________________ अजफा-जप तथा नादानुसंधान, प्रत्याहार, धारणा और षट्चक्रभेद, कुंडलिनी योग, समाधि, अमृतसाधन एवं ध्यानयोग का विस्तृत विवेचन एवं प्रयोग मिलता है। बौद्धधर्म एवं योग - बौद्धधर्म की परम्परा निवृत्ति प्रधान मानी गई है। बौद्ध परम्परा में यह बात बहुत प्रसिद्ध है कि भगवान् बुद्ध बुद्धत्व प्राप्त होने से पहले छह वर्षों तक ध्यान साधना में लीन रहे। बौद्धधर्म पर योग का प्रभूत प्रभाव परिलक्षित होता है। सेनार्ट का तो यह विचार ही है कि बौद्धमत का उद्गम योग से हुआ है। इसी प्रकार पूसे बौद्धमत को योग की ही एक शाखा के रूप में मानते हैं। जो भी हो, इतना तो प्राय: निश्चित है कि प्रारम्भिक एवं परवर्ती बौद्धधर्म पर योग का अमिट प्रभाव पड़ा है। ___ भगवान् बुद्ध के जीवन से पता चलता है कि स्वयं उन्होंने भी योग की साधना की थी / संन्यास धारण करने के बाद उन्होंने योग की दीक्षा भी ली थी। बुद्ध को जिन दृश्यों के दर्शन से प्रव्रज्या की प्रेरणा मिली थी, उनमें एक प्रव्रजित का दृश्य भी था। उन्होंने उस समय के प्रसिद्ध योगी आलात कालाम से योग भी सीखा था। ललितविस्तर' से पता चलता है कि बुद्धकाल में योग की अनेक पद्धतियाँ प्रचलित थीं। इसके अतिरिक्त बोधगया के निकट लगातार छह वर्षों तक उन्होंने योग का अभ्यास किया था / वहाँ उन्होंने 'आस्थानकसमाधि' का अभ्यास करते हुए शरीर को इस प्रकार कस दिया था कि उनका आहार घटते-घटते चावल के एक दाने पर पहुँच गया था। किन्तु कालान्तर में बुद्ध को बोध हुआ कि इस प्रकार की साधना से दुःख का निरोध संभव नहीं है, अत: उन्होंने उसका परित्याग कर दिया। . बौद्ध साहित्य में योग के स्थान पर 'ध्यान' और 'समाधि' शब्दों का प्रयोग मिलता है। ध्यान बौद्ध धर्म का हृदय है। बौद्ध साधना पद्धति में ध्यान का अर्थ किसी विषय पर चिन्तन करना है। परन्तु अभ्यास के बिना कुछ भी संभव नहीं है, चित्त का अभ्यास ही ध्यान है। अथवा बाह्य विषयों की आसक्ति से मुक्त होना ही ध्यान है। 1. अमनस्कयोग, 152. 2. भक्तिकालीन हिन्दी-साहित्य में योग भावना, (अप्रकाशित शोध प्रबन्ध) पृ.77. 3. बौद्धधर्म-दर्शन, पृ. 282. 4. इंडियन फिलॉसफी, डॉ. राधाकृष्णन्, खंड 1, पृ. 355-6 की पादटिप्पण . 5. समन्तपासादिका, पृ. 145-6. 6. ध्यान सम्प्रदाय, पृ. 81.