________________ में शक्ति की जो महत्त्ववृद्धि हुई वह चरम पर थी / मंत्रप्रयोग, कुंडलिनीसाधना एवं पंचमकारोपासना का आधिक्य इसी समय में दिखाई देता है। शाक्तों के धर्मग्रन्थों को तंत्र के रूप में माना जाता है। काश्मीर के शैवमत में भी तंत्रों की स्वीकृति मिलती है। इसलिए काश्मीरी शैवों को शैव एवं शाक्त दोनों माना जाता है। शैव जहाँ परमशिव को महत्त्व देते हैं वहीं शाक्त पराशक्ति को / शाक्तों में शैवों की तरह शाक्ती, शांभवी और मंत्री दीक्षा होती है। इस साधना में मंत्रों का महत्त्व विशेष होता है। इनमें अकल्पनीय शक्ति का निवास माना जाता है। इस शाक्तसाधना में षट्चक्र भेद दारा शिव और शक्ति का मिलन ही मुख्य होता है। इस शरीर में 72000 नाडि+याँ मानी गई हैं। इस शरीर का आधार मेरुदंड है और इसी को आधार बनाकर नाडि+याँ फैली हुई हैं। इनमें सुषुम्ना सर्वप्रमुख है। इसी में षट्चक्रों की स्थिति मानी जाती है। चक्र, चक्राधिदेव, देवता, शक्ति, बीजाक्षरयंत्र, बीजवाहन आदि का विस्तृत वर्णन शाक्त योग में मिलता है। इस शाक्तयोग में वाणी की अभिव्यक्ति की प्रक्रिया को भी समझाया गया है।' __अब्दैतवेदान्त एवं योग -- भारतीय दर्शनों में वेदान्त का प्रमुख स्थान है। यह दर्शन केवल सैद्धान्तिक ही नहीं है अपितु व्यावहारिक भी है। आचार्य उदयवीर शास्त्री के अनुसार 'वेदान्त' पद का तात्पर्य वेदादि के विधिपूर्वक अध्ययन, मनन तथा उपासना आदि के अन्त में जो तत्त्व जाना जाए उस तत्त्वविशेष के निरूपण करने वाले शास्त्र से है। जब जीव और ब्रह्म एक हो जाते हैं, तब जीव के समस्त अहंकारादि दोष नष्ट हो जाते हैं। माया के कारण जीव आत्म स्वभाव को भूल जाता है। ज्ञानप्राप्ति के बाद उसका ब्रह्म के साथ तादात्म्य हो जाता है। यही मोक्ष है और मोक्ष प्राप्त करना ही अद्वैतवेदान्तयोग का साध्य है। ___ वेदान्त की साधना की शुरुआत आवरण को हटाने से होती है। उसके लिए साधन चतुष्टय को अपनाना होता है, जो निम्न हैं - 1. नित्यानित्य वस्तुविवेक, 2. वैराग्य, 3. षटसम्पत्तियाँ (शम, दम, उपरति, तितिक्षा, श्रद्धा और समाधान) 4. मुमुक्षुत्व। ' इन साधनचतुष्टय के द्वारा साधक अपने अज्ञान को दूर करता है, क्योंकि वेदान्त 1. रिलीजस क्वेस्ट ऑफ इंडिया, पृ. 167. 15