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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 104 सुगतोऽपि न मार्गस्य प्रणेता व्यवतिष्ठते / तृष्णाविद्याविनिर्मुक्तेस्तत्समाख्यातखड्गिवत् / / 77 // योऽप्याह। 'अविद्यातृष्णाभ्यां विनिर्मुक्तत्वात्प्रमाणभूतो जगद्धितैषी सुगतो मार्गस्य शास्तेति।' सोऽपि न प्रेक्षावान् / तथा व्यवस्थित्यघटनात्। न हि शोभनं संपूर्ण वा गतः सुगतो व्यवतिष्ठते, क्षणिकनिराम्रवचित्तस्य प्रज्ञापारमितस्य शोभनत्वसंपूर्णत्वाभ्यामिष्टस्य सिद्ध्युपायापायात्। वह मोक्षमार्ग का प्रणेता भगवान् अर्हन्त ही है, नामान्तर से स्तूयमान उस अर्हन्तदेव का किसी के द्वारा निवारण करना शक्य नहीं है। कपिल के समान सर्वव्यापक, सर्व शक्तिमान ईश्वर मोक्षमार्ग का प्रणेता नहीं हो सकता। तृष्णा (सांसारिक सुखों की अभिलाषा) और अविद्या (अनात्मक, क्षाणिक, अशुचि और दुःख स्वरूप पदार्थों को आत्मीय, नित्य, पवित्र और सुखरूप समझने का अभिमान करना) से रहित सुगत के भी मोक्षमार्ग का प्रणेता होना सिद्ध होता है सो यह सौगत मन्तव्य भी प्रमाणों से व्यवस्थित नहीं है। जैसे कि . विचारप्राप्त खड्गी मोक्षमार्ग का प्रणेता नहीं है।।७७।। .. सुगत मत समीक्षा जो भी कोई वादी (बुद्धमतानुयायी) यह कहता है कि "अविद्या और तृष्णा से रहित होने से प्रमाणभूत, .. सारे जगत् के प्राणियों का हित चाहने वाला, सुगत ही मोक्षमार्ग का शास्ता उपदेष्टा है तो जैनाचार्य कहते हैं कि वह बौद्धमतानुयायी हिताहित का विचार करने वाला नहीं है। क्योंकि उसके कथनानुसार बुद्ध की व्यवस्था घटित नहीं होती है। क्योंकि सुगत शब्द के निरुक्तिपरक अर्थ तीन हैं प्रथम- 'सु' उपसर्ग के प्रकरण में शोभन, सम्पूर्ण, सुष्ठ ये तीन अर्थ होते हैं। उनमें प्रथम के दो अर्थ तो बुद्ध में घटित नहीं होते हैं। परिशेष न्याय से तीसरा अर्थ ही ग्रहण करना पड़ता है। सुगत अर्थात् भली प्रकार चला गया। वह बुद्ध या उसका चित्त पुनः उत्पन्न नहीं होगा अर्थात् शून्यता को प्राप्त हो गया, उसको सुगत कहते हैं, यह अर्थ होगा। ___ सुगत शब्द का अर्थ यदि यह किया जाय कि 'सु' शोभनयुक्त होकर 'गतः' प्राप्त हो गया। भावार्थसंसारी प्राणियों की क्षणिक ज्ञान की संताने अनेक पूर्ववासनाओं के कारण तृष्णा और अविद्या के साथ उत्पन्न होती हैं, और नष्ट होती हैं। किन्तु सुगत की ज्ञान सन्तान तो अविद्या और तृष्णा की वासनाओं के आस्रव से रहित होकर भी क्षणिक उत्पन्न होती रहती है और मोक्ष अवस्था में भी उस चित्त की सन्तान उत्पन्न होती रहती है। अथवा सुगत का दूसरा अर्थ है, सम्पूर्ण रूप से पदार्थों को जानने वाला। ये दोनों ही अर्थ घटित नहीं होते हैं। क्योंकि आस्रव रहित क्षणिक चित्तों के उत्पादकों को बौद्धों ने शोभन रूप से और सम्पूर्ण पदार्थों को जानने वाली प्रज्ञा के पारगामी 'गतः' शब्द से इष्ट किया (माना) है। परन्तु इन दोनों अर्थों की सिद्धि के उपाय का अपाय (अभाव) है। सुगत सर्वास्रवों से रहित क्षणिक चित्तों का उत्पादक है, और सम्पूर्ण पदार्थों का ज्ञाता है; इस अर्थ की सिद्धि करने वाले प्रमाण का अभाव है। 1. सांख्य कपिल को सर्वज्ञ मानते हैं। वैशेषिक और नैयायिक ईश्वर को सर्वज्ञ मानते हैं और बौद्ध सुगत को सर्वज्ञ मानते हैं। 2. मुक्तावस्था में अवस्थित जीव को खड्गी कहते हैं।
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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