________________ योग के साधन के द्वारा समस्त मलों को धोकर आत्मा के यथार्थ स्वरूप को भली प्रकार . से प्रत्यक्ष रूप में देख लेता है, जिससे वह असंग हो जाता है और कैवल्य अवस्था को प्राप्त हो जाता है। तप के द्वारा ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। और वह ब्रह्मज्ञानी परमात्मा के स्वरूप को जान लेता है, जो परमात्मस्वरूप को जान लेता है वह संसार से मुक्त हो जाता है। षडंगयोग के प्रत्याहार. ध्यान. प्राणायाम, धारणा, तर्क और समाधि के वर्णन में कहा गया है कि विषयों में लीन मन जीव को बन्धन में फंसाता है जबकि निर्विषय मन मुक्ति दिलाता है। इसलिए विषयासक्ति से मुक्त और हृदय में निरुद मन जब अपने ही अभाव को प्राप्त होता है तब वह परमपद पाता है। इसीलिए कल्याणकारी साधक सांसारिक भोगों की अनित्यता और दुःखरूपता को समझकर इनसे हमेशा विरक्त हो जाते हैं एवं परमगति को प्राप्त करके फिर कभी लौटकर नहीं आते हैं। इस परमगति की प्राप्ति के लिए आचार-विचार जरूरी है। जैसे श्रद्धा, तप, ब्रह्मचर्य, सत्य, दान आदि और इनकी महती आवश्यकता का उल्लेख विभिन्न उपनिषदों में हआ है। मोक्ष प्राप्ति के लिए तप एवं समाधि की अनिवार्यता बतलाई गई हैं। योग एवं समाधि की अवस्था में वाणी एवं मन निवृत्त हो जाते हैं, साधक निर्भीक बनता है और ब्रह्मानन्द का आस्वादन करता है।' जब साधक को ब्रह्मानन्द की प्राप्ति हो जाती है तब वह जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार उपनिषदों में ध्यान का विभिन्न रूपों में उल्लेख किया गया महाभारत एवं योग - भारतीय वाङ्मय में महाभारत का बहुत ऊँचा स्थान है। महाभारत को तो विद्वान् पंचम वेद के नाम से जानते और मानते हैं। इसे वेदों जैसा आदर और प्रामाणिकता भी प्राप्त है। महाभारत में भी योग अथवा ध्यान का उल्लेख मिलता है। श्रीमद् भागवत गीता के अट्ठारह अध्यायों में अट्ठारह प्रकार के योगों का वर्णन किया गया है। उसमें ध्यान योग का छठे अध्याय में विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है। पुराणों में भी कई जगह इसकी चर्चा मिलती है। 1. श्वेताश्वतरोपनिषद, 2/14. 2. कठोपनिषद्, 2/6. 3. श्वेताश्वतरोपनिषद, 3/8. 4. ब्रह्मबिन्दूपनिषद, 4. 5. प्रश्नोपनिषद्, 1/10. 6. वृहदारण्यकोपनिषद्, 5/2/3. मुण्डकोपनिषद, 3/1/6. 7. तैत्तिरीयोपनिषद, 3/9. 8. वृहदारण्डकोपनिषद, 6/2/15. 9. महाभारत, शांति तथा अनुशासन पर्व.