________________ __. महाभारत में योग की चर्चा करते हुए मन को सुदृढ बनाने, अपनी इन्द्रियों की ओर से उसे समेटने और मन:पूर्वक योगाभ्यास करने का आदेश दिया गया है। रागादि विषयों को छोड़कर ध्यान-योगाभ्यास में सहायक देश, कर्म, अर्थ, उपाय, अपाय, आहार, संहार, मन, दर्शन, अनुराग, निश्चय और चक्षुष इन बारह योगों का आश्रय लेकर मोक्ष प्राप्ति के लिए कर्मयोग, भक्तियोग तथा ज्ञानयोग तीनों की उपयुक्तता सिद्ध की गयी है। ब्रह्मसूत्र में महर्षि बादरायण ने तो तीसरे अध्याय का नाम ही साधना अध्याय रखा है और उसमें आसन, ध्यान आदि का वर्णन किया है। पुराण एवं योग - भारतीय संस्कृति के स्वरूप की जानकारी के लिए पुराणों के अध्ययन की बहुत आवश्यकता है। पुराण भारतीय संस्कृति के मेरुदण्ड हैं। प्राय: प्रत्येक पुराण में योग का कुछ उल्लेख अवश्य मिल जाता है। इससे पता चलता है कि पुराणों के रचनाकाल में योग साधना जन जीवन में व्याप्त हो गई थी। पुराणों ने योगसाधना के मार्ग को परम्परा से जीवित रखने की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। मान्यतानुसार ब्रह्मपुराण को सर्वाधिक प्राचीन माना जाता है / इसमें योगाभ्यास का फल सांख्य एवं योग की व्याख्या तथा योग की साधना विधि का विवरण मिलता है। .. इसी प्रकार मार्कण्डेयपुराण में महायोग साधक दत्तात्रेय से योग संबंधी प्रश्न पूछता है। उस प्रसंग में योगाभ्यास, योगसिद्धि, योगचर्या एवं ओंकार स्वरूप का कथन भी किया गया है। लिङ्गपुराण में कहा गया है कि योग शब्द से ही निर्वाण का बोध होता है। इस पुराण में अष्टांगयोग के विवेचन के उपरांत योगमार्ग के विघ्नों या अन्तरायों का विवेचन किया गया है। इसके पचहत्तरखें अध्याय में विभिन्न योगों का विवेचन है किंतु उन भेदों में से मुख्यत: योग के पाँच प्रकार माने हैं, मंत्र योग, स्पर्शयोग, भावयोग, अभावयोग एवं महायोग / गरुडपुराण में भी ध्यान योग एवं अष्टांगयोग का विवेचन मिलता है। ____ अग्निपुराण में ब्रह्मप्रकाशक ज्ञान की एकचित्तता को योग कहा गया है। कूर्मपुराण में योग के दो प्रकार का वर्णन किया गया है - अभाव योग और महायोग / अभावयोग में शून्य, सर्वनिराभास स्वरूप का चिंतन किया जाता है। जहाँ अपने से अभिन्न नित्यानन्द निरंजन आत्मा को देखा जाता है वह महायोग है। 1. भागवतपुराण, 3/18, 11/15, 19/20. 2. महाभारत, अनुशासन पर्व, 116/23. 3. ब्रह्मपुराण, 234-8. __4. मार्कण्डेयपुराण,