________________ . बौद्धदर्शन के अनुसार संसार में दुःख ही दुःख है। इन दुःख समुदायों की जड़ें बहुत हैं, जिन्हें व्दादश निदान अथवा प्रतीत्यसमुत्पाद कहा जाता है।' दादश निदानों का सम्बन्ध भूत, वर्तमान और भविष्य के साथ होता है। आर्य सत्यों का निरोध करने के लिए अविद्या का निरोध अत्यावश्यक होता है। क्योंकि केवल अविद्या ही इन दादश निदानों की जड़ है। इस सन्दर्भ में दुःखनिरोध मार्ग की चर्चा करते हए बुद्ध ने मध्यम प्रतिपदा का मार्ग बतलाया है जो अष्टांग मार्ग से भी जाना जाता है। इसी मार्ग के सम्यक् सेवन से प्रज्ञा का उदय होता है और निर्वाण की प्राप्ति होती है। इस प्रकार संयम पूर्ण आचार-विचार की अनिवार्यता प्रतिपादित करते हुए बुद्ध ने शील, समाधि एवं प्रज्ञा का विधान किया है, जो कि योग के ही स्रोत हैं। इनके अतिरिक्त योगसाधना के विभिन्न अंगोपांगों की विस्तृत चर्चा 'मिलिन्दप्रश्न' में की है। बौद्ध योग में यद्यपि पातंजल योग की भांति व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध योग की चर्चा नहीं हुई है, तथापि बोधिप्राप्ति के लिए जो उपाय बतलाए हैं, वे निश्चय ही आध्यात्मिक अथवा योगमार्ग के सोपान हैं। जैनपरम्परा एवं योग - जैनधर्म के मौलिक ग्रन्थ आगम कहलाते हैं। जैनागमों में योग के अर्थ में अधिकतर ध्यान शब्द प्रयुक्त हुआ है। ध्यान के लक्षण, भेद, प्रभेद, आलम्बन आदि का विस्तृत वर्णन अनेक जैनागमों में मिलता है। षट्खण्डागम की धवला टीका में मुनियों के तप:कर्म के वर्णन में ध्यान के भेद-प्रभेद का वर्णन प्राप्त होता है। आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी दारा विरचित सभी अध्यात्मप्रधान ग्रन्थ समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पञ्चास्तिकाय, अष्टप्राभृत आदि ग्रन्थों में अध्यात्मध्यान-योग का विशद वर्णन किया गया है। . मुनि और श्रावक के आचार का वर्णन करने वाले आचार विषयक अनेक ग्रन्थों में भी ध्यान-योग सम्बन्धी वर्णन उपलब्ध होता है। मूलाचार में मुनियों के पंचाचारों के विवेचन में तप:आचार के अन्तर्गत पाँचवें अन्तरंग तप ध्यान नामक तप के वर्णन के प्रसङ्ग में ध्यान के भेद-प्रभेदों का वर्णन किया गया है / भगवती आराधना में भी तप आराधना के वर्णन में ध्यान-योग का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है / उमास्वामी कृत तत्त्वार्थसूत्र और इसके टीका ग्रन्थ सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थवार्तिक, तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिक, तत्त्वार्थवृत्ति आदि में भी ध्यान का विस्तार से वर्णन किया गया है / ध्यानशतक, 1. वही, भाग 2, परिच्छेद 16 पृ. 105. 2. वही, भाग 2, परिच्छेद 16, पृ. 121. 3. मिलिन्द प्रश्न, 6/1/1.