________________ नक्षत्र हैं जो शब्दों से नहीं अपितु स्वकीय दिव्याभा से अन्तस्तत्त्व का परिचय प्रकट करते हैं और उस परिचय से आलोकित होते हुए हजारों-हजारों साधक/पाठक उनके द्वारा निर्धारित/प्ररूपित मार्ग के माध्यम से साधना की अतल गहराइयों और उत्कृष्ट उँचाइयों, दोनों को समुपलब्ध हो पाने में सक्षम हो जाते हैं। _ वे किसी शिलालेख, ऐतिह्य साक्ष्य, पट्टावलियों या डायरियों की अपेक्षा किए बिना ही अपने अस्तित्व को अपनी रचनाओं से सिद्ध करते प्रतिबद्ध प्रतीत होते हैं। शायद इसमें उनका यह सन्देश भी होता है कि अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखने का नया आयाम कृतित्व की चमक से ही हो सकता है। ऐसे ही महान् साधकों में एक थे आचार्य शुभचन्द्र। जिनका दैहिक व कार्मिक परिचय भौतिक अस्तित्व के साथ ही इस भूतल से विलीन-जैसा हो गया। किन्तु उनकी उपलब्ध रचना ज्ञानार्णव ही उनका तथा उनकी रचनाधर्मिता का अद्भुत परिचय कराने में सक्षम है, जिसे समझने की सामर्थ्य योग्य साधक के पास ही मौजूद होती है। 51