________________ - बोधि प्राप्त होने से पूर्व तथागत बुद्ध ने श्वासोच्छवास का निरोध करने का प्रयत्न किया था। उन्होंने अपने शिष्य से कहा कि मैं श्वासोच्छ्वास का निरोध करना चाहता था, इसलिए मैं मुख, नाक एवं कर्ण में से निकलते हुए सांस को रोकने का, उसे निरोध करने का प्रयत्न करता रहा। लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। इसलिए उन्होंने अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया।' बौद्ध योग में 'समाधि' का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसको प्राप्त करने के लिए 'ध्यान' का प्रतिपादन किया गया है। ध्यान चार प्रकार का बतलाया गया है, जो इस प्रकार है - 1. वितर्क विचार प्रीतिसुख एकाग्रता सहित, 2. प्रीतिसुख एकाग्रता सहित, 3. सुख एकाग्रता सहित और 4. एकाग्रता सहित। ध्यान की एकाग्रता के लिए योगी को आचार-विचार एवं नीति-नियमों का सम्यक् रूपेण पालन करना चाहिए, क्योंकि संयम के बिना ध्यान अथवा समाधि लगाना वैसे ही निरर्थक है, जैसे कि फूटे घड़े में पानी भरना। चित्तवृत्तियों की पूर्ण शान्ति एवं एकाग्रता के लिए भी संयमी तथा सदाचारी होना वांछनीय है। इन सारे आचार-विचारों का विस्तृत वर्णन सुत्तपिटकों में हुआ है / बौद्धागम में प्राणायाम को आजापानस्मृति कर्मस्थान कहा गया है। प्राणायाम की विधि के उपयोग की सार्थकता बताते हुए कहा है कि चित्त स्थिर रखने के लिए साधक को चाहिए कि वह शरीर को स्थिर करके श्वासोच्छ्वास ले। यदि इस पर भी उसका चित्त शान्त नहीं होता है तो साधक को चाहिए कि वह गणना, अनुबन्धता, स्पर्श, स्थापना का प्रयोग करे। बौद्ध योग में नैतिक जीवन के सिद्धान्त इस प्रकार माने जाते हैं - दान, वीर्य, शील, शान्ति, धैर्य, ध्यान और प्रज्ञा। क्योंकि इनके द्वारा व्यक्ति में उच्च भावों का विकास होता है तथा दृष्टि क्षिति का विस्तार होता है। बौद्ध योग-साधना में चार स्मृतियों अर्थात् कायानुपश्यना, वेदनानुपश्यना, चित्तानुपश्यना और धर्मानुपश्यना को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इन स्मृतियों के अन्तर्गत ही इन्द्रिय संयम, चार आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग, सप्त बौध्यंग, चार ध्यान तथा अनात्मवाद आते हैं। इस प्रकार शरीर को निश्चल करने का मार्ग बतलाकर संसार के चार कारणों अर्थात् चार आर्यसत्यों का उल्लेख किया गया है, जो निम्न हैं - __ 1. दुःख, 2. दुःखसमुदय, 3. दुःखनिरोध और 4. दुःखनिरोध के उपाय। 1. दि सूत्र ऑफ वे-लेंग, पृ. 47. __2. अंगुत्तरनिकाय, 63. 3. संयुत्तनिकाय, 5, 10. ___4. विशुद्धिमार्ग, भाग 1, परिच्छेद 8.