SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-६७ अथवा- . सूक्ष्माद्यर्थोपि वाध्यक्षः कस्यचित्सकलः स्फुटम्। श्रुतज्ञानाधिगम्यत्वानदीद्वीपाद्रिदेशवत् // 10 // धर्माधर्मावेव सोपायहेयोपादेयतत्त्वमेव वा कस्यचिदध्यक्षं साधनीयं न तु सकलोऽर्थ इति न साधीयः, सकलार्थप्रत्यक्षत्वासाधने तदध्यक्षासिद्धेः। संवृत्या सकलार्थः प्रत्यक्षः साध्य इत्युन्मत्तभाषितं स्फुटं तस्य तथाभावासिद्धौ कस्यचित्प्रमाणतानुपपत्तेः। न हेतोः सर्वथैकांतैरनेकांतः कथंचन। श्रुतज्ञानाधिगम्यत्वात्तेषां दृष्टेष्टबाधनात् // 11 // इन्द्रियों के बिना ही सूक्ष्म पदार्थों का साक्षात्कार करते हैं विशद ज्ञान होने से, इसमें विशद ज्ञान रूप हेतु का इन्द्रियों की अपेक्षा नहीं रखने रूप साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध नहीं है-ऐसा नहीं समझना चाहिए। क्योंकि सर्वज्ञ इन्द्रियों की अपेक्षा बिना विशद ज्ञान के द्वारा सूक्ष्म पदार्थों का उपदेश देते हैं; इसमें संशय का अयोग (संशय नहीं) है। अत: सर्वज्ञ को सिद्ध करने वाला ज्ञापक हेतु निर्दोष है।। __ अथवा-दूसरे अनुमान के द्वारा सर्वज्ञ की सिद्धि करते हैं- सूक्ष्म (परमाणु, आकाश आदि) और देशकाल से व्यवहित (मेरु, द्वीप, राम-रावणादि) सम्पूर्ण पदार्थ किसी-न-किसी आत्मा के पूर्ण स्पष्ट रूप से होने वाले प्रत्यक्ष ज्ञान के विषय हैं। क्योंकि वे पदार्थ श्रुतज्ञान के द्वारा जानने योग्य हैं। जो-जो पदार्थ श्रुतज्ञानगम्य हैं वे-वे पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष अवश्य होते हैं-जैसे नदी, द्वीप, पर्वत, देश आदि श्रुत में कथित हैं, अतः किसी के प्रत्यक्ष हैं॥१०॥ धर्म और अधर्म अथवा उपाय सहित छोड़ने योग्य एवं ग्रहण करने योग्य तत्त्व ही किसी के प्रत्यक्ष . है, ऐसा सिद्ध करना चाहिए-सकल पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष हैं, ऐसा सिद्ध नहीं करना चाहिए। ऐसा कहना भी उचित नहीं है- क्योंकि सूक्ष्मादि सकल पदार्थों के प्रत्यक्ष जानने की सिद्धि नहीं होने पर हेयोपादेय तत्त्व वा पुण्य-पाप को प्रत्यक्ष जानने की सिद्धि नहीं हो सकती। अर्थात् जो सकल पदार्थों को प्रत्यक्ष नहीं जानता है, वह पुण्य, पाप आदि पदार्थों को भी प्रत्यक्ष नहीं जान सकता। "वस्तुतः सकल पदार्थों को जानने वाला कोई नहीं है। केवल संवृत्ति (कल्पना) से सकल पदार्थों को प्रत्यक्ष करने वाला कोई है" ऐसा कहना भी पागलों का कथन है क्योंकि सकल पदार्थों का केवलज्ञान द्वारा विशद रूपं से प्रत्यक्ष करना यदि सिद्ध नहीं होगा (उसकी सिद्धि का इस प्रकार अभाव होगा) तो सूक्ष्म आदि किसी भी पदार्थ के अस्तित्व में प्रमाणता की अनुपपत्ति होगी अर्थात् कोई भी पदार्थ प्रमाण नहीं होंगे। . सर्वथा एकान्त के द्वारा श्रुतज्ञान अधिगम्य हेतु में किसी भी प्रकार से अनेकान्त (व्यभिचार) दोष नहीं आता है। क्योंकि नित्य आदि एकान्त प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण के द्वारा बाधित हैं। अर्थात् मीमांसक कहता है- कि सर्वथा एकान्त श्रुतिगम्य तो है- परन्तु किसी के प्रत्यक्ष नहीं है अतः जो श्रुतिगम्य है वह किसी के प्रत्यक्ष है, इसमें श्रुतज्ञानगम्य हेतु अनैकान्तिक है, ऐसा नहीं कहना चाहिए। क्योंकि वह एकान्त प्रत्यक्ष और अनुमान ज्ञान के द्वारा बाधित है। अतः वह एकान्त वस्तुभूत पदार्थ नहीं है // 11 // .
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy