________________ ___ उपर्युक्त विवेचन से यह बात स्पष्ट होती है कि यद्यपि पुराणों में योग का विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है तथापि उनमें मौलिकता का प्राय: अभाव है। प्रचलित योगपद्धतियों का विवेचन मात्र उनका उद्देश्य है। अधिकांश पुराणों ने पातजंलि के अष्टांग योग का ही आधार ग्रहण किया है। . स्मृति ग्रन्थ एवं योग - सम्पूर्ण स्मृति ग्रन्थों को आचार-विचार की नीतियों की अमूल्य धरोहर कहा जा सकता है। इन ग्रन्थों में मानव जीवन में उपयोगी नियमों की विस्तृत चर्चा की गई है। याज्ञवल्क्यस्मृति, मनुस्मृति, पाराशर-स्मृति आदि स्मृतियों में साधकों के अनेक कर्तव्यों तथा गृहस्थों के सत्कर्मों की चर्चा की गई है।' याज्ञवल्क्यस्मृति में योग से सम्बन्धित विषय को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि - मन और बुद्धि को विषयों से हटाकर ध्येय को आत्मा में स्थित करके योग करना चाहिए। इस प्रकार स्मृतियों में मोक्ष को प्राप्त करने के लिए जप, तप एवं योगाभ्यास का वर्णन मिलता है। योगवाशिष्ठ एवं योग - योगवाशिष्ट वैदिक परम्परा का ही एक अंग है। इस अति प्राचीन ग्रन्थ में योग का विस्तृत रूप से विवरण प्राप्त होता है। इसके छह प्रकरणों में योग के सब अङ्गों का वर्णन किया गया है। इसकी कथाओं, उपदेशों, प्रसंगों आदि में संसार-सागर से निवृत्त होने की युक्ति बतलाई गई है। वस्तुत: योग द्वारा मानव अपने वास्तविक स्वरूप की अनुभूति को प्राप्त करता है एवं अन्त में संसार के आवागमन से मुक्त हो जाता है। योगवाशिष्ट के उपशम प्रकरण के छत्तीसवें सर्ग में ध्यान का वर्णन किया गया है और उसमें बुद्धि, अहंकार, चित्त, कर्म, कल्पना, स्मृति, वासना, इन्द्रियाँ, देह, पदार्थ आदि को मन के रूप में ही माना गया है। यद्यपि मन अत्यन्त शक्तिशाली होता है, यही पुरुषार्थ में सहायक होता है। जब योगी अपने मन को पूरी तरह से शान्त कर लेता है तभी उसको ब्रह्मत्व की प्राप्ति होती है। यहाँ समाधि एवं समाधिस्थ का निरूपण अत्यन्त हृदयग्राह्यता से किया है - 'जो गुणों का समूह, गुणात्मक तत्त्व है वह समाधि है एवं जो इनको अनात्मरूप देखते हुए अपने आपको केवल इनका साक्षीभूत चेतन जानता है और जिसका चित्त स्वभावसत्ता में लगकर शीतल हो गया है वह समाधिस्थ कहलाता है।' योगवाशिष्ट- में योग की तीन रीतियों का प्ररूपण हुआ है जो क्रमश: इस प्रकार 1. अग्निपुराण, 372. 2. वशिष्ठ स्मृति, 206. 3. याज्ञवाक्ल्य स्मृति, 4/111. 4. योगवाशिष्ट, 6/114/17, 6/7/11,6/139/ ___ 1,3/110/46. 10