________________ ध्यान का स्वरूप - जैनागमों में योग का अर्थ मुख्यत: ध्यान किया गया है। इस ध्यान से आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। किसी खास वस्तु पर विचार की एकाग्रता को ध्यान कहते हैं। साधारणत: मनुष्य का मन और विचार हमेशा चंचल रहते हैं। इन्हें किसी वस्तु पर केन्द्रित करना ही ध्यान है। आचार्य उमास्वामी ने ध्यान की परिभाषा करते हुए लिखा है कि 'उत्कृष्ट कायबन्ध वाले साधु के अन्तर्मुहूर्तपर्यन्त एकाग्रचिन्ता के रोध को ध्यान कहते हैं। आचार्य उमास्वामी के इसी अभिप्राय को ही आचार्य शुभचन्द्र ने अपने शब्दों में भी व्यक्त किया है। आचार्य उमास्वामी विहित सूत्र में जो 'एकाग्रचिन्तानिरोधो' कहा गया है। उसमें चार शब्द हैं. जो कि एक- प्रधान, अग्र- आलम्बन, चिन्ता-स्मृति और निरोध नियन्त्रण वाचक हैं। इस लक्षण का फलितार्थ यह हुआ कि किसी एक प्रधान आलम्बन में चाहे वह द्रव्य रूप हो या पर्याय रूप स्मृति का नियंत्रित करना-रोक रखना या अन्यत्र न जाने देना ध्यान कहलाता है। अथवा 'अङ्गति जानातीत्यग्रं आत्मा' इस निरुक्ति से 'अग्र' नाम आत्मा का है, सारे तत्त्वों में अग्रगण्य होने से भी आत्मा को अग्र कहा जाता है। द्रव्यार्थिक नय से एक नाम केवल, असहाय या नित्योदित का है, चिन्ता अन्त:करण की वृत्ति को और निरोध नियंत्रण तथा अभाव को भी ध्यान कहते हैं। इस दृष्टि से एक मात्र शुद्धात्मा में चित्तवृत्ति के नियंत्रण एवं चिन्तान्तर के अभाव को ध्यान कहते हैं जो कि केवल स्व-संवित्तिमय होता है। इस सूत्र में ध्याता के लिए केवल उत्तम संहनन पद ही दिया है / जिसका अस्थिबन्धन आदि सुदृढ़ और अभेद्य होता है उसे उत्तम संहनन कहते हैं। दिगम्बर व्याख्याकारों के अनुसार छह संहननों में से आदि के तीन संहनन ध्यान के लिए उत्तम है * किन्तु श्वेताम्बर व्याख्याकारों के अनुसार आदि के चार संहनन उत्तम हैं। यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि यह कथन सामान्य ध्याता का है। यह अशुभ ध्यान के ध्याता में कैसे संगत हो सकता है ? इसका उत्तर यह है कि जैन सिद्धान्त के अनुसार सप्तम नरक में वही मनुष्य मरकर जन्म लेता है जो प्रथम उत्तम संहनन का धारी होता है। अर्थात् जिस संहनन से मोक्ष की प्राप्ति होती है उसी संहनन से सप्तम नरक में उत्पत्ति होती है। अत: जैसे उत्कृष्ट शुभ ध्यान के लिए उत्तम संहनन आवश्यक है उसी प्रकार उत्कृष्ट अशुभ ध्यान के लिए भी उत्तम संहनन आवश्यक है। वजंवृषभनाराच, वज्रनाराच और नाराच ये तीन संहनन उत्तम हैं। इनमें मोक्ष का कारण तो प्रथम संहनन मात्र होता है, जबकि तीनों संहननों से ध्यान तो किया ही जा 1. ज्ञानार्णव, 1/23. 2. तत्त्वार्थसूत्र, 9/27. . 61