________________ की साधना ज्ञान से होती है, इसलिए श्रवण, मनन एवं निदिध्यासन द्वारा ज्ञान प्राप्त करके साधक भवसागर को पार करता है। अब्दैत वेदान्त आत्मा को ब्रह्म से भिन्न नहीं मानता है। वहाँ ब्रह्म को सम्पूर्ण सृष्टि का आधार मानते हुए दो रूपों में वर्णित किया गया है - सगुण और निर्गुण। निर्गुण रूप ही उसका वास्तविक रूप है, जो कि सभी प्रकार के विकारों से रहित और निष्क्रिय होता है। हमारे शरीर में स्थित जो आन्तरिक चेतन तत्त्व है वही आत्मा है। ब्रह्म के सगुण रूप का एकनिष्ठ ध्यान करना और उसमें लीन होना ही योग का वास्तविक स्वरूप है।' वेदान्तसार में समाधि के दो प्रकार बतलाए गए हैं - सविकल्पक और निर्विकल्पक। निर्विकल्पक समाधि के यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि ये आठ भेद बतलाये जाते हैं। वहाँ ब्रह्म और आत्मा में रुक-रुककर अन्त:करण की वृत्ति के प्रवाह को ध्यान कहा गया है। श्रद्धा, भक्ति, ध्यान और योग मुक्ति का कारण है, इससे ही देहबन्धन का उच्छेद होता है। ___ अद्वैत वेदान्त का परम लक्ष्य मोक्ष ही होता है। मोक्ष की प्राप्ति ज्ञान से ही होती, न कि कर्म से / मोक्ष तो स्वयं आत्मा का स्वरूप है, वह पहले से ही सिद्ध है, अत: कर्म दारा उसे प्राप्त करना सम्भव नहीं होता। अज्ञान रूपी आवरण दूर होने से उसकी प्रतीति नहीं होती अपितु ज्ञान के प्रकाश से वह प्रगट हो जाती है। यही उसकी प्राप्ति है। जब साधक इस स्थिति में पहुँचता है तो उसका अज्ञान नष्ट हो चुका होता है उसे सर्वत्र ब्रह्म ही ब्रह्म भासित होता है। __ नाथ सम्प्रदाय एवं योग - नाथ योग के उद्भव के विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन माना जाता है कि इसका प्रारम्भ अथवा पुनःस्थापन गोरखनाथ से हुआ है। गोरखनाथ का समय 10 वीं अथवा 11वीं शती से पूर्व का है, जो इस सम्प्रदाय का समय माना जा सकता है। नाथ सम्प्रदाय में मुख्यत: नौ नाथ माने जाते हैं - 1. गोरखनाथ, 2. ज्वालेन्द्रनाथ, 3. कारिणनाथ, 4. गाहिनीनाथ, 5. चर्पटनाथ, 1. वेदान्तदर्शन का इतिहास, पृ. 1. 2. वेदान्तसार, 187. __ 3. वेदान्तसार, 191. 4. तत्राद्वितीयवस्तुनि विच्छिद्य विच्छिद्यानतरिन्द्रियवृत्तिप्रवाहो ध्यानम्। - वही, 198. 5. ब्रह्मसूत्र (शांकरभाष्य) 1/1/4. 6. सर्वदर्शनसंग्रह, पृ. 763. 7. Siddha Siddhanta Paddhati and other work of Nathyogis, P. 7. 16