद के हेतुत्व होने से पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के तत्त्वान्तर सिद्ध करने में असिद्ध हेत्वाभास नहीं होगा। पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इन चारों तत्त्वों में असाधारण भेद है
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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